— दिलिप झा।
आत्म निर्भर मैथिल के जखन कखनो संकल्पना करैत छी तs बहुधा मिथिलांचलक गृह उद्योगक स्थिति आ मिथिलांचल में एकर संभावना दिस ध्यानाकर्षित भs जाइत अछि। फेर मिथिलांचलक भौगोलिक स्थिति, संस्कृति, मौलिक संसाधनक प्रचुरता, उत्पाद के प्रति मैथिल अथवा वैश्विक जन के अभिरुचि, उत्पाद खपैबाक लेल बजार, उत्पाद के भंडारण, उपभोक्ताक क्रय शक्ति, मुक्त बाजार में मांग आ आपूर्तिक सामर्थ्यता इत्यादि इत्यादि दिशा में अंतः मन में स्वतः मंथन आरंभ भ जाइत अछि। जकर पूर्व आकलन करब आधुनिक समय के प्रतिस्पर्धा के देखैत कोनो उद्योग के सफलता आ विकास के लेल प्रथम आ परमावश्यक कारक छैक कारण सदिखन कोनो उद्योग चाहे ओ गृह उद्योग होईक अथवा लघु उद्योग होईक जोखिम के संभावना सs जकरल रहैत अछि।
आई एतवा कहैत गर्वक अनुभव होइत अछि आ संगहि सन्तुष्टि भेटैत अछि जे एहि महत्वपूर्ण दिशा में “मिथिला गृह उद्योग” मिथिलाक सुसंस्कृति में रचल बसल सांस्कृतिक खान पानक वस्तुनमा सभ के बजार में प्रतिस्थापीत करय बाला पहिल घरेलू सुक्ष्म उद्यम के रूप में अपन पहचान बनैबा में सक्षम भेल अछि।
हमर अभिप्राय इ थिक जे जs वातावरण में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनक उपयोग सs विशुद्ध गुणवत्ता युक्त विविध तरहक घरेलू अचार, जेना आमक अचार, अदौरी, दनौरी, कुम्हरौरी, मुरब्बा, खटमिट्ठी, सत्तू आ अन्य तरहक पारंपरिक व्यंजन सभक बिक्री विपनन में संलिप्त सूक्ष्म उद्यम अछि। जाहि सs उपभोक्ता के खांटी स्वाद संतुष्टि भेटतैन्ह आ वैश्विक बजार में मिथिलाक गृह उद्योग प्रतिस्पर्धाक दौर में अपना आप के स्थापीत कs सकत।
मिथिलांचल मखानक उत्पादन के लेल प्रसिद्ध अछि। जे औषधिय गुण सs भरल पुरल आ पोषक तत्व के प्रचुरता के लेल प्रख्यात अछि। एकरा भूजि कs खीर, मिठाई, नमकीन इत्यादि बनाबs में कैल जाईत छैक। एकर संरक्षण सेहो आसान होईत छैक। अतः एकर विभिन्न उत्पाद के नीक पैकेजिंग कs कs गृह उद्योग के रूप में अपनैल जा सकैत अछि।
मिथिलांचल बहुतों तरहक आम आ शाही लीचीक उत्पादन के लेल प्रख्यात अछि। अपितु मिथिलांचल लीचीक उत्पादन आ गुणवत्ता में तs अग्रगण्य अछि। एहि सs संबंधित गृह उद्योग सभक मिथिलांचल में प्रबल संभावना विद्यमान अछि।
बहुत किछु हस्त कला सs संबंधित जे हमर संस्कृति के अभिन्न अंग रहल अछि जेना जनऊ के निर्माण, पाग आ घुनेश, मिथिला पेंटिंग इत्यादि के गृह उद्योग के रूप में स्वीकार कैल जा सकैत अछि। कारण ई सब अपन गुणवत्ताक लेल पहिले सs प्रख्यात अछि। आवश्यकता थिक उचित बजारीकरण के आ पहचान के।
अंत में एतवा कहब अछि जे जखन बर्गर-पिज्जा, इडली-डोसा, ढ़ोकला-ठेपला, चाउमीन-मोमोज इत्यादि सब अन्य प्रदेशक खान-पानक वस्तु यदि हमरा लोकनिक चिनबार तक आबि सकैयै आओर हम सभ रुचि पुर्वक उपभोग करैत छी। तs एहेन स्थितिमे हमरा लोकनिक सांस्कृतिक, पारंपरिक खाद्य पदार्थ अन्य प्रान्तक लोक सभ उपभोग करथि ताहि लेल एहि वस्तु सभकेँ बजार तक अनबाक आ प्रचार के अवश्यकता छैक। जाहि में समाजक प्रबुद्ध लोक सभसँ प्रोत्साहन अति आवश्यक छैक जकर अभाव अपन समाज में अछि। जs सम्पूर्ण प्राकृतिक संसाधनक उपयोग सँ शुचिता आ गुणवत्तापूर्ण वस्तु उपलब्ध करैल जेतैक तs उपभोक्ताक संख्यामे दिनानुदिन अभिवृद्धि अवस्यंभावी छैक। एहि सs ग्रामीण स्तर पर स्वरोजगार के सृजन होयत आ पलायन पर अंकुश लागत। गृह उद्योगक संकल्पना में महिला सहायता समूह के बहुत महत्वपूर्ण भूमिका भs सकैत अछि।
प्रवासी मैथिल समाज सँ आह्वान रहत जे अपन माटि सs पलायन रोकबाक लेल मिथिलाक पौराणिक सभ्यता संस्कृति आधारित गृह उद्योग के पुन: स्थापित करबामे अपना स्तर पर अपन योगदान प्रदान करथि।