— दिलिप झा।
पहिले हम गताती विवाह के परिभाषित करs चाहब कारण समयक प्रवाहक संग आधुनिकता आ समयाभाव में ई शब्द सेहो अपन अस्तित्व के बचेबा में असमर्थ देखल जा रहल अछि। गताती विवाहक अर्थ थिक विवाह कोनो मध्यस्थ व्यक्ति अथवा मध्यस्थ सर कुटुम्ब के माध्यम सs हुनकर कुटुम्ब वा हुनकर कुटुम्बक कुटुम्ब अथवा हुनकर बुझल गमल परिवार में केनाइ। मिथिलांचल में पहिले एहि तरहक कुटमैती यदा कदा देखल जाईत छल आ कमो बेस आइओ अपन मैथिल समाज में देखल जाईत अछि। एकर प्रचलन, प्रधानता आ महत्व किछु पहिने तक खूब छल जा धरि अपन सभक समाज में विवाहक सम्बन्ध में सौराष्ट्र में मैथीलक सभाक महत्व छलैक। जाहि में मिथिलाक बरागत समूह, एक सs एक बर सब तरहक योग्यता राखs वाला, कन्यागत समूह सभ मिथलांचलक सूदूर गाम गाम सs एकत्रित होईत छलाह आ अपन दृढ़ इक्षाक अनुसार अपने कुनु कुटुंब के अथवा बुझल गमल व्यक्ति विशेष के माध्यम बना हुनकर कुटुंब अथवा कुटुंबक कुटुंब के कूटमैती लेल उपयुक्त चयन करैत छलाह। परंतु दुर्भाग्यवश आई अपन मिथलांचल में मैथिल समाज के गैरवशाली सभा गाछीक अस्तित्व दम तोरि रहल अछि जे आजुक युग में प्रवासी मैथिल के समयक अभाव आ ब्यस्त्ततम जीवन के लेल कूटमैती करबा में बहूत समस्या उत्पन्न कs रहल छैक। फलस्वरुप हमरा सभ के मैरेज ब्युरो के शरणागत बनबाक लेल बाध्य होमय परि रहल अछि।
लगभग सभ प्रथा में किछु गुण आ किछु दोष रहैत छैक पूर्णतः आदर्शताक कल्पना नहि कैल जा सकैत अछि तैं चलु आब गताती विवाहक गुण आ दोषक चर्चा करी।
एहि बिबाहक सब सs नीक पहलू ई अछि जे कन्यागत आ बरागत कतहु संशय में नहि रहैत छैथ एक दोसराक बाड़े में पूर्ण भीज्ञ रहैत छैथ कारण मध्यस्थता कोनो बुझल गमल व्यक्ति वा कोनो कुटुंब जे पहिले सs चिन्हल परखल रहैत छैन्ह ओ करैत छथीन्ह। एहि तरहक विवाह में बरक योग्यता, बरक परिवारिक प्रतिष्ठा, बरक परिवारिक आर्थिक स्थिति, कान्याक योग्यता, गुण, आचार व्यव्हार, रूप गुण, अहिलोकिक गुण, कान्याक परिवारिक प्रतिष्ठा इत्यादि इत्यादि सs दूनू पक्ष पूर्णतः अवगत रहैत छैथ आ फलस्वरुप दुनू पक्ष के आत्मिय संतुष्टि के बोध होइत छैन्ह। कुनू कूनू संदर्व में तs इहो देखल जाइत छैक जे कनियाँ आ बर एक दोसर सs पहिले सs परिचित रहैत छैथ। अतः एहि में कोनो तार्तम्य नहि जे गताती विवाह में दुनू परिवारक संग संग बर कनियाँ सम्बन्ध में मधुरता रहैत छैक आ कोनो तरहक बिकट परिस्थिति में समंजस्य स्थापित करबाक क्षमता प्रवल होइत छैक। एहि सन्दर्भ में मिथिलाक बहु चर्चित लोकोक्ति “चिन्हले बर आ चिन्हले कनियाँ” चरितार्थ होइत अछि।
कहुखन कहूखन गताती विवाह के दुष्परिणाम सेहो देखल जाइत छैक जे भविष्य में ववंडर के रूप में दुनू परिवारक मध्य अबैत छैक। गताती विवाहक सफलता मध्यस्थक आ दुनू पक्षक कर्तव्यनिष्ठता पर निर्भर करैत छैक। जs एहि में कतहु अस्पष्टवादिता, लोभ, फूसि वक्तव्य संलिप्त होईत छैक तs दुष्परिणाम स्वतः अबस्यंभाबी भ जाईत छैक। एहना परिस्थिति में मध्यस्थ के अपन कूटुम्ब समूह में लज्जित होमय परैत छैन्ह आ भविष्य में हुनकर विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लागि जाइत छैन्ह। बर पक्ष, कान्या पक्ष, बर आ कनियाँ सब में कतहु ने कतहु अविश्वास उत्पन्न होइत छैन्ह जे परिवारिक कलह के मूल कारण होइत छैक।
अतः हमर कहब अछि जे जs एहि में स्पष्टवादिता, निर्लोभता, सत्य वक्तव्य आ कर्तव्यनिष्ठताक अनुपालन कैल जाइक त गताती विवाह प्रथा कटूमैती नहि अपितु कुटमैती शब्द के सहज, सरल, सार्थक आ सूमधुर रूप में परिभाषित आ चरितार्थ करत।
जय मिथिला जय मैथिली
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