अनासक्तिः महानताक महासूत्र
बेलायत मे वकालतक पढ़ाई करबाक समय मोहनदास करमचन्द गाँधी केँ सेहो केश सीटय के आ टाइ-नौट सरियाबय मे आईनाक आगू ठाढ़ हेबाक, फेर हैट सेहो सरियेबाक लेल आईनाक आगू ठाढ़ हेबाक, सूट-बूट मे सजबाक-धजबाक आदति लागि गेल रहनि। मुदा एहि चक्कर मे कय बेर अदालत पहुँचय मे देरी भेलनि आ न्यायाधीश सँ अदालत पहुँचय मे विलम्ब करबाक – समय पर उपस्थित नहि हेबाक कारण बात-कथा सुनय पड़लनि। महान बनबाक रहनि हुनका, तुरन्त अपन एहि सब आदति केँ किनार कय देलाह।
बुद्ध यानि सिद्धार्थ (गौतम) केर पिता राजा शुद्धोदन हमेशा हर्ष-उल्लास केर अनुभूति लेल विशेष व्यवस्था कय देने रहथिन। सिद्धार्थ जखन युवाकाल मे प्रवेश कयलनि त हुनकर हर्ष-उल्लासक वास्ते ताहि समयक सर्वोत्कृष्ट सुरा आ सुन्दरी दुनू हुनका सहित समस्त मित्र-मण्डली लेल परोसल जाइत छलन्हि। मुदा सिद्धार्थ केँ सेहो महान बनबाक रहनि, ओ अर्धरात्रि मे निन्द खुजिते सुरापान कयला उपरान्त केकर केहेन हाल होइत छैक, से देखिते मन मे दृढ़संकल्प लय ओहि वातावरण सँ दूर भ’ गेलाह। क्रमशः मनक अनेकों अनुभूति अनुसार कठोर संकल्प लैत अपन पत्नी व ठोह भरिक बच्चा तक केर परित्याग कय स्वयं केँ संसारक कल्याण लेल सत्यक खोज दिश उन्मुख कय लेलाह। आइ वैह बुद्ध कहाइत छथि आ हिनकर देल उपदेश पर संसारक पैघ आबादी आगू बढ़ि रहल अछि।
मिथिलाक राजा जनक भेलाह, परन्तु राजसिकताक सर्वथा अभाव राखि ‘राजर्षि’ बनिकय सत्ताक बागडोर सम्हारलनि। मुक्तजीव बनि गेलाह। अत्यन्त दुर्लभ उपलब्धि मानल जाइछ जे एहि सांसारिक जीवन मे रहितो कियो मुक्त (liberated soul) बनय।
मिथिलाक बहुते विद्वान् सभक नाम मे सेहो ‘सर्वतंत्रस्वतंत्र’ विशेषणक प्रयोग देखि यदाकदा मन मोहित भ’ गेल करैछ। पछातिकाल धरि कतेको लोकक नाम मे ‘महामहोपाध्याय’ केर उपाधि लगबे कयलनि। हमरो सभक समय मे कियो ‘मिथिलारत्न’, कियो ‘मिथिलामणि’ आदि उपाधि सँ सम्मानित होइत देखिते छी। ई समस्त सम्मानित व्यक्तित्व मे कोनो न कोनो ‘अनासक्ति’ केर लक्षण देखलाक बादे कियो कतहु सम्मान दैत छन्हि।
आब आजुक बाजारवाद युग मे पैरवी लगा-लगा स्वयं केँ मिथिलारत्न-मिथिलामणि आदि उपाधि सँ सेहो सम्मानित करबैत अछि लोक। ओतहु देखब जे कोनो न कोनो ढंग सँ ‘अनासक्ति’ केर सूत्र मात्र काज करैत रहैत अछि। कियो अपन टकाबल सँ त कियो अपन जोगारबल सँ – मुदा अनासक्त भेले पर कतहु कियो किनको सम्मान कयल करैत अछि। आब अनैतिक अनासक्ति भले पापपूर्ण आ अपवित्र मानल जेबाक कारण लोकमन मे उपरोक्त उदाहरण सब जेकाँ सम्मानक भाव नहि आबय, लेकिन ई जोगारू-भियारू सब सेहो सूत्र त्यागहि वला अपनाबैत अछि।
हम-अहाँ मनुष्य तन पेलहुँ। अनासक्तिक विशुद्ध सूत्र पर चलिकय जीवन सफल करू। अपन शरीर, सौष्ठव, सांसारिक सामर्थ्य-सौन्दर्य आदिक प्रदर्शन सँ ‘महान’ बनयवला बात साफ बिसरि जाउ। आध्यात्मिक उन्नति जतेक प्राप्त करब, वैह आगू बढ़ायत, जीवन सफल बनायत।
हरिः हरः!!