चुनावः घृणास्पद जाति-पाति मे सामाजिक विखंडन आ पैसाक खेल

चुनाव में जाति पाति आ पैसाक खेल !!

– आशुतोष चौधरी, नदियामी (हालः कोलंबो, श्रीलंका)

election detoriationवर्तमान समय में अपना देश में कोनो टा चुनाव चाहे ओ ग्राम पंचायत केर हो या विधान सभा, लोक सभा या बहुतो एहेन चुनाव जे लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के अनुरूप होयत अइछ जाहि में नकदी, शराब और अन्य तरहक उपहार द के मतदाता केँ खरीद्बाके प्रयास कयल जायत अइछ। आर यैह खेल सब जाहि में प्रत्याशी जीत सेहो जायत छैथ, समाज केँ विखंडित कय रहल अछि।

आब एहि विषय पर चिंतन केनाय बड जरूरी अइछ । अगर मतदाता लोकेन एहि तरहक प्रयास जे चुनाव में भाग लेबय वला उम्मीदवार करैत छैथ हुनका समर्थन करता आ सँगहि ई उम्मीद सेहो करता की चुनाव जीतला के बाद ओ गामक/ राज्यक/ देशक उन्नति के लेल ईमानदारी सँ काज करैथ त ई मूर्खता होयत । राजनीतिक भ्रष्टाचार द्वारे जीतल प्रत्याशी समाज आ देशक लेल बहुत हानिकारक साबित होयत आयब रहल छैथ। समाज आ क़ानून के कमजोर हेबाक ई मुख्य कारण अइछ।

मतदाता लग आब एकटा विकट सवाल अइछ जे अगर चुनाव में ठार भेल प्रत्याशीगण हुनकर निर्णय केर मापदंड पर नै आयब रहला अछि त निर्णय केना लेल जाय । ईमानदार आ बेईमानक निर्णय कम आ बेशी पर केनाय सेहो उचित नै कियाकि या त ओ १०० % ईमानदार हेता या १००% बैमान । कीयो गोटे ५०% ईमानदार आ ५०% बैमान नै भ सकैत छैथ। अगर ओ १% बैमान छैथ एकर मतलब १००% बैमान छैथ आ ईमानदार हेबाक लेल १००% इमानदार हेबाक मापदंड शत प्रतिशत हेबाक चाही तखने टा हुनका ईमानदारक श्रेणी में राखल जेतैन।

तखन आब मतदाता की करता हुनका त अपन मताधिकार के प्रयोग करबाक छैन्ह। ओ अपन निर्णय केना करता। ग्रामीण भारत में बहुसँख्यक आबादी अपन मताधिकार के उपयोग करबा में जाति आधारित प्रचार प्रसार के अनुसरण करैत छैथ जकर असर पंचायत चुनाव तक देखल जायत अइछ आ मतदाता सबटा बात भुइल के अपन मतदानक गलत इस्तेमाल करैत आयब रहल छैथ। जकर ताजा उदाहरण बिहार विधानसभा के चुनाव में देखल गेल अइछ जे एकटा विख्यात राजनितिक दल जिनकर अध्यक्ष के चारा घोटाला में भारतीय दंड संहिता केर तहत आरोप साबित भेला उपरांत सजा भेलैन (एखन जमानत पर बाहर छैथ) ओ अपना पूरा खानदान सहित चुनाव में भाग लेला आ जाति आधारित मतदानक बल पर चुनाव में अपेक्षा सँ अधिक मत के संग सब गोटे चुनाव जीत गेला आ मंत्रिपद पर आसीन छैथ। आखिर दोस ककर? की हुनका सबहक समस्याके समाधान एहेन राजनितिक देल कखनहुँ करता या केबल ओ सब एही जाति पाति आधारित राजनीती के शिकार भेला?

आखिर एक सामाज में रहय वला सब गोटेक विचार अलग अलग किया? हमरा विचार में सबसँ पैघ कारण अइछ जे हम सब जाति पाति आ छुवा छुत केर फेरा में फँसी कय समाज केँ बाईट रहल छी। अगर जाति पाति के बात केला सँ कीनको हीन भावना जन्म लैत छैन त एकर परिणाम के भोगत? आब समय आयब गेल अइछ जे सब गोटे कें समान अधिकार देल जाय चाहे ओ कोनो जात पात के हो आ सब गोटे के सामाजिक स्तर पर विश्वास में लेल जाय तखने सब समाजक लोक एक परिवार जेना अनुभव करता आ कोनो तरहक निर्णय लेबा में अपन सहभागिता आ संयुक्त निर्णय केँ स्वीकार करता आ अनुसरण करता। शिक्षित समाज में भेदभाव के कोनो स्थान कखनहु नै।