“आधुनिकताक फेरमे पिसाइत संबंध”

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— ज्ञानदा झा।   

लाल कका भोरे स्नान,पूजा-पाठ आ जलपान क क दरबाजा पर बैसल छैथ कुर्सी लगाक खरिहान मे टेंट लागि रहल छैन आइ चारि दिन सॅ ।असगर बैसल छैथ कियो कतहू नै। बेटा पूतहू काइल्ह गाडी धेलखिन आइ कखनो पहुंच जेथिन। काकी सेहो ऑगन मे बुढिया खवासनी के घर झारले कहै छथिन। कारण जे पोतीके विवाह छैन। बेटा पुतहु त कहल्कैन किछु नै करय लेकिन की सोचतैन जे घर मे कते झोल लागल छै ताय। काकी बुढ देहे करबो की करती त कीछु लुरुखुरु क लै छैथ। जहिये सुनलखिन विवाह ठीक भेलै तहिये सॅ हाथी, चाॅनडाला ले माटि लाब कहै छथिन खवासनी के लेकिन पुतहु कहलखिन माॅ सबटा आब रेडिमेड भेटै छै नै परेशान होवथु। दलान पर कका कहै छथिन टेन्ट बला छरा सबके ओत कनी आगा कदहि त ओ सब कहै छनि बाबा मालिक सॅ बात भ गेल छै। कोनो चहल पहल नै। लाल कका बैसल सोचैथ की समय आबि गेलै। पहिने बेटीके विवाह बुझाई जे समाज भरिके बेटीके विवाह होइ। काॅहा ई टेन्ट, फेंट छलै। सभागाछी सॅ वर अबैथ रातिये मे सब ओरियान भ जाइ। भरि गांवक छौरा सब दौर दौर क बेंच, कुर्सी, जाजिम, सतरंगी सॅ दलान भरि दै ऑगन के काज स्त्रीगण सब समहाइर लै एक बेर खाली कीयो सुनि जाइ फल्ला ओत विवाह छै रातो राती साज, बाज, आदर सत्कार कुन बाटे भ जाइ आ आइके समय छै ककरो सॅ ककरो मतलब नै कारण सब कार्यभार त साटा बला समहाइर लै छै बरियातिक स्वागत तक ओकरे आदमी करतै गौवा समाज के कोनो काज नै रहि गेलै त अपनत्व कोना रहतै लाल कका बडा आहत भेला जे आधुनिकता के चक्कर मे रिश्ता तक पिसा रहल अछि ।