“भौतिक युग मे संबंधक मायने बदलि रहल अछि।”

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— पूनम ठाकुर।     

आई कल्ही के भौतीक युग मे लोक भौतिक सुख के ही सुख बुझाई छथिन। हुंनका होई छन्ही जे किनको जरूरत जिंदगी में ने पड़त। लेकिन लोक बिसरि जल जे मनुष्य एक सामाजिक प्राणी अछि।
हमरा हिसाबे एकल परिवार सेहो एकर बहुत पैघ कारण अछि।
पहिने सब एक संग रहै छलाह। एक रंग ललन पालन होयत रहैं। सब के एक दोसर स प्रेम – भाव एक दोसर संग सहयोग के भावना रहैत रहैंन।
परिवार त परिवार टोल समाज सेहो एक दोसर के संग मिल जुली क रहैत छलाह। भौतिक युग में संबंध के मायने बदली गेल।
माँ बाप, बच्चा बस एतबे परिवार होयत अछि। अही भौतिक युग में लोक संबंध हुनके स रखो चाहै छ थी जिया लग पैसा छन्ही।
आब पहिने जका बियाह , मुडंन, उपनएन मे माहौल नै रहैये कारण अब लोक सब के सुविधा चाहि। तखन त अबये जेता नै त नै। तें अब बेसि लोक होटल स करै छथी। होटल मे सब अ प्पन – अप्पन रूम मे रहता बस विध काल या फेर खै पिबो काल भेंट होय छैन। पहिने घर स होय सब के एक संग सुतना य बैसनै खेनाय पिनाय सब संग मे होय। माहौल बहुत खुशनुमा रहैत रहै। हँसी- ठठ्ठा गीत नाद , विद्ध – बेव्हार सब मे सब बढ़ी चढ़ी के हिस्सा लयेत रहैथ। अब आई सब के कोनो मतलब नै रही गेल।

हमर नहीरा के मोहल्ला मे एक गोटे घर बनेला। गृह प्रवेश में किनको नै कहलखिन दु मास के बाद घरबाय मृत्यु भो गेलैं। घर मे चारि गोट लोक नै छलै जी कंधा देतै। तहन हमर भाई गेल और लोक के लो के गेल तहन हूँनकर संस्कार भेलाएन।