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नेपाल मे मैथिली भाषाभाषी बीच सहमति-विमतिक दुरावस्था कोना दूर होयत

अति महत्वपूर्ण सवाल
 
(मैथिलीक कमजोर पक्ष केँ दुर करबाक लेल कि कयल जाय?)
 
बहुत महत्वपूर्ण सवाल उठेलहुँ अछि जे मैथिलीक विकास, संरक्षण, संवर्धन व प्रवर्धन लेल कि ‘वेबिनार’ (सेमिनार, परिचर्चा गोष्ठी, चिन्तन शिविर, पैघ-पैघ आयोजन, आदि) मात्र समाधान देतैक?
 
नहि, बिल्कुल नहि। मात्र चर्चा सँ समाधान कहियो नहि भेटत। समाधान लेल चर्चा मे आयल बात केँ व्यवहार मे बदलबाक लेल मैथिली भाषाभाषी समाज केँ आगू बढय पड़तैक।
 
आब सवाल उठैत छैक – मैथिली भाषाभाषी समाज कतेक जागरुक अछि?
 
जागरुकता सेहो मैथिली भाषाभाषी मे स्वाभिमानक रक्षा लेल, शिक्षा-संस्कार लेल, रोजी-रोजगार लेल, राजनीतिक अधिकार लेल कम छैक से बात नहि – मुदा राज्य केर तरफ सँ भाषा आधारित मौलिक अधिकार जे भेटबाक चाही ताहि मे जनता केँ बरगलाकय राखल गेल छैक।
 
जनता केँ नेतृत्व दैत छैक मास लीडर। मास लीडर स्वयं भाषा, संस्कृति, पहिचानक मूल आधार आदि सँ कम आ केवल वोटबैंक राजनीति केर आधार पर जाति-पाँति के बात, विकासक गपथोथी-झुनझुन्ना, यूँ-मारा-त्यूँ-मारा आदिक बात छोड़ि देखल जाय त १००% साक्षरता, उच्च शिक्षा, सभक लेल नीक खान-पान आ ओढन-पहिरन आ जन-जन केर विकास संग आरो पूर्वाधारक विकास लेल ईमानदार नहि बुझाइत छैक। बल्कि नेता येनकेनप्रकारेन ओहेन योजना सब बनबैत अछि जाहि मे मोटगर कमीशन आ खुरपुजाइ घुमाफिराकय ओकर पाकेट गरम कय देतैक… बस। कहू त –
 
१. सभक बच्चा स्कूल गेल कि नहि
२. सभक घर चुल्हा जरल कि नहि
३. सभ बच्चा मे समान रूप सँ संस्कारक विकास भऽ रहल अछि कि नहि
४. गाम-समाजक लोक मे एकजुटता अछि कि नहि
५. गाम-समाजक विकास लेल स्वयंसेवी तत्पर भऽ रहल अछि कि नहि…
 
आदि आधारभूत विकास लेल आइ कतेक लोक चिन्तित वा चिन्तनशील अछि?
 
भाषा-संस्कृतिक विकास लेल कतेक लोक चिन्तित अछि?
 
तखन त हमहीं-अहाँ जे किछु आपसी विमर्श करैत छी एकरा गाम-गाम मे जखन पजारैत जायब तखन लोके-समाज केर तत्पर भेला सऽ किछु समाधान सोझाँ आओत।
 
लेकिन एतय त गाम-गाम घुमिकय भाषाक ‘भ’ तक नहि बुझनिहार जातीय आधार पर बोली मे फर्क केँ भाषा मे फर्क कहि अपन अलगे राजनीतिक विसात बिछबैत अछि।
 
गंगा ओहि पारक ‘बोली’ (याद रहय भाषा नहि…) ‘मगही’ केँ अपनेबाक एकटा षड्यन्त्र गाम-गाम केर पिछड़ा, दलित आ मास (बहुल्यजन) केँ कथित अगड़ा आ विकसित समाजक विकसित बोली-भाषाक नाम पर भड़काकय अलग कित्ता बनायल जा रहल अछि, एहि पर चिन्ता के करत? जखन कि वैह कथित ‘मगही’ केर लेखन, प्रकाशन वा संचारकर्म, पाठ्यक्रम, शब्दकोश, व्याकरण, साहित्य आदिक सृजनकर्म ओहि भड़केनिहार तथाकथित अभियन्ता सँ वा ओकर समर्थक सँ कोन स्तर आ कतेक भऽ रहल अछि? जीरो! स्पष्ट अछि जे राजनीतिक प्रायोजित षड्यन्त्र सँ आत्महन्ता किछु अभियन्ता अपन मैथिली भाषाक विभिन्न बोली आ विविधता केँ स्वयं कमजोर करैत समाज मे विखंडन आनि रहल अछि। एहि सँ दूरगामी केकर लाभ हेतैक ओकरा एतबो भान नहि छैक। एकरा रोकतैक के? ई सब त गोटेक भत्ताक भोग लेल स्वयं अपनहि सँ अपन भविष्य केर गला घोंटि रहल अछि। बौद्धिक कार्य मे मूढतापूर्ण व्याख्या घुसाकय अपने सँ अपन शिक्षा, संचार, रोजगार, आदि भाषा-आधारित अधिकार जे नेपाली बाद दोसर सर्वाधिक अंश मे मैथिली लेल प्राप्तिक बेर (संघीयता) एलाक बाद जानि-बुझिकय खन्डित कय रहल अछि। के रोकतैक? जँ स्वयं लोक नहि जागल त एकरा सब केँ एहि तरहक उपद्रवी आ खण्डित-विभाजित मानसिकता केँ रोकयवला के हेतैक? सवाल ईहो छैक।
 
विद्वान् विमर्शी या सामाजिक अभियन्ताक कार्य करबाक एकटा सीमा छैक। हम अपन १० वर्षक कार्य अनुभवक आधार पर ई कहि सकैत छी जे आइ धरि कोनो मैथिली कार्यक्रम मे ‘बहुभाषिक’ वा ‘राष्ट्रीय-विविधता’ आ ‘सहोदरी’ केँ दरकिनार बिना कएने मैथिली द्वारा आनहु मातृभाषा सब केँ समेटैत नेपाली राष्ट्रभाषा संग पर्यन्त सहकार्य करैत आगू बढबाक प्रयास कयलहुँ। कथमपि आपस मे विभाजन करबाक बात त सपनहु मे नहि सोचि सकैत छी, आ नहिये आइ धरि कतहु मानक केर नाम पर, वैयाकरणिक शुद्धता-अशुद्धता आदिक नाम पर अथवा कोनो कार्यक्रम गैर-समावेशिक करबाक बात स्मृति मे अबैत अछि।
 
२०६७ वि.सं. सँ विराटनगर मे निरन्तर कार्य करैत रहल छी। प्रथम आयोजन मे विराटनगर केर लगभग समस्त मैथिली भाषाभाषी संघ, संस्था, जातीय संगठन आदि सब केँ जोड़िकय विशाल स्तर केर समारोह मनायल गेल छल। समग्र मिथिला केँ प्रदर्शन करयवला झाँकी-प्रदर्शनी निरन्तर एहि मोरंगक केन्द्रभूमि विराटनगर मे कइएक वर्ष सँ आयोजन करैत राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय जगत केँ ई देखायल गेल अछि जे मैथिली कथमपि कोनो खास या विशिष्ट केर भाषा नहि अपितु ई आम मधेशीक भाषा थिकैक, जेकर इतिहास नेपाली सँ बहुत बेसी पुरान आ नेपालहु मे हजारों वर्ष सँ समृद्ध रहलैक अछि। प्रा. डा. बालकृष्ण पोखरेल समान अमर विभूति कइयौं बेर एहि तथ्य केँ स्वीकार करैत नेपाली प्राज्ञ आ विभूति सँ पर्यन्त मैथिली केँ बचेबाक व बढेबाक लेल जिम्मेदारी ग्रहण करबाक अपील कयलनि।
 
लेकिन मुट्ठी भरि लोक जे आइ धरि कइयौं प्रकारक राजनीतिक-सामाजिक अभियान केँ चलेबाक स्वांग कय रहला अछि – ओ सब प्रायोजित ढंग सँ मैथिली विरूद्ध षड्यन्त्र करैत छथि। आम लोक जेकरा मे बौद्धिक समझ केर कमी स्वाभाविक छैक तेकर माथ मे अनेकौं जाति-पाँति केर विभेद व अन्तर्द्वन्द्व आदिक विभाजनकारी बात-विचार प्रचार करैत मैथिली केँ तोड़िकय ‘मगही’ केर बात कएल करैत छथि। कतेक बेर हुनका सब सँ कहल जे कम सँ कम एहि कथित मगहियो मे बेसी सँ बेसी सृजनकर्म हो, पाठ्यक्रम विकसित हो, पठन-पाठन हो, संस्कारक विकास हो, विकासक मूलधारा मे सब वर्ग केर प्रवेश हो, एहि सब लेल सेहो किछु अभियान चलाउ… लेकिन विडम्बना जे आइ धरि एहि तरहक सार्थक प्रयास ओ लोकनि धरातल पर कतहु करैत नहि देखाइत छथि। मात्र सामाजिक संजाल मे मैथिली विरोधी हवा बहेनाय, संचारक्षेत्र मे मैथिली विरूद्ध विषवमन केनाय, कुल मिलाकय ओहि वर्ग जे अपन एकाधिकार केँ मैथिली सँ टूटैत देखि मैथिली केँ कमजोर करबाक लेल हुनका सब केँ उकसेलनि ताहि स्वामीजन प्रति वफादारी निभबैत बस किछु हजार-लाख टका भत्ताक भोग लेल दिन-राति एक कएने देखाइत छथि। के बुझेतनि?
 
भाषा-संस्कृतिक अभियान मे आइ जाहि तरहें मिलाफ, सङ्गोर मिथिला, सोच-नेपाल, आ किछेक समूह केँ हम देखैत छियैक जे अत्यन्त ईमानदारी सँ अपन मातृभाषाक हरेक विधा – भाषा, साहित्य, रंगकर्म, कलाकर्म, फिल्म आदि हरेक क्षेत्र मे आगू बढबाक आ बढेबाक लेल जमीनी स्तर पर कार्य करैत छथि, बस एहि टा सँ आशा अछि। हिनका सब केँ के कतेक भत्ता दैछ से हमरा कतहु नहि देखायल, लेकिन स्वयं जानकीतत्त्व सँ ओत-प्रोत ई लोकनि बच्चा-बच्चा मे मातृभाषाक महत्व प्रति जनजागरण कय रहल छथि।
 
किछु बड़-बुजुर्ग मैथिली तोड़ल जा रहल अछि से देखिकय चिन्ता त करैत छथि लेकिन ओहो सब एहि तोड़बाक कारक तत्त्व केँ विखन्डनकारी शक्तिक आरोप जेकाँ आत्मसात करैत आरोप लगाकय अपन काज भेल ओतबे बुझैत छथिन। हम डा. महेन्द्र नारायण राम केर एकटा प्रेरणास्पद उद्धरण मोन पाड़य चाहब –
 
“शुरुआती दौड़ मे मैथिली भाषाक काज पर जे लोक हँसल करथि से आइ हमर कयल काज ताकि-ताकिकय पढल करैत छथि। हमर पहिल पोथीक भूमिका अपना सँ उमेर मे छोट सृजनकर्मी अजित आजाद सँ लिखबेने रही, हुनका पर्यन्त ओ विशिष्ट स्रष्टा हँसी करैत कहने रहथिन जे किनका पाछाँ पड़ल छी… लेकिन आइ ओ महान व्यक्ति हमर साहित्यक पाछाँ स्वयं पड़ल छथि। यदि हमरा मे गुणवत्ता रहत त हमर अवहेलना करबाक दुस्साहस के करत? हँ, जँ हमर गुणवत्ता रहितो हमरा लोक नकारिकय बढि जइतैक… तखन हमरो होइतय जे सच मे कथित उच्च जातिक एकाधिकार छैक आर हमरा सनक ब्राह्मणेतर साहित्यकार केँ स्वीकार्यता प्रदान करय मे हिनका लोकनि केँ असोकर्ज होइत छन्हि। मुदा हम ईमानदारी सँ कहय चाहब जे ई बात कतहु सँ सही नहि छैक। मैथिली भाषा-साहित्यक सेवा मे जे आत्मसंतुष्टि हमरा भेटल, समाज जाहि तरहें हमरा सम्मान दैत आयल अछि, एहि लेल हम बहुत प्रसन्न छी। आर, हम गोटेक ब्राह्मणेतर विशिष्ट साहित्यकार सँ अपील करय चाहब जे अपने लोकनि अपनहि जेकाँ आरो लोक केँ ठाढ कियैक नहि करैत छी, अथवा कियैक नहि कयलहुँ अछि एखन धरि। या त अहाँ स्वयं दोसर अपनहि जेकाँ विशिष्टता दोसर प्राप्त करय से नहि चाहैत छी, अथवा अहाँ अपन ईमानदार योगदान सँ कंजूसी करैत छियैक।”
 
निष्कर्षतः, भाषा-साहित्य आ शिक्षा समान रूप सँ समाजक हरेक वर्ग लेल महत्वपूर्ण बनय, एहि दिशा मे सभक एकजुट प्रयास मात्र किछु उपलब्धि दियाओत। अन्यथा, जे बढि गेल से बढले रहत, जे पाछाँ छूटि गेल से छूटले रहत। कित्ता काट कयला सँ बौद्धिकता मे वृद्धि नहि संभव अछि, बल्कि सृजनकर्म आ शिक्षाक मात्रा बढायब आवश्यक अछि।
 
हरिः हरः!!

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