महापात्र ब्राह्मण समुदायक ऋणी अछि हिन्दू मैथिलजन

विचार

– प्रवीण नारायण चौधरी

महापात्र ब्राह्मण केँ ओछ-तुच्छ बुझब महाभूल थिक

आइ सँ दुइ वर्ष पूर्व श्री प्रभाकर झा अपन एक गोट लेख हिन्दी मे मिथिलाक महापात्र समुदाय पर केन्द्रित किछु रास ऐतिहासिक सन्दर्भ जोड़िकय लिखने रहथि। मिथिला सँ सम्बद्ध कोनो लेख-रचना केँ यथासंभव मैथिली मे अनुवाद कय केँ प्रकाशित करैत छी, मुदा समयक अभाव रहल समय कोनो लेख केँ नेपाली, हिन्दी वा अंग्रेजी, जाहि भाषा मे मूल लेख रहैत अछि ओकरा ताहि भाषा मे प्रकाशित कय दैत छी। प्रभाकर झाक उक्त आलेख हिन्दी मे छल आ से जहिनाक तहिना प्रकाशित कएने रही। मैथिली जिन्दाबाद आनलाईन वेब न्यूज पोर्टल पर सर्वाधिक पढल जायवला एकटा लेख ईहो अछि, एतय सँ कतेको आन पोर्टल सेहो ई लेलनि आ अपना-अपना तरहें प्रकाशित कयलनि। सच मे ‘महापात्र ब्राह्मण’ समुदाय पर केन्द्रित ई लेख किछु गम्भीर विमर्श केँ सेहो जन्म देलक जे एहि लिंक पर देखल जा सकैत छैक – http://www.maithilijindabaad.com/?p=7862 ।

आइ एक महानुभाव श्री टी पी मिश्र द्वारा एकटा महत्वपूर्ण टिप्पणी देल गेल छल। श्री टी पी मिश्र जी केर कथन सँ पूर्णतया सहमत छी। ओ कहैत छथि जे महापात्र पर कोनो तरहक ओछ टिप्पणी अज्ञानी आ अबुझ लोक मात्र कय सकैत छथि। सच मे! शब्दक साधारण विन्यास सँ महापात्र – यानि ओ पात्र जेकरा ज्ञानी-ऋषि-मुनि द्वारा विशेषाधिकार देल गेलनि जे पितर केँ कव्य-वस्तु प्रदान करबाक-करेबाक विधान अनुसार ई लोकनि जिम्मेदारी वहन करता आर ओ समस्त दान ग्रहण करबाक कार्य करता, एहि तरहें पितर प्रति श्रद्धापूर्ण दान यानि श्राद्धकर्म करेबाक जिम्मेदारी ग्रहण कयनिहार यथार्थतः महान पात्र छथि, तेँ हुनका ‘महापात्र’ कहल गेल छन्हि।

एकटा बात ईहो छैक – कि महापात्र अपन यजमान सँ जबरदस्ती दान करेबाक प्रपंच करैत छथि? एहि तरहक कतेको रास मामिला चर्चा मे अछि जे आजुक समय मे महापात्र लोकनि यजमान पर विभिन्न दबाव बनेबाक कुचेष्टा करैत छथि, ओ स्वेच्छा सँ देल गेल दान प्रति असन्तोष आ दानक वस्तु केँ निकृष्ट वा नहि ग्रहण करय योग्य कहिकय एक प्रकारक विरोधाभासी कार्य करैत छथि। एहेन तरहक व्यवहार केँ वर्तमान भौतिकतावादी संसार मे नास्तिकता आ आस्था प्रति सवाल ठाढ करबयवला कारक मानल जा सकैत अछि। ‘दान’ शब्दक बहुत पैघ महिमा छैक। एहि मे कतहु सँ दबाव आ अनैतिक लेन-देन करब नीतिक विरुद्ध अछि। कतेक यजमान सेहो अनिच्छापूर्वक दान-दक्षिणा देबाक कार्य करैत छथि जे महापात्र केँ एहि तरहक प्रतिक्रिया देबाक लेल उकसबैत छन्हि, तथापि ‘महापात्र’ अपन नामक अनुकूल आचरण अवश्य करथि। ई हमर विचार अछि।

जेना कि आम समाज मे देखल जाइत अछि – एहि महान उद्धारकारी समुदायक सम्बन्ध मे कय गोट भ्रान्ति आ कुतथ्यक अनेरौ बड बेसी प्रचार भऽ गेल अछि। आध्यात्मिकता आ विद्वताक जतय अकाल छैक ओतय आरो बेसी भ्रमक अवस्था महापात्र ब्राह्मणक सम्बन्ध मे देखल जाइछ। पान्डित्य परम्परा द्वारा पितर सँ जुड़ल कतेको तरहक आडम्बरी व्यवहार एहि भ्रम-भ्रान्तिक आगि मे घी ढारबाक काज करैत अछि। महापात्र ब्राह्मण सँ घाट पर प्रथम ब्राह्मण भोजन केँ सीधे पीतर केर प्रेतक भोजन कतहु कहल जाइछ, कतहु पीतर केर अन्तिम संस्कार उपरान्त बचल हड्डी केँ शीतलता प्रदान करबाक वास्ते राखल गेल जल महापात्र केँ अथवा कोनो अन्य ब्राह्मण केँ स्वेच्छा सँ पियय वास्ते देल जाइछ जेकर बदला अत्यन्त विशेष तरहक दान सेहो देल जाइछ (नेपाल मे काट्टो नाम सँ प्रचलित), कतहु महापात्र केँ दान-दक्षिणा-भोजनादिक उपरान्त ढेप्पा सँ मारिकय बैलाओल जाइछ…. आर एहि सब तरहक आडम्बरी व्यवहारक कारण आम समाज मे महापात्र ब्राह्मणक मूल्यांकन निम्न आ ओछ स्तर पर कयल जेबाक मूल कारक बनल जेना हमरा आशंका अछि।

अन्त मे, अपन अध्ययन आ चिन्तन सँ हमरा ई ज्ञात होइत अछि जे श्राद्धकर्म एहेन महत्वपूर्ण प्रेत-क्रिया करेबाक वास्ते विशेष अधिकृत ‘महापात्र समुदाय’ केँ वेद-वर्णित विधान पर चलबाक चाही। स्थानीय व्यवहार मे आयल अनावश्यक सिद्धान्त केँ व्यवहार करय सँ पूर्ण परहेज करबाक चाही। संगहि, पितर आ प्रेत केर वर्णन हेतु अदृश्य (हवा सदृश) अस्तित्वक सम्बन्ध मे लोकडरावन उक्ति आदिक सम्बन्ध मे ढंग सँ बुझेबाक चाही – जहिना दैविक शक्ति अदृश्य छथि, तहिना कोनो व्यक्ति अथवा जीव केँ शरीर छोड़लाक बाद एकमात्र परमात्माक अंश जीवात्मा सेहो अपन कर्मगति अनुसार किछु समय प्रेतक योनि मे रहैत अछि आर ओकरा सद्गति प्राप्ति लेल श्राद्धकर्म केर विधान वर्णित अछि – ई सब आध्यात्मिक आ वैज्ञानिक तौर पर जनमानस केँ बुझेनाय अति-आवश्यक अछि। आइ प्रेत आ भूतक नाम अबिते मनुष्य नकारात्मक बुझय लगैत अछि, हालांकि ई सब प्राचीन विरल आबादीक समय होइवला प्राकृतिक घटना आ बीमारी आदिक कारण लोकक आस्था मे बैसल से मात्र कायम अछि – ई विशुद्ध आध्यात्मिक अस्तित्व मे आभासी शक्तिक एकटा स्वरूप थिक, जे मनुष्य केँ अपकार करय योग्य एकदम नहि अछि। हँ, मनुष्य जँ एहि आभासी शक्तिक रास्ता मे कोनो तरहें बाधा उत्पन्न करैत अछि तऽ ओकर मानसिक अवस्था केँ अपना तरहें भ्रमित करबाक शक्ति एहि हवा सदृश भूत ओ प्रेत आदि मे छैक – जे कइएक वैज्ञानिक खोजहु सँ अवगत भेल अछि मानव समुदाय। मुदा ई सब खेल केवल मनोवैज्ञानिक – मन मे घटयवला घटना टा थिकैक। महापात्र ब्राह्मण समुदाय सेहो आनहि-आनहि समुदाय जेकाँ मानवक रूप होइत छथि आर ओ पूज्य एहि लेल छथि जे अन्य समस्त समुदाय केँ एहि मानसिक घेरा सँ बाहर करबाक कार्य करैत छथि जे किनको पितर केँ सद्गति प्राप्त भेलनि आर आब शेष सन्तति प्रसन्नता सँ अपन जीवन निर्वहन करैत आगाँ बढथि। एतेक महान भावनाक विशिष्ट समुदाय प्रति गलत आ कुतथ्य प्रसार केँ रोकबाक लेल भ्रान्ति सब केँ दूर भेनाय आवश्यक अछि।

हरिः हरः!!