— उग्रनाथ झा।
वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर ध्यान देल जाए अछि त स्वत: दृष्टिगोचर होएत जे वर्तमान शिक्षा शिक्षाक मूल उद्देश्य सं भटकी अर्थोपार्जनक साधन बनी रहि गेल अछि । जाहि शिक्षा केँ व्यक्ति के सामाजिक , व्यवहारिक चारित्रिक, आ आध्यात्मिक व्यक्तित्वक निर्माण हेतु ग्रहण कयल जाए छल । ओ मुख्यत: आई नौकरी , व्यवसाय आ अर्थोपार्जन के हथकंडा के रूप में स्थापित भेल अछि। अदौकाल सं भारतीय शिक्षा प्रणाली में शिक्षाक प्रणाली प्राथमिक वर्गहि सं चारित्रिक निर्माण के पाठ शिशु में भरबाक ओरियान करैत छल जे सशक्त आदर्श नागरिक’क निर्माण करैत छल । फलत: भारतीय समाज आदर्श रूप में स्थापित छल । विविधता में एकजूटता स्थापित केने छल मुदा एहि सारगर्भित पढ़ौनी व्यवस्था सं भयभीत भय पश्चिमी आक्रान्ताक कुटिल मानसिकता अपन कुचक्र स्थापित करबा में सफल भेल ।जाहि मे सहयोगी रहल किछु आत्ममुग्ध भारतीय आ अपन स्वस्थ्य शिक्षा में अनाप शनाप शैक्षणिक बिंदू के स्थान द नव प्रणाली स्थापित केलाह । फलत मैकालेवादी शिक्षा आई हमरा समाज के शोणितमय कय रहल अछि।जाहि मे किछु गानल गूहल नैतिक चारित्रिक शिक्षा के सम्मिलित करैत अपन कर्तव्यक इति श्री कय लेल गेल अछि। जाहि शिक्षा में व्यक्ति के समाज सं नैतिक सामाजिक आ चारित्रिक लगाव खत्म भ सिर्फ कानूनी आ अधिकारात्मक जुड़ाव दृष्टिगोचर हो ओतय पारस्परिक आत्मियता आ सौहार्द्रता के श्राद्ध भेले रहैत छैक। ताहि हेतु वर्तमान में पति पत्नी , पिता पुत्र , और सासु पूतोहु वा अन्य संबंधीक बीच आत्मिय मधूर संबंधक जगह अधिकारक टकराव दिनानुदिन बढ़ल जा रहल छैक । आखिर किएक नै हो जहन नैतिक आ समाजिक मुल्य मरणासन्न अवस्था में हृदयस्थ हो । ई अवस्था आब एहन विकट स्थिति में आबि गेल छैक जे समाज सं बढ़ि माता पिता होईत आब पति पत्नीक बीच नैतिक समरसता खेने जा रहल अछि।
एहन नहि जे ई युवा पिढ़ी आईए शिक्षित भेल अछि। हमर इतिहास एक सं एक विद्वान आ विदूषी सं भरल परल अछि। जे सफल दाम्पत्य जीवनक निर्वाह केलीह अछि। गरीबक बेटी रानी बनली, आ राजा बेटी गरीबक हाथ धेलीह मुदा वैवाहिक विलगता के स्थिति नहि आएल । परंतु आई सभ तरहे मिलान केलाक बादो दाम्पत्य बिगड़ी रहल छैक से किएक ? यक्ष प्रश्न छैक ई हमरे अहांके सोचय पड़त ।
जे पति पत्नीक रूप में संबंध प्रारंभ होई सं पहिने वचनबद्धता रहै छल जे सुख दुख में रहि एकदोसरक प्रति श्रद्धा आ निष्ठा संग जीवन निबाह करब मुदा आब आधुनिक अंधानुकरण में शिक्षाक आधुनिकीकरण के प्रतिफल विवाह एकटा शर्त बनि रहि गेल अछि। जाहिमे नैतिकता आ सामाजिकता के जगह कानून ल लेने छैक । जेकर फलाफल इच्छानुरूप स्वतंत्रता छैक ।जखन मोन भेल संग रहुं जखन मोन होए विलग भ जाउ ।
आब अबैत छि जे आखिर शिक्षा किएक जिम्मेवार । जौ देखल जाए उसर खेत में हरियाली नहि उपजैत छै । कतबो मेहनति किसान क लौथ मुदा फसल पिरिआयल रहैत छैक ।ओ मन भावन हरियरी नहि अबैछ। ठिक तहिना नैतिक शिक्षा के अभाव में ज्ञान भरपूर होई मुदा ओकर सहि उपयोग नहि कयल जा सकै छै ।
वर्तमान में युवक युवती सभ मैकाले शिक्षापद्धति सं शिक्षित छैथ ।हमरा सभ स्त्री पुरूष के समान दर्जा दैत छि । परंतु दूनू के समान रहितो अपन अपन नैतिक मर्यादा होईत छैक आ ओ मर्यादा के दूनू स्वतंत्र रूपे पालन करैथ। एक दोसर के सीमानक अतिक्रमण नहि होएबाक । परंतु हमरा लोकनि नैतिकता विहीन भ एक दोसराक प्रति अतिक्रमण करै छि फलत: परिस्थिती टकराव बनैत छैक। युवा युवती अपन अपन अधिकारिक टकराहट में घर परिवार समाज के मान मार्यादा विसरि अतिमहत्वाकांक्षा में समाजिक परिहासक कारण बनैत छथि।
शिक्षाक मूल अर्थ जहिया सं अर्थोपार्जनक स्रोत बनल अछि त बहुधा युवक युवती रोजगार प्राप्ति के पश्चातहि विवाह निआर करै छथि । जाहि मे बहुधा अभिभावक पूर्ण सहयोग रहै छन्हि ।जेकर मुल कारण अछि जे विवाहोपरान्त पारिवारिक भरण पोषणक भार अभिभावक नहि पड़य। किएक त वर्तमान में पश्चिमीअनुकरण नव दम्पतिक बजट भारी केने जा रहल छैक । परंतु एहि चक्कर में एकटा विकट समस्या उत्पन्न भ रहल छैक बेमेल विवाह । यानी बर कनियांक उमेर में अंतर जाहि के कारण युगल के सोच समझ ,आचार विचार में अंतर होईत छैक ।किएक हमरा सभ जनैत छि जे परिपक्वता उमेर संग अबै छैक । उम्र सं वैचारिक अंतरक फलस्वरूप पारिवारिक कलह जन्म लैत छैक जे अधिकारवादी सोच के जन्म दैत छै आ ओ अधिकार जौ समिलात में प्राप्त नहि भेल त परिवार विखंडन तक पहुंचैत छैक । नैतिक रूपे भावना शुन्य व्यक्ति आ हमर अधिकार सं ग्रसित व्यक्ति वैवाहिक बंधन के मात्र दू शरीरक मिलन मानि अलग होतीइ छथि। एहन अलगाव त पशुओं मे देखल जा सकै तहन फेर मानव श्रेष्ठ कोना ?
अपन लक्ष्य प्राप्तिक हेतु लगनशील व्यक्ती के द्वारा विवाह के द्वितीयक स्थान देबाक कारणे अधिक उम्र पर विवाह करैत छथि फलत: अपन माहौल के अनुरूप अपन जीवनसंगिनी तकै छथि जाहि लेल अंतर्जातीय अथवा विधवा विवाह तक लेल परहेज नहि करैत छथि । वर्तमान परिवेश में एकरा गलत नहि कहल जा सकै छै परंतु स्वयं के निर्णय के से हो जौ सम्हारि के नै चललहु आ कचहरि में फरिछिहौटक स्थिति उत्पन्न भेल तखन त प्रश्न बनै छै ।
नारि सशक्तिकरण के एहि दौर में नारि शिक्षा आ नारि अधिकार के चहुंओर महिमा मंडित कैल जा रहल छैक मुदा नारि नैतिक सामाजिक दायित्व दूर भ रहल छथि ।एहि पर कोनो ध्यान नहि । जेकर फलाफल जे नारि दूनू कुलक पाग बुझल जाए छलीह ओ आई कतय छथि स्वयं सोचि सकै छथि।
युवा युवती दूनू परिवारक,समाजक आ देश पहिया छथि । दूनू में आपसी तालमेल आवश्यक , दुनु के अपन सीमा निर्धारित होएबाक चाहि । यदि दूनू अपन मर्यादा सिमा तोड़लन्हि त परिवार,समाज,आ देशक कल्याण संभव नहि।
अधिक उम्रमे विवाह , पति पत्नीक बीच आर्थिक प्रतिस्पर्धा के कारण वैवाहिक जीवन मुख्य लक्ष्य सृष्टी संचालन हेतु संतानोत्पत्ति से हो प्रभावित होएत छैक ।आई काल्हि पर फेंका फेंकी करैत बहुत देर भ जाए छै । एहन नै जे शारिरिक मर्यादा में रहैत छथि । भौतिकवादी साधनक प्रयोग सं शारिरिक शांति प्राप्त करैत छथि । फलत: बहुतों घटना दृष्टिगत भेल जे नि:संतानताक कारण के प्राप्त केलाह ।
अंततः कहय चाहब जे शिक्षा , रोजगार आवश्यक छैक मुदा एहि के संग संग सामाजिकता , नैतिकता , आ चारित्रिक ज्ञानक प्राप्ति आवश्यक छैक अन्यथा एहिना भगवानक सर्वोत्कृष्ट सृजन पशुबत बनल रहत जेकरा सिर्फ आ सिर्फ मशीनी उपयोग कय सकै छि ।
वर्तमान में शिक्षित युवा युवती के बीच प्रेम विवाह, लीव इन रिलेशनशिप, अंतर्जातीय विवाहक प्रति रूझान बढ़ल अछि। ओ सभ अपन अधिकार आ कर्तव्य के मैकाले पद्धति सं जानि गेल छथि परंतु नैतिक समाजिक ज्ञानक अभाव में शारिरिक आ भौतिकवादी आकर्षण के प्रेम नाम दैत छथि । ओ अपन निक आ बेजाए पर ध्यान नहि दैत छथि । हुनका शिक्षा पद्धति में ई स्पष्ट नै छन्हि जे हृदयक प्रेम कानूनक बिहनि स नहि उपाजाएल जा सकैछ । फलत: कानूनी प्रेम शारिरिक उपभोग तक रहै छै । आत्मतृप्तिक पछाति ओ घृणा आ कटुता में परिणत भ कानूनी फांस में चली जाए छै । यानी चाहे त टुकड़ा टुकड़ा या मिलार्ड लग कानि कानि सुनाऊं दुखड़ा ।
ताहि हेतु जौ हमरा लोकनि अपना धिया पूता के शुरु सं नैतिक आ चारित्रिक गुणक विकास करब त निश्चित एहन तरहक परिस्थिती नहि आओत ।
वर्तमान में मैकाले पद्धति हमरा सभक पूर्व के धार्मिक आध्यात्मिक मान्यता के अंधविश्वास आ ढ़कोसला साबित करबा पर उतारू अछि ताहि हेतु नव चुनौती जे एहन तरहक शिक्षा देबा में हमरा लोकनि के बाल मनोविज्ञानक सहारा सं धार्मिक दृष्टिकोणक स्थानापन्न वैज्ञानिक आ समाजिक नैतिक दृष्टिकोण अपनोनाए श्रेयष्कर ।
ताहि हेतु समस्त अभिभावक जिम्मेवारी जे सभ किछु सरकारें पर नहि छोड़ियौन किछु अपनों कर्तव्य बुझू धिया पूता में जौ सरकारी मैकाले ज्ञान भरैत छि त निश्चय समय निकाली नैतिक समाजिक और चारित्रिक गुणक विकास हेतु स्वयं शिक्षा दियौ । ताकी सृष्टि सृजनक उद्देश्य सर्वोत्कृष्ट मानव के निर्माण भ सकै ।