हलधर नाग
शत-प्रतिशत नम्बर, आओर बड़का-बड़का डिग्री डिप्लोमा,
बहुत हदतक ई सही थीक।
मुदा अइ सब बात केँ कात रखैत,
ज्ञानक अइ आधुनिक परिभाषा केँ
चुनौती दैत अछि
ओडिशाक एक कवि “हलधर नाग”
जें स्कूली शिक्षा तक पुरा नहि केलथि
मुदा कईएक टा कविता एवं कविता-संग्रह रचिकय
ई छियासठ वर्षीय सरस्वती पुत्र
भारतक सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार
“पद्मश्री” सँ सम्मानित भेलाह
आ मान्य राष्ट्रपति सँ पुरस्कार ग्रहण केलथि।
नाग के जन्म बाड़गढ़ जिला केर घेंस नामक गाम में,
एक अत्यंत गरीब परिवार में 31 मार्च, 1950 कs भेलन्हि।
बाल्यावस्था दीनताक साथे बीत रहल छलन्हि
कि हठात् हिनकर पिताकs देहान्त भय गेलन्हि।
ओहि समय हिनकर उम्र मात्र 9-10 वरिस छलन्हि
आ ई तेसर कक्षा में पढैत रहथि।
आब परिवारक भार बालक हलधरक कान्ह पर।
ओई स्थिति में हलधर एक मिठाई केर दोकान में
बरतन मँजबाक काज कय
परिवारक किछु सहायता करय लगलाह।
दु तीन सालक बाद गामक सरपंच
हुनका हाई स्कुल में लs गेलन्हि
मुदा ओ ओतय पढाई नहि कय
एक भनसियाक काज करय लगलाह।
पन्द्रह सोलह साल तक ओतय काज केलथि
तकर बाद हलधर नाग
बैंक सँ एक हजार (1000) रुपया लोन लय
स्कूलक बच्चा सब केर उपयोगक वस्तु
एवं अन्य सामान सब बिक्री करय लगलाह।
हलधर अपन पहिल कविता 1990 में “धोड़ो बारगाछ”
जकर अर्थ थिक ‘बुढ़ा बरगद कें गाछ’नाम कें लिखलथि।
एकर बाद अनवरत 20 गोट रचना
और अपन कृति सब मुँहजबानी याद।
तेसर कक्षा तक केर पढाइ नहि पुरा करय वाला
हलधर पर पाँच गोट थिसिस दर्ज अछि
आ पी.एच. डी करय वाला के सबजेक्ट लिस्ट में
हलधर हरदम बनल रहैत छथि।
एतबे नहि ओडिशा के संबलपुर युनिवर्सिटीक
सिलेबस में हुनकर रचना हलधर ग्रन्थावली -2
पाठ्यक्रम में सम्मिलित कयल जायत।
कम शिक्षित रहैत अपन मातृभाषा ‘कोसली’ में
ओ अनवरत लेखन करैत रहलाह आ मातृभाषाक अनुरक्ति
हुनका एक पैघ रचनाकारक पंक्ति में ठाढ़ कय देलकन्हि
आ ओ सफलताक उच्चतम शिखर पर विराजमान भय गेलाह ।
संकलन आ अनुवाद –पूनम झा
कामाख्या गेट, गुवाहाटी
सौजन्य—मीडिया आओर इन्टरनेट