लेख विचार
प्रेषित: कीर्ति नारायण झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय : मनुष्य के जीवन मे गुरू केर कि महत्त्व अछि
“गुरुर ब्रम्हा गुरूर विष्णु गुरुर देवो महेश्वर। गुरुर साक्षात परब्रम्ह, तस्मै श्री गुरुऐ नमः” अर्थात गुरु ब्रम्हा विष्णु आ महेश तीनू छैथि आ एहेन गुरु के हमर कोटिशः प्रणाम। सनातन धर्म में गुरु के बहुत पैघ स्थान देल गेल छैन्ह। मनुखक जीवनमे सभ सँ पैघ गुरु हुनकर माता पिता होइत छथिन्ह जिनका सँ ओ एहि पृथ्वी पर जीवाक शिक्षा प्राप्त करैत छैथि। आंगुर पकड़ि कऽ चलायब, नीक बेजेए के ज्ञान, कतय बाजी आ कतय नहिं बाजी, किनका संगे कोन तरहक ब्यवहार करवाक चाही इत्यादि सभ ज्ञान लोक के अपन माय बाप सँ प्राप्त होइत छैक तें सभ सँ प्रथम आ महत्वपूर्ण गुरु मनुखक माय बाप होइत छथिन्ह। कवीर दास मनुखक जीवन के एकटा चादर सँ तुलना कऽ कऽ बहुत पैघ बात लिखने छथि जे “जब मोरी चादर बन घर आयी, रंगरेज को दीन्ही, ऐसा रंग रंगा रंगरेज ने, लालो लाल कर दीनी, एहिठाम रंगरेज गुरू के कहल गेलन्हि अछि जे मनुख पर शिक्षा के रंग चढबैत छैथि। गुरु द्वारा समान रूप सँ अपन विद्यार्थी के शिक्षा देल जाइत छैक जाहि मे किछु विद्यार्थी बड़का विद्वान् भऽ जाइत छैक तऽ किछु मुर्ख रहैत छैक। गुरु एकटा बहुत पैघ सम्मानित जाति होइत छैक। गुरु चाणक्य सेहो होइत छैथि जे एकटा रस्ता परहक चन्द्रगुप्त के राजा चन्द्रगुप्त मौर्य बनबैत छैथि तऽ गुरू द्रोणाचार्य जकाँ सेहो होइत छैथि जे गुरू दक्षिणा में एकलब्य के अंगूठा माँगि लैत छैथि जाहि सँ अर्जुन अजेय रहैथि मुदा द्रोणाचार्य सन गुरू के असली गुरू नहिं कहल जा सकैत अछि जे स्वार्थवश अपन एक शिष्य के लेल दोसर शिष्य संग अन्याय करैथि। वाल्मिकी सेहो गुरु छलाह जे सीता के दोसर बेर बनवास के समय हुनक दुनू पुत्र लव आ कुश के सभ प्रकारक शिक्षा सँ परिपूर्ण कऽ देने छलखिन्ह। एहि प्रकार सँ एकटा गुरू के सदैव निःस्वार्थ रहवाक चाही।एखनो गुरूकुल में गुरू शिष्य के परम्परा जीवैत छैक। इ बात पूर्णतः सत्य छैक जे गुरू के सभटा गुण शिष्य में आबि जाइत छैक तें नीक गुरू आदमी के जीवन के सबल आ सुदृढ बनबैत छैक। गुरू के विना ज्ञान केर परिकल्पना नहिं कयल जा सकैत अछि तें मनुखक जीवनमे गुरु के स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण मानल गेलैक अछि।