सद्विचारक पुरस्कार ( लघुकथा )

लघुकथा

– गोपाल मोहन मिश्र

सद्विचारक पुरस्कार ( लघुकथा )

एक बेर एक व्यक्ति किछु पैसा निकालवा लेल बैंक में गेलाह। जहिना कैशियर पेमेंट देलक कि ओ कस्टमर चुपचाप ओकरा अपन बैग में रखलाह आ चलि देलाह। ओ एक लाख चालीस हज़ार रुपैया निकलवेने छलाह। हुनका पता छल कि कैशियर ग़लती सँ एक लाख चालीस हज़ार रुपैया देबाक बजाय एक लाख साठि हज़ार रुपैया हुनका दs देलक अछि, लेकिन ओ ई आभास कराबैत कि बिना पैसा गिननहिं आ कैशियरक ईमानदारी पर हुनका पूरा भरोसा अछि, चुपचाप पैसा बैग में राखि कs चलि देलाह।

एहि में हुनकर कोनो दोष छल वा नहि, लेकिन रुपैया बैग में रखिते बीस हजार अतिरिक्त रुपैया के लs कs हुनका मन में उधेड़ -बुन शुरू भs गेल। एक बेर हुनका मन में आयल कि फालतू रुपैया वापस लौटा देबाक चाही, लेकिन लगले ओ सोचs लगलाह कि जखन हम ग़लती सँ ककरो बेसी पेमेंट कs दैत छी, तs हमरा कोन लौटाबs अबैत अछि ?

बेर-बेर मन में आबैत छलनि कि पैसा लौटा देबाक चाही, लेकिन सभ बेर दिमाग कोनो न कोनो बहाना वा कोनो न कोनो तर्क दs दैत छल, पैसा नहि लौटाबक लेल।

लेकिन मनुक्ख के अन्दर मात्र दिमागे टा नहि होईत छै… हृदय आ अंतरात्मा सेहो होईत छै…! रहि – रहि कs हुनका अंदर सँ आवाज़ आबि रहल छलनि कि तों ककरो ग़लती सँ फ़ायदा उठाबs सँ नहि चूकैत छह आ ऊपर सँ बेईमान नहि हेबाक ढोंग सेहो करैत छह। कीs यैह ईमानदारी थीक ?

हुनकर बेचैनी बढैत जा रहल छलनि। एकाएक ओ बैग में सँ बीस हज़ार रुपैया निकाललनि आ पॉकेट में राखि कs बैंक के तरफ चलि देलाह।

हुनकर बेचैनी आ तनाव कम होेबs लागल। ओ हल्का आ स्वस्थ अनुभव करs लगलाह। ओ कोनो बीमार थोड़े छलाह, लेकिन हुनका लागि रहल छलनि, जेना हुनका कोनो बीमारी सँ मुक्ति भेंट गेल होनि। हुनका चेहरा पर कोनो युद्ध जीतबाक जेकाँ प्रसन्नता व्याप्त छलनि।

रुपैया पाबि कs कैशियर चैन केर साँस लेलक। ओ कस्टमर महोदय के अपन पॉकेट सँ एक हज़ार रुपैया निकालि कs हुनका दैत कहलकनि, ‘‘भाई साहेब, अहाँक बहुत-बहुत आभार ! आई हमरा तरफ सँ बच्चा सभ के लेल मिठाई लs जायब। प्लीज़ मना नहि करब।”

‘‘भाई, आभारी तs हम छी अहाँक आ आई मिठाई हमहीं अहाँ सभ के खुआयब ’’ – कस्टमर महोदय कहलनि।

कैशियर पूछलक – ‘‘ भाई, अहाँ कोन बात केर आभार प्रकट कs रहल छी आ कोन ख़ुशी में मिठाई खुआ रहल छी ? ’’

कस्टमर महोदय जवाब देलनि – ‘‘आभार एहि बातक कि बीस हज़ार के चक्कर हमरा आत्म-मूल्यांकन केर अवसर प्रदान कैलक। अहाँ सँ ई ग़लती नहि होईत तs , नहि तs हम द्वंद्व में फँसितहुं आ नहि ओकरा सँ निकलि कs हम अपन लोभवृत्ति पर क़ाबू पबितहुं। ई बहुत मुश्किल काज छलनि। घंटों के द्वंद्व के बाद हम जीत पयलहुं। एहि दुर्लभ अवसर के लेल अहाँक बहुत-बहुत आभार।”

कहाँ तs ओ लोक होईत छथि, जे अपन ईमानदारी के ढोल पीटि कs पुरस्कार आ प्रशंसा पयबाक कोनो अवसर नहि चूकैत छथि आ कहाँ ओ जे दोसरा के सद्विचार सँ पुरस्कृत करैत छथि।