स्वरोजगारी बेटी – प्रतिष्ठित बेटीः लेखिका रितु झा केर विज्ञ सुझाव

मिथिलाक बेटीक जीवन स्तर मे सुधार लेल लेखिका रितु झा केर सराहनीय विचार मैथिली जिन्दाबाद पर

ritu jhaविचार आलेख

– रितु झा, लेखिका/आकाशवाणी उद्घोषिका, जमशेदपुर

बेटीवर्ग समाजक रचनात्मक शक्ति थीक, ओकरा आगू बढेला सँ देश आगू बढैत अछि। इतिहास साक्षी अछि जे जखन-जखन समाज या राष्ट्र बेटीवर्ग केँ अवसर व अधिकार देलक अछि, तखन-तखन बेटीवर्ग द्वारा विश्व पटल पर श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत कैल गेल अछि। बेटी सब अपन कर्तब्यनिष्ठा सँ ओ सिद्ध कयलक अछि जे ओ सब कोनो टा स्तर पर बेटा सँ कम नहि अछि। आवश्यकता छैक जे एहि शक्तिक अपूर्व स्रोत केँ बस कनेक टा प्रोत्साहन दैत रहियौक। कोनो राष्ट्र वा समाजक सर्वांगीण विकास वास्ते बेटा ओ बेटी दुनुक परस्पर योगदान सर्वोपरि होइछ।

पहिचान – ई केवल बेटे टा केँ नहि, बेटी केँ सेहो चाही। यैह हमरा सबकेँ समाज मे स्थान दियबैत अछि, हमरा सबहक प्रतिष्ठा बढबैत अछि, हमरा स्वाभिमानी बनबैत अछि और अपन स्वतंत्र होयबाक अनुभूति दैत अछि। आजुक समय मे स्त्री-समाज केँ आर ओकर अस्तित्वक रक्षाक लेल एहि पहिचानक बड पैघ जरुरत छैक बेटी सब लेल।

ईश्वर (प्रकृति) एहि वसुधा पर रहनिहार हरेक जीव केँ कोनो न कोनो विशेषता, गुण, शक्ति आदिक वरदान देने छथि। जेना हाथक पाँचो आंगूर एक समान नहि होएछ, तहिना हरेक मनुष्य सेहो एक-दोसर सँ भिन्न अछि। हरेक मनुष्य मे अलग प्रतिभा, शक्ति ओ सामर्थ्य रहैछ।  जरुरत होइछ जे हम बेटी सब अपना मे निहित विशेषताक पहिचान करी, और ओकरे सदुपयोग करैत अपन अस्तित्वक रक्षा लेल तत्पर बनी। हर बेटी मे स्वाबलंबी बनबाक गुण आजुक युग मे आवश्यके टा नहि अपितु अनिवार्य सेहो अछि।

ई सच छैक जे सब लड़की डाक्टर, इंजीनियर, कलक्टर या फेर बैंक मैनेजर केर रूप मे अपना-आप केँ समाज मे प्रतिष्ठित नहि कय सकैछ, लेकिन ओ अपन समर्पण तथा प्रतिभाक उपयोग करैत आरो बहुत किछु बनि सकैत अछि, जाहि सँ समाज ओकर सराहना करत, सम्मान करत। ताहि वास्ते हरेक बेटी केँ इहिने अपना अन्दर छुपल प्रतिभाक पहिचान करब जरुरी अछि। फेर ओकरा अपन जीवन मे उतारबाक अछि, यानि ओकर उपयोग करैत अपन कैरियर केर निर्माण करब संभव होइछ।

बेटीवर्गक लेल ‘स्वरोजगार’ एकटा एहेन सुन्दर विकल्प अछि जेकर सहयोग सँ ओ केकरो पर बिना बोझ बनन अपना लेल बहुत किछु नीक कय सकैत अछि। लेकिन एहि लेल पहल ओकर माता-पिता केँ ओकरा बच्चहि अवस्था सँ करय पड़त। अपन बेटीक रुचि अर्थात् झुकाव-लगाव केर सटीक आकलन करैत ओकरा स्कूली शिक्षाक अलावा सेहो रुचिक विषय पर अतिरिक्त प्रशिक्षण दियेबाक जरुरत होएत छैक। जेना – नृत्य, संगीत, चित्रकारी, कढाई, बुनाई, सिलाई, नक्कासी, आदि अनेक विधा – कला अछि जेकर प्रशिक्षण सँ बेटी केँ ओकर भविष्य मे सहयोग भेट सकैत अछि। आइ-काल्हि कंप्युटर शिक्षाक संग आरो कतेको प्रकारक स्वरोजगारमूलक कोर्स उपलब्ध अछि जे हर बेटी स्कूलक सामान्य विषयक ज्ञानक अतिरिक्त ग्रहण करैत अपन भविष्य अपनहि निर्धारित कय सकैत अछि। आइ-काल्हि सिलाई-बुनाई केर अलावा कूकिंग कोर्स, फैशन डिजाइनिंग, इन्जिनियर डिजायनिंग, कंप्युटर कोर्स, ब्युटीशियन कोर्स – आरो कतेको प्रकारक विकल्प अछि जे बेटी जाति केँ अपन पहिचान स्थापित करबाक मे पहिल डेग साबित भऽ सकैत अछि।

मिथिलाक गाम-घर मे परंपरा सँ बेटीवर्ग मे खाना पकेबाक कला, घर-अंगना केँ सुव्यवस्थित रखबाक, फूलबाड़ी लगेबाक, पूजा-अर्चना आदि करबाक, बारी-झारी मे समुचित कार्य करबाक संग-संग खेत-खरिहान आदि पर्यन्त अपन योगदान देबाक व अपन कार्यरत माय-बाप केँ सहयोग करबाक अनेको विधा मे स्वस्फूर्त ज्ञान भेटैत छैक। संगहि ओकरा मे सिक्कीकला (मौनी-पौती बनेबाक हस्तकला), मिथिला चित्रकला, कपड़ा पर नक्कासी, सियाइ-कढाइ-बुनाइ आदि कतेको प्रकारक शीपमूलक जानकारी भेटैत छैक जेकरा ओ अपन स्वरोजगार निर्माण मे उपयोग कय सकैत अछि। गामक परिवेश मे आरो पारंपरिक ज्ञान बच्चा मे फलित भेटैत अछि। कलम-गाछी सँ पात खरैर आनब, खेत सँ साग तोड़ि आनब, इत्यादि अनेकानेक गुण बेटीवर्ग मे विकसित होएत छैक जे बाद मे ओकरा एकटा कुशल गृहिणी बनय मे तऽ सहयोग करिते छैक, ओकरा एतेक दक्ष बना दैत छैक जे सोझाँ केहनो कठिन सँ कठिन परिस्थिति कियैक नहि आबि जाएक, ओ अपने दमखम सँ ओकर सामना करैत अछि।

हमरा लोकनिक बेटीवर्ग मे प्रतिभाक कमी नहि छैक, बस जरुरत छैक जे ओकर सही पहिचान हो। एहि मे अभिभावक आर शिक्षक ओकरा सबकेँ वांछित सहयोग कय सकैत छथि। वैह ओकरा सही दिशा चयन करबा मे मददगार बनि सकैत छथि। बेटी सबहक भीतर दबल – अन्जान प्रतिभा केँ बाहर निकालब आर तेकरा मे आरो प्रशिक्षण ‍- सल्लाह – सुझाव आदिक मार्फत निखार आनब, एकर जरुरत अछि। ओकर प्रतिभा सँ ओकरा मे पहिचानक विकास होयत।

जहिना बेटीक नैहर मे ओकर माय-बाप द्वारा अस्तित्व निर्माण मे सहायता भेटैत छैक तहिना ओकरा सासूरो मे सकारात्मक वातावरण भेटब जरुरी छैक। सासूरक लोक केँ चाही जे एहि अर्थक युग मे स्वाबलंबन धर्म केँ अपनेनिहाइर पुतोहु केँ प्राथमिकता सँ चयन कएला उपरान्त ओकरा अपन बेटी समान मानदान करय, ओकरा मदैद करय, ओकरा कम नहि बुझय, आर ओकरा एकटा अवसर जरुर दियय। एहि तरहें ओ अपन अस्तित्व निर्माण करत, अपन पहिचान बनायत आर सासूरो परिवार केँ सम्बल बनत।

स्वाबलंबन लेल किछु सुझावः

  • पढाइ मे नीक कय रहल बेटी द्वारा अपनहि घर पर ट्युशन क्लास शुरु करब
  • या फेर प्ले स्कूल या प्राइमरी स्कूल घरहि पर शुरु करब
  • नृत्य-संगीत-चित्रकारी आदि मे प्रशिक्षित बेटी द्वारा अपनहि घर पर या कोनो निहित केन्द्र पर प्रशिक्षण देबाक उद्देश्य सँ स्कूल खोलिकय स्वरोजगारी बनब
  • ब्युटीशियन कोर्स कएलाक बाद ब्युटी पार्लर खोलब
  • सिलाई सिखल द्वारा सिलाई केन्द्र या टेलरिंग शौप खोलब
  • फैशन डिजाइनिंग मे प्रशिक्षित द्वारा अपन प्रशिक्षण केन्द्र वा फेर बुटिक खोलब
  • कूकिंग कोर्स मे निपुण द्वारा प्रशिक्षण केन्द्र या फेर अपन फूड स्टोर चलायब
  • जाहि कोनो शिक्षा वा कला सँ आबद्ध क्षेत्र मे निजी प्रतिष्ठानक संचालन करब

ई सब एहेन स्वरोजगार थीक जेकरा हमरा सबहक बेटीवर्ग सफलतापूर्वक आर अत्यन्त सहजताक संग कय सकैत अछि। ओकरा मे आत्मविश्वास बढेबाक लेल आर समाज मे अपन स्वतंत्र पहिचान स्थापित करबा मे ई सब स्वरोजगारक उपाय-उपक्रम एक सफल मार्गचित्र भऽ सकैत अछि।

अन्त मे, मैथिली जिन्दाबाद केर पाठक सब लेल हमर एक हिन्दी रचना समर्पित करैत छी। आशा करैत छी जे अपन मिथिलाक लोक लेल ई सब आलेख महत्वपूर्ण भऽ रहल अछि। अन्त मे ३० आलेख सहितक अपन पोथी प्रकाशन सेहो करायब ताहि अपेक्षाक संग, मैथिली जिन्दाबाद!!

बेटी की अभिलाषा

अम्मा बाबा के बगिया की

नन्हीं सी कली हूँ मैं

दादा दादी की दुलारी हूँ

भैया की प्यारी बहना हूँ

गुड़ियों के संग खेली हूँ

नाजों से पाला है सबने

प्यार मिला भरपूर तुम सबसे

अब इतनी सी है अभिलाषा

जतन करो और थोड़ा सा

सीखला दो मुझे कुछ ऐसा

मांगना न पड़े किसी से पैसा

हाथ कभी फैलाऊँ ना मैं

जी लूँ जीवन अपना शान से

बेटी होने का फर्ज निभाऊँ मैं

गर्व करोगे तुम सब मुझपर

जाने मुझे जग मेरे नाम से

ऐसा कुछ कर जाऊँ मैं….

– रितु झा