“दानव दहेजकेँ दमन करू”

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— आभा झा।     

स्वतंत्रता प्राप्तिकेँ पश्चात भारत जतय विज्ञान आर उद्योगक क्षेत्रमे एतेक विकास केने अछि,ओहि ठाम किछु कुरीतिकेँ सेहो विकसित होइकेँ अवसर प्राप्त भेल अछि। अहि कुरीतिमे सर्वप्रमुख अछि – दहेज- प्रथा। ‘दहेज ‘ तीन अक्षरक एक छोट सन नाम आइ अपन समाजकेँ मस्तक पर एक कलंक बनि चुकल अछि। एक एहेन कलंक जे जीवनकेँ अंधकारमय बना देने अछि। ई एक एहेन दानव अछि जे कतेको मासूम बेटीकेँ लील चुकल अछि आर नहिं जानि आर कतेको लील जायत। दहेज आपदाकेँ असीम सागर अछि,चिंताक बीहड़ जंगल अछि,माता- पिता के सुख- शांतिकेँ विनाशक अछि। अहि दहेजक शापसँ ग्रस्त सहस्रो नारी या तऽ रेलक पटरी पर कटि कऽ या नदीमे डूबि कऽ अपन प्राणक बलि दऽ दैत छथि,नहिं तऽ अपन परिवारजन पर बोझ बनि नारकीय जीवनकेँ वैतरणीमे बिलबिलाइत रहैत छथि।
कतेको सीता गंगा मायक गोदमे सुति जाइत छथि?
कतेको गीता रेलक पटरी पर लेट जाइत छथि?
के गिनत हिनकर संख्या रोज रांगल अखबार सँ?
वर्तमान समयमे दहेज प्रथा प्रचलित अछि,किन्तु अहि बातसँ इंकार नहिं कयल जा सकैत अछि कि प्राचीन कालमे सेहो ई प्रथा छल। प्राचीन ग्रंथ अहि बातक संकेत दैत अछि कि विवाहक समय कन्याकेँ अपने माता-पिता दिससँ किछु वस्त्रालंकरण,बर्तन आदि घरेलू उपयोगक वस्तु उपहास्वरूप देल जाइत छलनि। ई एक प्रकारक दान होइत छल,जेकर नाम बादमे दहेज पड़ि गेल।
अपन देशमे या मिथिलामे लड़कीकेँ लक्ष्मीक रूप मानल जाइत अछि। आइ दहेज प्रथाक स्वरूप एतेक विकृत भऽ गेल अछि कि यदि कन्या पक्ष,वर पक्षक इच्छानुसार दहेज नहिं जुटा पाबैत छथि तऽ कन्याकेँ लग्न मंडपमे ही छोड़ि देल जाइत अछि। एहेन अवस्थामे वधू व हुनकर परिवार -जन पर कि बीतैत हैत,ई दहेजक लोभी भेड़िया कि जानय।
दहेज प्रथाक कारण आइ समाजमे दहेजक नाम पर वरकेँ सौदाबाजी होइत अछि। लड़की के गुण,शील,
सौंदर्यक परख ओहिसँ प्राप्त दहेजसँ होइत अछि।
कखनो-कखनो तऽ दहेजक अभावमे एक षोडशी
के सेहो वृद्ध अथवा विधुरक संग जीवन निर्वाह करय
पड़ैत अछि। आत्महत्या,भ्रष्टाचार,तलाक आदि कुप्रथा सेहो दहेजक कुप्रभाव अछि। सब अनुभव करैत अछि
कि दहेज एक महारोग अछि। ई कैंसरक भाँति निरंतर
बढ़ैत जा रहल अछि। एकर निवारण अनिवार्य अछि। एकरा दूर करय लेल समय-समय पर अनेक अभियान
चलाओल गेल,जेना अपन दहेज मुक्त मिथिला अभियान। जाबे तक लोकक दृष्टिकोण परिवर्तित नहिं होयत,युवा वर्ग स्वयं आगू आबि कऽ दहेज प्रथाक उन्मूलनक लेल आवाज बुलंद नहिं करता,ताबे तक ई समस्या दूर नहिं भऽ सकैत अछि।
भारत सरकार सन् 1961 में दहेज-उन्मूलन कानून बनेने छल। अहि कानूनकेँ अनुसार दहेज लेनाइ आर देनाइ एक अपराध अछि तथा अहि कानूनक उल्लंघन करय वालाकेँ कड़ा दंड देबयकेँ प्रावधान अछि। किन्तु दहेज लोलुप अहि कानूनक चिंता नहिं करैत छथि। बेटी अपन शिक्षित भऽ अपन पैर पर ठाढ़ भऽ कऽ दहेज उन्मूलनमे सहयोग कऽ सकैत अछि। अहि दिशामे जनसंचारक माध्यमसँ महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकैत अछि। दहेज रूपी दानव
के विनाश लेल आवश्यकता अछि – नवयुवक और नवयुवतीकेँ जागरूक होइ के। आजुक युवा पीढ़ीकेँ मानसिक सोचकेँ बदलनाइ जरूरी अछि। अगर ओ
विवाह बिना दहेजक करता तखन अहि चीजकेँ बढ़ावा बिल्कुल नहिं भेटत। अगर कोनो लड़की पर जुल्म भऽ रहल अछि तखन लड़की के अपन आवाज उठेबाक
चाही। चुपचाप जुल्म बर्दाश्त केनाइ सेहो अपराध अछि।
आजुक युवा पीढ़ीकेँ दहेजक विरोध करि कऽ अहि कुप्रथाकेँ सुप्रथामे बदलनाइ सर्वप्रथम कर्तव्य हेबाक चाही। सोशल मीडियाक द्वारा जेना एखन दहेज मुक्त मिथिला अभियान चलि रहल अछि एकर अपन परिवारमे एक-दोसर संग चर्चा कऽ समाजमे सभकेँ जागरूक केनाइ। जे कियो समाजमे दहेज लऽ रहल छथि हुनकर विवाहमे अपन उपस्थिति दर्ज नहिं केनाइ।
जय मिथिला, जय मैथिली