लेख विचार
प्रेषित : आभा झा
श्रोत : लेखनीक धार”, वृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि, दहेज मुक्त मिथिला समूह।
विषय:—पाश्चात्य संस्कृति आ सभ्यता दिसि आकर्षित होईत एखन के युवा…… भविष्य मे एकर परिणाम और दुष्परिणाम।
पाश्चात्य संस्कृतिकेँ प्रभाव देशक युवा वर्गकेँ गर्तकेँ दिशामे लेने जा रहल अछि। सभक हाथमे मोबाइल आ इंटरनेट कनेक्शन भेलासँ युवा तऽ दिग्भ्रमित भइये रहल छथि संग ही छोट बच्चा पर सेहो एकर खराब प्रभाव पड़ि रहल छैक। जे बात हूनका यौवनावस्थामे सीखबाक चाही, ओहि बातकेँ आब दस बरखक बच्चा सेहो बुझि रहल अछि। छोट बच्चाकेँ समयसँ पहिने युवा भेलासँ रोकयकेँ लेल हुनकामे नीक संस्कारक बीज रोपनाइ जरूरी अछि। माता-पिता, बुज़ुर्गक सम्मान आ बेदाग व उज्ज्वल चरित्र निर्माण करयकेँ बारेमे हमरा नेनपनसँ ही शिक्षा देबाक चाही। संस्कार ही हमर देश आ मिथिलाक रीढ़ अछि। बच्चाकेँ पाश्चात्य संस्कृतिसँ दूर रखनाइ सिर्फ माता-पिताक ही नहिं पूरा समाजक दायित्व छैक।
पश्चिमी सभ्यतासँ प्रभावित युवा वर्गक मानसिकता पश्चिमी सभ्यताक प्रभावसँ फैशन आ प्रदर्शनक प्रवृत्ति बढ़ल जा रहल अछि। पाश्चात्य सभ्यता एतेक प्रभावशाली भऽ गेल अछि कि लोकक विवेकबुद्धि कुंठित भऽ गेल छैक। कोन चीज सही आ कोन चीज गलत, ई सोचनाइ बंद कऽ देने छैक। फैशनक नाम पर भारतीय संस्कृतिकेँ तिलांजलि दऽ कऽ पाश्चात्य संस्कृतिकेँ अपनेनाइ अप्पन जड़ि पर कुठाराघात केनाइ भेलै। नवीनतम अननाइ या परिवर्तन अननाइ कोनो खराब बात नहिं छैक, मुदा ओहिमे शालीनता सेहो भेनाइ जरूरी छैक। फैशनक नाम पर नग्नता, अश्लीलता, मर्यादाहीनता आदि सराहनीय नहिं छैक। एहिसँ समाजमे विकृति उत्पन्न होइत छैक। पाश्चात्य संस्कृति आ सभ्यताक नकल करी कऽ हम सभ फूहड़पन आ लज्जाहीन भऽ गेल छी। पाश्चात्य संस्कृतिकेँ आत्मसात कऽ हम अपन रीति-रिवाज आ परंपराकेँ नष्ट करैत जा रहल छी। फलस्वरूप समाजमे अपराध, अशिष्टता, अश्लीलता, पारिवारिक विघटन उत्पन्न भऽ रहल छैक। पाश्चात्य सभ्यताक ही परिणाम अछि कि विवाहक बाद बहुत जल्दी संबंध विच्छेद भऽ जाइत अछि। ई पाश्चात्य संस्कृतिकेँ ही प्रभाव अछि कि पति-पत्नीक संबंधक बीच तेसरकेँ उपस्थिति न्यायोचित ठहराओल जा रहल छैक। युवक-युवती पर माता-पिताक कोनो अंकुश नहिं रहल। गर्लफ्रेंड, बाॅय फ्रेंड आधुनिक फैशन छैक। रातिमे देरी तक घरसँ बाहर रहनाइ, क्लब पार्टी, ड्रिंक व डांस केनाइ ई सब पाश्चात्य संस्कृतिकेँ ही प्रभाव छैक। प्रेम विवाह एहि संस्कृतिकेँ देन अछि। पाश्चात्य सभ्यता ही माँकेँ मौम व पिताकेँ डैड कऽ देने अछि। गुरु-शिष्य तथा भाई-बहिन आदिकेँ अतिरिक्त समाजक अहम व महत्वपूर्ण संबंध सेहो एतेक दूषित भऽ गेल अछि जेकरा सुनि कऽ लोक शर्मसार भऽ जाइत अछि।
युवा पीढ़ीक महत्वकांक्षा एतेक बढ़ि चुकल अछि कि संस्कारक लेल हुनक जीवनमे कोनो स्थान नहिं रहल। पश्चिमी जगतक प्रभावसँ सहनशीलता जेहेन गुण कम भेल जा रहल छैक। माता-पिता हुनकर नीकक लेल कोनो सुझाव दैत छथिन तऽ बच्चा ओकरा मानै लेल तैयार नहिं अछि। फौरन हुनकर सुझावकेँ नकारि दैत अछि। बच्चा आ युवा आइ काल्हि छोट-छोट बात पर उत्तेजित भऽ जाइत अछि। मारा पीटी तककेँ नौबत आबि जाइत छैक। बातकेँ सहन करयकेँ सामर्थ्य बच्चामे नहिं रहल। बच्चामे संस्कारक बीज अंकुरित करब तखने समाजमे ओ पल्लवित पुष्पित हैत। बच्चा सहनशील बनि कऽ अपन जिम्मेदारीकेँ कर्तव्यनिष्ठासँ निर्वहन करत। संस्कारक बिना जीवन किछु नहिं अछि।
परिवर्तन प्रकृतिकेँ नियम अछि, मुदा ई परिवर्तन हमरा पतनक दिशामे लऽ कऽ जा रहल अछि। युवाकेँ एना करयसँ रोकबाक चाही, नहिं तऽ जे संस्कृतिकेँ बल पर हम गर्व महसूस करैत छी, ओ गलत दिशामे जाइ लेल तैयार अछि। हमर परिवर्तनक मतलब सकारात्मक हेबाक चाही जे हमरा बुराई सऽ अच्छाईकेँ दिस लऽ जाय। संस्कृतिकेँ बिना समाजमे कतेको विसंगति फैलल जा रहल अछि, जेकरा रोकनाइ अत्यावश्यक अछि। युवाकेँ अपन संस्कृतिक महत्व बुझबाक चाही आ ओकर रक्षा करबाक चाही। पश्चिमकेँ लाली आ पूबक इजोतमे बहुत अंतर छैक। पूबक इजोत भोरकेँ होइत अछि जे सभकेँ जगबैत अछि, स्फूर्ति दैत अछि आ पश्चिमकेँ इजोत सांझक होइत अछि जे अन्हार अनैत अछि, सभकेँ सुतबैत अछि।
जय मिथिला, जय मैथिली ।