विश्वस्तरीय विद्यापति स्मृति समारोह – बुराड़ी दिल्ली: समीक्षा अपन-अपन

आर शुरुए मे भेल छल लगभग १५ गोट कवि द्वारा कविता वाचन, विभिन्न विषय पर केन्द्रित कविता आ गजल केर वाचन कएने छलाह कवि लोकनि। हमहुँ एक कवि रही एहि आयोजन मे। माला-पाग-दोपटा आ २१०० टका विदाई भेटल। ताहि पर सँ सैकड़ों मित्र आ प्रशंसक सेहो भेटलाह। पूर्व परिचित मित्र आ स्नेहीजनक संग त सहजहि भेटबे कयल, विशेष संग भेटल कवि-कवयित्री लोकनिक, प्रिय आभाजी, विभाजी, आदरणीय कल्पनाजी आ मंच संचालन करैत ‘कवि एकान्त’ संग आनन्दजी, निरजजी (निरजबा), अमरनाथजी, प्रेमजी आदि अनेकों सज्जन कवि सम्मेलन मे भेटलाह। तहिना आयोजक लोकनि मे हेमन्त भाइ, अनिलजी, आनन्दजी, शिवनाथ भाइ, जटाशंकरजी, व अनेकों सुपरिचित चेहरा – आयोजन केँ जाहि मनोयोग सँ कएने रहथि तहिना एकदम लगन सँ खटि रहल छलाह। एकोटा कमी कतहु नहि रहि जाय, सभक ध्यान ताहि ठाम छल। कतेक लोक कहैत छैक, “जेना बेटीक विवाह मे बाप चौकन्न रहैत अछि, किछु तहिना आयोजक लोकनि एक्के टांग पर नचैत रहैत छथि” – बिल्कुल यैह हाल देखि रहल छलहुँ। खाली अनुशासनक कमी कनेक खलल। आयोजन मे मंच आ दर्शक बीच लोकक आवागमन बिलाड़िक रस्ता काटब जेहेन अशुभ मानल जाइत छैक, ताहि बातक ध्यान आयोजक आगाँ सँ रखता ई उम्मीद कय सकैत छी, कारण सब कियो आफिसर क्लासक व्यक्तित्व बुझेलाह। आयोजक जखन स्वयं कोनो तरहक उद्घोषण करथि तऽ बड़ा परिपक्वता सँ सब बात पूर्वाभ्यास मुताबिक – पूर्व योजनानुसार एक्जीक्युट (निष्पादन) करथि, घबराइथ एकदम नहि… कारण मैथिलीक कार्यक्रम मे स्वयं जानकीजी उपस्थित रहैत छथिन आ जखन जानकीजी रहथिन त राघवजी केर रहब स्वाभाविके बुझू। आर, जानकी-राघव यानि ‘सीताराम’ जतय रहता ओतय ‘गौरीशंकर’ उपस्थित रहिते टा छथि। तखन होइत छैक ओ शेषनाग केर फन जेकाँ मैथिली कार्यक्रम, आर जे कियो लफुवइ केलक, ओकरा कनिके नोंक बाबा महादेव केर त्रिशूलक गड़ि जाइत छैक, बाप-बाप कय केँ भागि पड़ाइत अछि। अत: एकदम आश्वस्त रहिकय कार्यक्रम आयोजन पूरा करय पर ध्यान दी। अस्तु!
विद्यापतिक स्मृति समारोह मे जतेक जीवित विद्यापति अबैत छथि हुनका लोकनि केँ सम्मान करी, मुदा अफरातफरी कतहु सँ स्वागत योग्य नहि होइत छैक से बुझी। बड़ा शान्तिपूर्वक २ टा लाइन आगू सँ विशिष्ट अतिथि लोकनि लेल आरक्षित राखी। शान्तिपूर्वक हुनका लोकनि केँ स्थान ग्रहण करबाबी आ मंच पर चलि रहल प्रस्तुति देखय दियनि, बीच मे उपयुक्त समय पर हुनका मंच पर बजाबी। गायक, उद्घोषक आ दर्शक तीनू केर राय मुताबिक ई काज होयत तऽ कार्यक्रम सूपर हिट होयत, नहि तऽ सियाजी रुसि रहती… ई कि अपाटक जेकाँ महाकविक महिमामंडनक बेर मे अनेरौ अन्य व्यक्तिक महिमामंडन मे अनुपयुक्त तौर-तरीका-समय मे ई सब लागि गेल? ई सवाल राघवजी सँ पुछती आ फेर ओ निकैल जेती। स्वाभाविके रूप सँ जखनहि ओ निकलती, तखनहि गौरीशंकर सेहो निकैल जेता। आर तेकर बाद लाखों खर्च सँ, वृहत् मनोयोग सँ कयल ओ आयोजन व्यर्थ भऽ जायत। सावधान! अफरातफरी मचल, विशेष अतिथि सांसद मनोज तिवारी विद्यापतिक गीत गेलनि आ दर्शक केर उपस्थिति देखि अपन मातृभाषा भोजपुरी सेहो गेलनि। चूँकि ओ अतिथि छलाह, हुनकर सम्मान करब आयोजकक धर्म छल, कोनो बात नहि। लेकिन एहि विन्दु पर अनेरौ सवाल उठाकय कार्यक्रम केँ शेड्युल स्वयं बिगाड़ब, ई जायज नहि होइत छैक। अवनीन्द्र ठाकुर बड़ा विलक्षण गायक छलाह। हुनकर तैयारी आ मनोकांक्षा बड़ा सुन्दर छल, मौका देरी सँ भेटलनि, ई सब कनेक पूर्वहि योजना बनेनाय आवश्यक अछि। कुञ्जबिहारीजी, रंजनाजी, हरिनाथजी समान महादिग्गज अहाँक मंच पर छलाह, आर ओ सब केवल २-२ टा गीत प्रस्तुत कयलनि, ई कतहु सँ उचित नहि लागल। मोन लिल्लोह रहि गेल।
तखन रानी झा, ओहो… गज्जब प्रस्तुति करैत छथि। दर्शक संग सीधा संवाद स्थापित करब हुनकर विशेष अदायगी लागल। ई मैथिली मे क्रान्ति छथि। तहिना वीजे विकास यानि विकास झा – वन्डरफूल आर्ट प्रेजेन्टेड रियली। ई दुनू गायक मैथिली केँ बहुत आगाँ लय जेता। रानी जखन ‘दुमका मे झुमका हेरौलनि, काशी मे कनबाली’ गेलीह तखनहुँ दर्शक झूमि उठल। ताहि समय उद्घोषण मे रहल किसलयजी पर पता नहि केहेन दबाव रहल, ओ कियैक हुनका या विकासजी केँ दर्शक संग जुड़ि चुकल कनेक्सन केँ काटबाक दुस्साहस कयलनि, एकर मीमांसा वैह जानथि, लेकिन ई खतरनाक छल। एकर प्रतिक्रिया मे किछु भऽ सकैत छल। अहाँ ‘संभोग सँ समाधि’ केर अवस्था मे जँ केकरो अलग करबाक चेष्टा करब तऽ खून कय देत लोक, किसलयजी, सावधान! दर्शक केर अपन मनोभाव होइत छैक। ताहि समय अहाँ विद्यापतिजी या महादेव या विष्णुदेव – कोनो नीति केर उपदेश नहि कय सकैत छी। ओ अलगे बेर रहैत छैक, इशारा बुझि गेल हेबैक, हमरा एहि सँ बेसी नहि लिखय पड़य। हम दर्शक दीर्घा मे रही। दर्शकक मनोभाव मे रानी झा केर खिलखिलाहट तहलका मचा रहल छल। मैथिली इक्सटैटिक लागि रहल छल। गीत-संगीत मे जखन लोकक भावना ताहि चरमविन्दु पर चलि जाय आ ‘वन्स मोर’ वला स्थिति आबि जाय, त सारा संसार सँ विद्रोह कय केँ कलाकार आ दर्शक अपन रतिक्रियाक आनन्द लेत। खबरदार, एहि घड़ी बीच मे टपकब त ओहिना होयत जेना भेल। यानि विद्रोह! एहि सँ बचय पड़त। विद्यापति केँ सेहो ई दृश्य बेजा नहि लगतनि, अहाँ बात बुझू! संसार मे कामुकता छैक, उत्पत्तिक मूल आधार कामुकता छैक। आर कलाकार-दर्शक बीच सिर्फ कलात्मक रतिक्रिया होइत छैक, ओ पवित्र छैक। ई दिल्लीक जीबी रोड वला सेहो नहि थिकैक, नहिये थिकैक जबरदस्ती बलात्कार, ई त गीत-संगीत केर आनन्द मे कलाकारक अदायगी आ दर्शकक मनोभाव बीच जे प्रेम सम्बन्ध स्थापित होइत छैक से आध्यात्म थिकैक। एहि सँ जे बच्चा सब जन्म लेतैक, वैह मैथिलीक रक्षा करतैक। प्लीज डोन्ट स्टौप देम!
बाद बाकी सब बढियां! हम सिर्फ अपन विचार देलहुँ। बेसी भऽ जाय, अपच भऽ जाय त परित्याग कय देबैक। ॐ तत्सत्!
हरि: हर:!!