“बापक दुलारू बेटी दुइर गेली आ कोहा ल’ क’ उइर गेली”

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— कीर्ति नारायण झा।     

“बापक दुलारू बेटी दुइर गेली आ कोहा लऽ कऽ उइर गेली” ई अपना सभक ओहिठाम एकटा ब्यवहारिक फकरा छलैक।मनोविज्ञान में एंटी सेक्स स्नेह होयवाक कारणे बाप के अपन बेटी सँ आ माय के बेटा सँ कनेक बेसी लगाव होइत छैक।पुरूष प्रधान समाज में बाप के बेसी स्नेह होयवाक कारणे बेटी पर एकर दुष्प्रभाव पड़लैक। बाप बेटी के सभ तरह सँ दुलार करवाक लेल तैयार रहैत छलाह मुदा जखन ओकर शिक्षा के बेर अबैत छलैक तऽ ओ पाछू हँटि जाइत छलाह आ सभठाम बजैत छलखिन जे बेटी के पढा लिखा कऽ की हेतैक? ओकरा की कोनो हम अपना लग रखवैक? ओकर बियाह हम राजकुमार सँ करेबै आ ओ रानी बनि कऽ सासुर में राज करत। इ बात एकदम सही छैक जे अपन धिया पूता सभके नीक लगैत छैक आ सभ माय बाप के इच्छा रहैत छैक जे ओकर धिया पूता सभ दिन सुखी रहय मुदा तकरा लेल शिक्षा के अनिवार्यता बहुत बेसी छैक। शिक्षा के विना जिनगी चलाओनाइ बहुत कठिन छैक जकर महत्व पहिले के माय बाप नहि बुझैत छलखिन्ह जकर परिणामस्वरूप ब्यवहारिक पटुता के बाबजूदो बेटी के बौद्धिक विकास में शिक्षा के अभाव के कारणे कमी रहैत छलैक जाहि सँ बेटी के महत्व बेटा के तुलना में कम रहैत छलैक। आस्ते आस्ते ओहि बेटी में एकटा हीन भावना के संचार होमय लगलैक। बौद्धिक विकास के अभाव के कारण सभ दिन पति पर निर्भरता बढि गेलैक जकर कारण पति के विशिष्टता बढलाक कारणे मौद्रिक भरपाई आरम्भ भेलैक आ माय बाप जे बेटी के नहिं पढाओलाक कारणे बचत राशि के बेटी के बियाह में जमाय के देनाइ आरम्भ कयलनि जे आस्ते आस्ते दहेजक भीषण रूप लैत गेल। अपना सभक मिथिला समाज मे देखसी सभ सँ बेसी पाओल जाइत अछि। बेसी आदमी के मुँह सँ इ सुनवा में अबैत छैक विशेषतः बरक माय के मुँह सँ जे फलामा के बियाह में एतेक पाई भेटलैक आ हमर बेटा के की ककरहु सँ औकादि कम छैक? फलामा एतेक लेलकै अछि तऽ हम एतेक लेबै। बेटी के माय के रूप में एक शब्द नहिं बाजय बाली बेटाक बियाह के समय भाषा में अभूतपूर्व परिवर्तन होइत छैन्ह आ इ देखसा – देखसी के कारणे गरीब घरक सुंदर आ सुशील कन्याक बियाह दहेजक अभाव के कारणे उपयुक्त सम्बन्ध सँ बंचित रहि जाइत छैथि आ पाइ बला के घरक कनाहि कोतरि केर बियाह दहेज के बल पर सुयोग्य बर सँ भऽ जाइत छैक। अपना सभक ओहिठाम बेटी के बियाह में कन्यादान के प्रथा छैक जाहि मे पहिले बेटी के बाप कन्यादान करैत छलखिन्ह आ जनेऊ सुपारी, वस्त्र आ नाममात्र के द्रव्य लऽ कऽ कन्यादान कयल जाइत छलैक आब इच्छा आ औकादि के बिपरीत स्वर्ण आभूषण आ महग महग चीज सँ कन्यादान के समय कन्या धन के बदला मे मौद्रिक दान देवाक प्रथा मध्य आ कमजोर बर्ग के कन्या के पिता के रीढ के हड्डी के तोड़ि देलकै। लोक दहेज लऽ कऽ अपना के गौरवान्वित अनुभव करय लगलाह आ समाज सेहो हुनक मानसिकता के स्वीकार कयलक जे मिथिलावासी के लेल दुर्भाग्य थिकैक मुदा आब परिस्थिति मे परिवर्तन भऽ रहल छैक। लोक आब कन्या के शिक्षा पर बेसी जोर देबय लगलखिन अछि जे दहेज प्रथा के रोकवाक लेल सार्थक सिद्ध होयत। आइ काल्हि सभ प्रतियोगिता में समाजक बेटी, बेटा के उपर बीस पड़ि रहल अछि, अपन सभक समाज जे पहिले बेटी के शिक्षा पर मखौल उड़ाबैत छल आब ओ बेटी के शिक्षा के स्वागत कऽ रहल अछि। आब शिक्षित बेटी के बियाह के लेल बेटा बला सभ एडवांस बुकिंग आरम्भ करय लगलन्हि अछि। जहिना पहिले नीक जमाय के लेल लोक रणे बने फिरैत छल आब नीक पुतोहु के लेल बगुला जकाँ ध्यान लगाओने रहैत अछि। आब दहेज रूपी दानव के अन्त होयवाक समय आबि रहल छैक आ हमरा हिसाबे दहेज प्रथा के समाप्त करवाक सभ कारगर वाण बेटी के शिक्षा, ओकर आत्मविश्वास आ आत्मबल बढेला सँ दहेजक नाम एहि समाज सँ मेटा जायत। हँ इच्छा सँ जँ अहाँ अपन बेटी के लेल किछु देवय चाहैत छियैइ ओना ओ शिक्षित भेलाक कारणे स्वीकार नहिं करत मुदा स्नेहवस किछु दैत छियैइ तऽ ओ दहेजक श्रेणी में नहिं अबैत छैक। माँग रूपी वस्तु के दहेज मानल जाइत छैक। दहेज लेवय बला के निम्न स्तर के लोक बूझय पड़त ताहि लेल हुनका अभावग्रस्त केर सूचि में राखल जायत संगहि सांकेतिक रूप सँ हुनका समाज सँ वहिष्कार करवाक प्रयास आरम्भ करय पड़त।हुनका एहि बात के लेल शिक्षित करय पड़त जे दहेज लेनाइ कोनो शान के बात नहिं छियैक। अयाची के मिथिला में दहेज एकटा याचना थिकैक आ बिनु माँगे मोती मिले माँगे मिले न भीख केर आदर्श अपन समाज में स्थापित करय पड़त।