आबक डिजिटल सोच सादा जीवनक नामो- निशान मेटा देलकै

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लेख

प्रेषित : नीलम झा निवेधा

#लेखनीक_धार

ज्यों सादा जीवन उच्च विचार,
कहल जाइथ ओ गरीब लचार।
रूप रंग सँ मक्खीचूस लगैत छैथ,
या त’ हिनक दीन दुखी सन व्यवहार।।

एकटा समय छल जे लोक अपने भुखलो रहिकए लोकक मान-सम्मान रखबा लेल तैयार रहैत छल।एक दोसरके सुख-दुखमे हर वक्त संग दैत रहैत छल। ओहि समयमे सुखी लोक कम रहैत छल मुदा खुशी सभ रहैत छल।एखुनका युगमे सुखी सभ अछि मुदा खुशी बड्ड कम लोक अछि।आइ काल्हि लोक औकाद सँ बेसी देखा-देखी पर बेसी जोर दैत छथिन। अपन ओहदा औकाद सँ बेसी आडम्बरमे सतत डूबल रहैत छैथ।एहि तरहें लोककेँ बहुत दुखक सामाना कर परैत छैन ,मुदा आब आधुनिक युगमे ततेक ने फैशन बढ़ैत गेलैक अछि जे लोक देखा-देखी ओहि आडम्बरमे सतत पिसाइत रहैत अछि। सभहक हाथमे स्मार्ट फोन, सभहक घरमे भीतपर टांगल टीवी,वाॅसिंग मशीन, फ्रिज,आरो,कुलर,एसी, रहन सहन तौर तरिका सभ एक दोसराक देखा-देखी। एहि सँ बहुत घर कर्जमे सेहो डूबल रहैत अछि। आ परिणाम आब ई छै जे “सादा जीवन उच्च विचार त’ आब गौण भेल जा रहल अछि जा रहल अछि देखाबटीके फेरी मे” दुनिया।
परिणाम :- पहिरब- ओढ़ब, खानपान, रहन -सहन सभ आब सभकेँ बहुत नीक भगेल अछि पहिने सँ मुदा परिवारिक स्नेह, बोलीमे मधुरता जेष्ठ लिहाज सत्कार , छोटक प्रेम दुलार सभ लेस मात्र नहि रहि गेल अछि। समाजिक दबाव, लोक की कहत तकर लोकलाज, कहीं ककरो बेगर्तामे हमर चीजक खगता नञि भ’ जाइक ई विचार, हमरा ककरो सँ बेर पर कोनहुँ बेगर्त नञि परि जाइक ई सभ विचार आब लोकक मोनमे अबितो नञि छैन।
एकटा काकी कहैत छलखिन:- ऐंड़ी ऊँच आ व्यवहार बुच से पैर छै आब। आब लोक बेटाके उपनायन लाखक लाख टका लगाकए करैत छैथ मुदा जनेउके मूल मंत्र बुझले नञि रहैत छैन। पहिने एकदम सादगी ढंग सँ उपनायन होइत छल मुदा बच्चा जनेउके मूल महत्व बुझैत छलखीन। स्नान कए गायत्री नित्य जपैत छलखीन। बेटा-बेटीके वियाहमे ततेकने ताम-झाम बैढ़ गेल अछि ततेकने आडम्बर बढ़ल अछि जे लोक सभ विध -व्यवहार बिसैर कए हल्दी मेंहदी डीजे नृत्य सभमे व्यस्त रहैत छैथ। आबक ई डिजीटल दुनिया त’ सादगीकेँ नामो निशान मिटा देलकैक।
मुदा एखनहुँ ज्यों लोक एहि सँ बचए चाहैत छैथ त’ एहि भ्रमित युग सँ बाहर निकलि अपन ओहदा औकाद अनुसार चलैत नीक सँ जीवन स्वव्यबस्थित कर सकैत छैथ।

नीलम झा “निवेधा”✍️
जनकपुरधाम

#लेखनीक_धार

ज्यों सादा जीवन उच्च विचार,
कहल जाइथ ओ गरीब लचार।
रूप रंग सँ मक्खीचूस लगैत छैथ,
या त’ हिनक दीन दुखी सन व्यवहार।।

एकटा समय छल जे लोक अपने भुखलो रहिकए लोकक मान-सम्मान रखबा लेल तैयार रहैत छल।एक दोसरके सुख-दुखमे हर वक्त संग दैत रहैत छल। ओहि समयमे सुखी लोक कम रहैत छल मुदा खुशी सभ रहैत छल।एखुनका युगमे सुखी सभ अछि मुदा खुशी बड्ड कम लोक अछि।आइ काल्हि लोक औकाद सँ बेसी देखा-देखी पर बेसी जोर दैत छथिन। अपन ओहदा औकाद सँ बेसी आडम्बरमे सतत डूबल रहैत छैथ।एहि तरहें लोककेँ बहुत दुखक सामाना कर परैत छैन ,मुदा आब आधुनिक युगमे ततेक ने फैशन बढ़ैत गेलैक अछि जे लोक देखा-देखी ओहि आडम्बरमे सतत पिसाइत रहैत अछि। सभहक हाथमे स्मार्ट फोन, सभहक घरमे भीतपर टांगल टीवी,वाॅसिंग मशीन, फ्रिज,आरो,कुलर,एसी, रहन सहन तौर तरिका सभ एक दोसराक देखा-देखी। एहि सँ बहुत घर कर्जमे सेहो डूबल रहैत अछि। आ परिणाम आब ई छै जे “सादा जीवन उच्च विचार त’ आब गौण भेल जा रहल अछि जा रहल अछि देखाबटीके फेरी मे” दुनिया।
परिणाम :- पहिरब- ओढ़ब, खानपान, रहन -सहन सभ आब सभकेँ बहुत नीक भगेल अछि पहिने सँ मुदा परिवारिक स्नेह, बोलीमे मधुरता जेष्ठ लिहाज सत्कार , छोटक प्रेम दुलार सभ लेस मात्र नहि रहि गेल अछि। समाजिक दबाव, लोक की कहत तकर लोकलाज, कहीं ककरो बेगर्तामे हमर चीजक खगता नञि भ’ जाइक ई विचार, हमरा ककरो सँ बेर पर कोनहुँ बेगर्त नञि परि जाइक ई सभ विचार आब लोकक मोनमे अबितो नञि छैन।
एकटा काकी कहैत छलखिन:- ऐंड़ी ऊँच आ व्यवहार बुच से पैर छै आब। आब लोक बेटाके उपनायन लाखक लाख टका लगाकए करैत छैथ मुदा जनेउके मूल मंत्र बुझले नञि रहैत छैन। पहिने एकदम सादगी ढंग सँ उपनायन होइत छल मुदा बच्चा जनेउके मूल महत्व बुझैत छलखीन। स्नान कए गायत्री नित्य जपैत छलखीन। बेटा-बेटीके वियाहमे ततेकने ताम-झाम बैढ़ गेल अछि ततेकने आडम्बर बढ़ल अछि जे लोक सभ विध -व्यवहार बिसैर कए हल्दी मेंहदी डीजे नृत्य सभमे व्यस्त रहैत छैथ। आबक ई डिजीटल दुनिया त’ सादगीकेँ नामो निशान मिटा देलकैक।
मुदा एखनहुँ ज्यों लोक एहि सँ बचए चाहैत छैथ त’ एहि भ्रमित युग सँ बाहर निकलि अपन ओहदा औकाद अनुसार चलैत नीक सँ जीवन स्वव्यबस्थित कए सकैत छैथ।