“मधुमासमे झहरैत प्रेम।”

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— उग्रनाथ झा।     

जेना की हमरा सभ जनैत छि जे हिन्दुस्तानक धरती विविधतामे एकता के समेटने अछि। चाहे जाति,धर्म रंग रूप हो अथवा पार्यावरणीय स्थिति परिस्थिती । जहन पार्यावरणीय स्थिती के देखब त हमरा लोकनि छ ऋतुक आनंद उठबैत छि । शिशिर , बसंत , ग्रीष्म , वर्षा ,शरद , हेमंत ।ओना त सभ ऋतु के अपन अपन विशेषता आ आनंद छैक मुदा बसंत ऋतु के बात सभ सं विलग आ आनंददायी छैक ताहि हेतु ई मधुमास के नाम सं जानल जाएत छैक । ई मास प्राणी मात्र के सुखद फलदायी होईत छैक ।वनस्पति जतय फूल फल मज्जर सं लुबधल रहैत छैक ओहिना जीव जंतु जनमारा जाड़ स’ गलैत हाड़ के सुखद अनुभूति पाबि रोम रोम पुलकित रहै छैक । जीवन में नव हर्षोल्लासक सागर हिलकोर मारैत रहैत छैक । गाछ बृक्ष के नव पल्लव आ फूल के सुगंध आ मज्जर सं चुबैत मधु स’ सराबोर बहैत पुरबा पछबा जीव मात्र के मादकता उत्पन्न करैत छैक । कठूआएल देह में रविक अल्प उष्म किरण के स्पर्श मात्र सं रोम रोम में नव सिहरन प्रदान करैछ, जे अंतरमन में स्फूर्ती जागृत करय छै । जकर प्रतिफल सभ जीव में मस्ती , अल्हड़पन देखबा में अबैछ। जेना हवा झोंक गाछ वृक्ष संग अठखेल करैछ, त भेम्ह फूलक संग मिलन , फलस्वरूप भेम्ह आलिंगन सं भकरार होईत फूल देख सहज अनुमान भ जाएत जे दूनू एक दोसरा निर्विकार भावे आनंदक लहरी में बहल जा रहल छैक। कोयलीक मिठगर तान सं तान मिलाबैत कोयली के सुनल जाएत निश्चय भाव विह्वल क’ देत ।रंग बिरंगक चिड़ै चुनमून्नीक कलरव विरान हृदय में प्रेमक रस घोरि देत । जे सहजहि युगल /सामुहिकताक जीनगी के दिश मोनि घीच लैत छैक ‌। जहन प्रकृति में गाछ बृक्ष पशु , चिड़ै चुनमुन्नी सभमे एहि तरहक प्रभाव देखबा में अबैत छैक । तहन मानव जीवन एहि सं बाचल कोना रहि सकैत अछि। किएक त ई मधुमास/बसंत ऋतु के कामदेव के पुत्र कहल जाए छैक । किएक त शिव जी के सती वियोगक धीयान भंग करबाक लेल कामदेव एहि ऋतु के जन्म देलाह । फलत: बसंतक कामबाण के तिक्ष्ण प्रहार सं शिवजीक ध्यान टुटल रहनि। अंततः पुनर्विवाहक विचार आएल रहनि । तहन मानव कतेक काल ओहि बाण सं बचि सकत ।एहि मधुमासक प्रभाव जे प्रेमक वशीभूत भ सभ आपसी विकार मिटा एकाकार भ हंसी मजाक के प्रश्रय दैत छथि । जेकर नमुना हमरा लोकनि फगुआ में देखैत छि। नेना बुढ़ जुआन , पुरूष , स्त्री गण के भेद मिटा सभ रंगरभसक आनंद मनाबैत छथि। ताहि हेतु ई मौसम युगल मिलन मौसम के रूप से हो जानल जाएत छैक । श्री कृष्ण गीता में स्वयं कहने छथिन्ह जे ऋतु में हम बसंत छि । यानी प्रेम दया और मिलन के प्रतिमूर्ती थीक ई मधुमास । एहि मासमे जीवमात्र मधुआएल रहैत अछि। मौसमक स्वभाव देखैत सांस्कारिक उत्सव जेना विवाह , उपनयन , मुंडन ईत्यादीक उत्सव लेल एहि मौसमक पहिल प्राथमिकता रहैत छैक ।

रोम रोम जे पुलकित राखय ,
सिहरि उठय अंग अंग ।
परदेशीओ घूरि घर के आबथि,
जौ मद-मातल बहय बसंत । ।