छठि परमेश्वरी
प्रकृतिसऽ उपरि पराप्रकृति, पराप्रकृतिसऽ उपरि षष्ठी माता छथि। सैह षष्ठी माता हमरा लोकनिक छठि परमेसरी थिकीह।
आदिशक्तिसऽ (१) परब्रह्म, (२) वृहत् विष्णु, (३) सदाशिव, (४) महागौरी, (५) महासरस्वती आ’ (६) महालक्ष्मी प्रकट भेलथि, तेँ से आदिशक्ति षष्ठीमाता कहबैत छथि।
उक्त षष्ठ संतति सहस्त्रदलकमलपर आसीन षष्ठीमाताकेँ प्रार्थना करैत अपन समस्या राखल करैत छथि। सर्वसमस्याक निदानार्थ छठि परमेसरीक सक्रियता निरंतर बनल रहैत छनि।
छठि परमेसरीक शीर्षसऽ आकाश, नासिकासऽ वायु आ’ तृतीय नेत्रसऽ सूर्यक प्राकट्य अछि, से सभ घटना तऽ षष्ठीक उपरांत वैवस्वत मन्वंतरमे प्रारंभ भेल आ’ चलैत आबि रहल अछि।
तेँ षष्ठी तिथिक सायंकालीन अर्घ्य छठि परमेसरीकेँ आ’ सप्तमी तिथिक प्रात:कालीन अर्घ्य छठि परमेसरी सहित प्रगटित सूर्यकेँ अर्पित कयल जाइत छनि।
छठि परमेसरी सर्वत्र व्याप्त छथि, तेँ तऽ दशो दिशामे छथि।
छठि परमेसरी आद्या पराप्रकृति सर्वगुणमयी गुणातीता दशमहाविद्या साक्षात् सच्चिदानन्द स्वरूपिणी छथि।
आद्या पराप्रकृतिक प्राकट्य सूर्यक प्राकट्यकेर पहिलुक घटना थिक, तेँ पश्चिम प्रतीचीमुहेँ छठि परमेसरीकेँ अर्घ्य अर्पित करैत छी। प्रातः प्राचीसऽ सूर्य उगैत छथि, तेँ उदयकालीन अर्घ्य प्राचीमुहेँ छठि परमेसरी सहित सूर्यकेँ अर्पित कयल जाइत छनि।
जेँ सर्वत्र छठि परमेसरी छथि, तेँ प्रतीची आ’ प्राचीमे सेहो छठि परमेसरीक पहिचान करैत छी।
अस्ताचलगामी सूर्यकेँ अर्घ्य नहि अर्पित कयल जाइत छनि।
मायक संग दिनकर दीनानाथ सप्तमीक भोरमे अर्घ्य स्वीकार करथु।
पराप्रकृति षष्ठी सदा सर्वदा सर्वदिशासऽ अर्घ्यस्वीकार करथु।
प्राची दिशासऽ प्रतीचीकेँ अर्घ्य समर्पित छनि, ताहि अर्घ्यकेँ छठि परमेसरी स्वीकार कऽ लेथु।
छठि परमेसरीक कृपा सबहक उपरि अछि।
लेखक:
पूर्णेन्दु कुमार झा