“होरीक हुड़दंग”

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— पीताम्बरी देवी     

 

मिथिला के होली।
होली एकटा उल्लस के पर्व होईत अछि।ओना ते सब पावनी तिहार में उल्लस रहैत अछि लेकिन सब में भगवान भगवती पूजा पाठ से जूरल रहैत अछि। लेकिन होली में बेसि हुरदंग होईत अछि।होली बेसि खाय पिबय के पावनि अछि। होली फागुन के पूर्णिमा दिन मनाओल जाईत अछि। पूर्णिमा के होलिका दहन होईत अछि आर ओकर बाद रंग अविर के खेल।होली में नव वर कनिया,आर उपनयन भेल बच्चा के चूमाओन होईत अछि आब उठि गेले बेसि लोक परदेश रह लगला हे तै से।आर एकटा नव गप्प ई छल जे फगुआ के चूमाओन तार के मूसर ल के होईत छल। आब ते शहर से गाम तक सब बदलि गेले ।आब गामो में सब से सब अलग रहैत अछि।बिना कहने कियो केकरों आंगन नै जाईत अछि।समय सब के बदलि देलके। आब होली में कतौ भांग नै घोटाईत अछि।होली के टोली जे झालि मृदंग ल के निकलैत छल ओहो सब कमे ठाम निकलैत अछि।सरस्वती पूजा से मिथिला में फाग साझ खन के सब बैस के गबै जाई छथि ।ओहि मे बूढ से बच्चा तक रहै छला ।सब ओ मचैये होली ओ मचैये होली बिन्दावन कृष्ण खेले होली के राग तान से वातावरण गूजी उठै ये।होली में राम एला ससुरारी हो रंग खेलब मिथिला में।लोक ते लोक मिथिला में भगवान भगवती मंन्दीर सब ठाम रंगभरी एकादशी दिन से रंग अविर से भगवान भगवती संग सब खेलाईत अछि।एतय के वातावरण में रस भरि जाईत अछि। फगुआ से दस दिन पहिनहि से होलिका दहन लेल लकरी चौक चौराहा पर जमा हुआ लगैत अछि।झाली मृदंग डफली बाजय लगैत अछि आर टोली सब होलिका दहन लेल चन्दा असुलाय लगैत अछि।सब घर में पूआ, खीर ,समई पिरूकिया पकवान सब बनय लगैत अछि । महिला सब पाच दिन पहिनहि से घर में ब्यस्त भ जाई छथि।होली दिन दरवजा पर भंग पिसाय लगैत अछि ‌‌।रंग के संग भांग चलय लगैत अछि।खस्सी मारल जाईत अछि पैघ खस्सी रहल ते सब पाई मिला के लैत छथि।ओना आब बेसि गोटे चिकबा से किन लैत छथि।होली में मीट के प्रधानता अछि।होली असल में राक्षस कुल से आएल अछि ।प्रलाद के पीसी हुनका मारय लेल कोरा में बैसा के आगी में बैस गेल छलि । लेकिन भगवान के लिला एहेन भेल जे होलिका जरि गेलि आर प्रहलाद बचि गेला।आर ओहि ख़ुशी में ओहि छाउर लय के सब होली खेलेलक छाउर उरौलक नाचय लागल गाबय लागल।मांस मदीरा के पान करय लागल।आर ओहि दिन से होली पावनि हुअय लागल।तै नसा करै के प्रथा होली में अछि।मांस खाई के प्रथा अखनहु तक होली में अछि । मैथिल सब मदीरा नै पिबै छलाह ते भांग पिबय लगला।आब फेर मदीरा आबि गेले।दारु पीब लगला हे बेसि गोटा आर धूत भ के निक निक घर के लोक सब सड़क पर खसल रहैत छथि जाहि से वातावरण से हो खराप भ रहले ।महिला सब के घर से निकलनाई मुस्किल भ जाई छनि। होली खेलाई के एकटा आरो कारण अछि।जार चल गेल रहैत अछि ‌।दोरस मास रहैत अछि ‌।एहि मास में बहुत तरहक बिमारी सब आबि जाईत अछि।पहिने चेचक के बहुत प्रकोप रहैत छल।रंग गुलाबी ओ अविर में एकतहक एहेन गुण रहैत छल जे ओ सरीर में लगला से चेचक हेबाक कम संम्भावना रहैत छलैक।सब रंग खेला के पोखरी में खूब रगरी रगरी के नहाईत छलथि ते सरीर के मैल एकदम साफ भ जाईत छल जाहि से कोनो बिमारी नै होईत छल ‌।होली के परात नीम भाटा सब मैथिल सब खाईत छथि जै से खुन साफ होईत अछि।अपना सब के सब पावनी में किछु ने किछु विज्ञान छिपल अछि।होली बहुत प्राचिन पावनि अछि। मैथिल सब बहुत धुम धाम से होली मनबैत छथि।ओना आब ओतेक रंग अविर के खेल नै होईत अछि।रंगों सब में केमिकल मिलौल रहैत अछि जे लगौला से खरापि करैत छैक अवीर में सेहो रंग मिलौल रहैत अछि ओ तुरत नै झरैत अछि ।ओना अखनहु मिथिला में होली पावनी में सब कमो बेस कनेको रंग अविर अखनहु खेलाईत छथि।खेनाई पर बेसि जोर रहैत अछि।खास क के मालपूआ आर दहिवारा आर मांस के सब घर में रेलम पेल रहैत अछि।रंग खेलेलाक बाद सब नहा के जिनका नया कपड़ा रहै छनि ओ नया कपड़ा नै ते साफ कपड़ा पहिर के साझ में अविर पैघ के पएर पर आर छोट आर संगतुरिया के गाल में अविर लगबैत छथि।होली मैथिल के वहुत निक पावनि अछि।ओना आब ते सब बलजोरी रंग नै लगबैत छथि लेकिन पहिने जे नवका जमाय सब होली में आबथि हुनकर हाल बेहाल भ जाई छल।गौआ घरूआ सब हुनका रंग से सराबोर क दै छलनि।तहिना नव कनिया के दियर ननदी सब रंगने रहै छले। लेकिन आब सब परदेश जा जा के बसल छथि।गाम घर में कमे लोक रहै छथि ते ओ हुरदंग कमे देखवा में अबैत अछि। मिथिला में सीता राम ,राधा कृष्ण , शिव पार्वती के संग होली के खेल होईत अछि।
पीताम्वरी देवी