मिथिलाक लोक मे मातृभाषा मैथिली प्रति उदासीनता कियैक आ एकर निदान कोना

लेख

– प्रवीण नारायण चौधरी

मिथिलाक लोक मे मातृभाषा प्रति उदासीनता कियैक आ एकर निदान कोना

सच छैक जे अपन मातृभाषा ‘मैथिली’ प्रति ओहेन आकर्षण आ जुड़ाव मिथिलाक्षेत्रक लोक मे नहि अछि जेहेन आन क्षेत्रक लोक मे देखल जाइछ। ई एक रहस्यपूर्ण विषय थिक हमरा बुझाइ मे। जे भाषाक इतिहास आ साहित्य एतेक सम्पन्न अछि आखिर ओ भाषा प्रति ओकर अपने लोक एना उदासीन हुए ई सोचनीय विषय त छीहे, एकर निदान तकबाक लेल सेहो क्षेत्रक लोक मे सजगता के एवं गम्भीर शोध करबाक आवश्यकता अछि। मिथिला मात्र मिथकशास्त्र नहि अपितु मध्यकालीन युग तक जिवन्त रहबाक सद्यः प्रमाण उपलब्ध अछि। तखन फेर एतुका लोकभाषा मैथिली एहेन कमजोर अवस्था मे केना पहुँचल – ई सवाल स्वयं मे रहस्यमयी हेबाक परिचय दैत अछि। एहि लेख के माध्यम सँ एहि सवालक ईर्द-गिर्द चिन्तन-मन्थन करब।

मानव समाज मे समस्त ‘अपन’ सँ ‘अपनत्व’ केर स्वाभाविक गुण विद्यमान् रहैछ, लेकिन मिथिला समाज मे एहि ‘अपन’ प्रति समान ‘अपनत्व’ केर अभाव अछि। एकर कारण प्रथम दृष्ट्या यैह स्पष्ट होइत अछि जे परापूर्वकाल सँ मध्ययुगीन इतिहास धरि मैथिली ‘जनभाषा’क रूप मे प्रचलित रहल मुदा शिक्षाक भाषाक रूप मे मैथिली प्रचलन मे नहि आयल। शिक्षाक माध्यम भाषा संस्कृत रहल आ जनसामान्य एहि सँ दूर रहल अथवा राज्य द्वारा राखल गेल। मुदा चिन्तन एहि विन्दु पर जरूर आरम्भ भ’ गेल छल जे शिक्षा सँ सब केँ केना जोड़ल जाय। सहज शिक्षा लेल मातृभाषाक माध्यम सँ सब वर्ग केँ शिक्षित करब आवश्यक अछि।

किछु यैह तथ्य महाकवि विद्यापतिक ‘देसिल वयना सभ जन मिठ्ठा, तेँ तैसओं जंपओं अवहट्ठा’ केर उक्ति केँ क्रान्तिकारी आ जनकल्याण लेल शिक्षा केँ सुगम बनेबाक मार्ग देसिल वयना अर्थात् मातृभाषा के तथ्य १४म् शताब्दी मे मिथिलाक लोकचिन्तन मे आबि गेल छल, एना स्पष्ट अछि। लेकिन इतिहास वर्णित तथ्य सँ ईहो ज्ञात होइछ जे विद्यापति द्वारा शिक्षा सभक लेल सहज बनेबाक सूत्र ‘मातृभाषा मे शिक्षा’ केर प्रतिपादन करिते अन्य समकालीन विद्वत् समाज हुनकर जमिकय विरोध, निन्दा आ आलोचना करय लागल छलाह। स्पष्ट अछि जे शासक वर्ग द्वारा शिक्षा जेहेन अनमोल जीवनाधार केँ सहज बनेबाक लेल ताहि समय के राज्य संचालक तैयार नहि भेलाह।

विरोध, निन्दा आ आलोचनाक बावजूद विद्यापति कविकोकिल, महाकवि, जनकवि बनि गेलाह। लोक हुनकर सन्देश केँ हाथोंहाथ स्वीकार कयलक। अपन सहज-सुन्दर मैथिली रचना सब एतेक जनसुलभ छल जे लोक ओकरा हृदयंगम कय लेलक। जन-जन के कंठ मे अपन देसिल वयना (मातृभाषा) रचनाक कारण पहुँचि गेलाह विद्यापति। हुनकर नचारी, महेसवानी, राधा-विरह, नोंक-झोंक आदि अनेकों महत्वपूर्ण रचना सँ समाज मे साहित्यक धारा एहेन बहल जे विद्यापतिक पदावली पर ‘नाच परम्परा’ – ‘विदापत नाच’ तक प्रचलन मे आबि गेल।

विदित हो जे जनवर्गीय समाज मे एहि विदापत नाच के सहारे शिक्षाक समुचित प्रसार होबय लागल मिथिलाक लोक-समाज मे। एकटा विशेष समुदाय ‘गन्गाईं’ (जाति) मोरंग, पूर्णिया आदि क्षेत्र मे प्रचुरता मे भेटैत छथि जे एहि विदापत नाच केँ अपन जीविकाक रूप मे हाल तक अपनौने रहलाह। विद्वान् रमेश रंजन झा अपन विभिन्न शोधपूर्ण कार्यपत्र सँ गन्गाईं समुदायक नामकरणक विन्यास ‘गणगायक’ के रूप मे अर्थात् जे जन-जन के बीच गायन करैत मानव जीवन लेल जरूरी शिक्षाक प्रसार करैत छल से समुदाय थिक गन्गाईं। विदापत नाच मार्फत नाटकीय शैली मे विद्यापतिक पदावली सब जनबोली मे प्रस्तुत करैछ मूलगेन (मूल गायक) जाहि मे संग दैछ बजनियाँ सब वादन करैत, आ नटुआ (विदूषक) ओहि पर तरह-तरह के चउल करैत सवाल सब पुछि-पुछि मनोरंजक ढंग सँ समस्त नाच प्रस्तुत करैछ। ओ विदूषक यथार्थतः मूलगेन द्वारा विद्यापतिक साहित्य मार्फत राखल उच्चस्तरक ज्ञान (जीवनक आवश्यक संस्कार, नीति, सिद्धान्त, न्याय आदि) प्रति जिज्ञासू दर्शक-दीर्घाक मोन के सवाल सब पुछैत अछि, ओ मजाक सेहो उड़बैत अछि जे ई भारी-भारी नीति-सिद्धान्त सँ सामान्य लोक केँ कोन मतलब, आर एहि तरहें मानव समाज लेल जरूरी शिक्षा (संस्कार आ जीवन पद्धति, नीति, सिद्धान्त आदि) केर निरूपण करैत अछि। आजुक परिवर्तित युग आ शिक्षाक पद्धति सेहो आधुनिक स्वरूपक उपलब्ध हेबाक कारण ई विदापत नाच लगभग मृत् अवस्था मे पहुँचि गेल अछि। जखन कि, एकर इतिहास कहैछ जे ई नाच जतय, जखन कतहु आरम्भ हुए त लोक सात-सात दिन तक भोजन-भात सब किछु ओहि नाच-स्थलहि लग बनबय, सपरिवार नाच देखय। मनोरंजनक संग शिक्षा ग्रहण केर ई एतबाक प्रभावकारी माध्यम छल से पाठक स्वतः बुझि सकैत छी।

मध्यकालीन स्थिति-परिस्थिति तक मैथिलीक अनेकों महत्वपूर्ण रचना जाहि मे ज्योतिरिश्वर ठाकुर लिखित वर्णरत्नाकर के गणना विश्व केर पहिल इनसाइक्लोपीडिया (जरूरी सब बातक एकमुष्ट जानकारी) कहल जाइछ से लिखित रूप मे भेटैत अछि। बादक समय (भक्ति आन्दोलन) केर क्रम मे एक सँ बढ़िकय एक लोकदेवताक आराधना, हुनक बहादुरीक गायन, वीरगाथाक प्रस्तुति सब मे राजा सलहेश, दीना-भदरी, लोरिकदेव, आदि अनेकानेक कथा-गाथा मौखिक साहित्य (श्रुति साहित्य) सँ कालान्तर मे लिपिवद्ध कयल जेबाक ढेरों उदाहरण भेटैत अछि। एहि समय सेहो मिथिला समाज मे सामन्तवादक राज रहल। बड़िया लोक के हाथ समाज पर शासनक बागडोर रहल। विद्यालयक अवस्था एहि समय सेहो बड़का बबुआन सभक दरबज्जे छल। पारम्परिक शिक्षाक माध्यम संस्कृते रहल। विषय सब सेहो एहेन जे वेद-वेदान्त, योग-योगेश्वर-योगी आ सिद्ध-सिद्धि-सिद्धान्त संग न्याय-नैय्यायिक-वैशेषिक-मीमांसक मात्र उत्पादन करैत रहल। मातृभाषाक प्रयोग एतहु संकुचित अवस्था मे रहल। एहि तरहें लिखित साहित्य आ शिक्षाक माध्यम दुनू रूप मे मैथिलीक अवस्था बड सम्पन्न नहि रहल। लेकिन जनसामान्य बीच शिक्षा आ संस्कार प्रसार केर एकमात्र माध्यम छल श्रुति-साहित्य, मौखिक साहित्य आ लोकदेव (प्रमुख लोक) केर वीरगाथा गायन संग भक्ति पक्षक रचनाधर्मिता आ व्यवहारिक जीवन मे ओकर उपयोग-प्रयोग। कीर्तन परम्परा, लोकगीत, आदिक कमी कहियो नहि रहल। एहि तरहें समाजक हर वर्ग के बीच मानवताक मर्म सँ परस्पर सहयोग-सौहार्द्रताक सम्बन्ध बनल रहलाक बादहु ‘मातृभाषा’ केर गरिमा सँ जन-जन केँ परिचित करयवला कोनो ठोस आधार एहि कालखंड मे नहि रहल एना लगैत अछि। मुगलकालीन सम्राज्य आ छोट-छोट रियासती राज्य धरिक अवस्था मे ‘अपन’ आ ‘अपनत्व’ केर आर सब बात सामाजिक, सांस्कृतिक आ क्षेत्रीयता (स्थानीयता) केर आधार पर बनल, मुदा मातृभाषा मैथिली लेल आपसी जुड़ाव, आत्मसम्मानक बोध आदिक कोनो शिलान्यास एहि समय तक नहि भेल, ताहि निष्कर्ष पर हम पहुँचल छी।

ब्रिटिशकालीन अवस्था मे संस्कृत पर डंडा चलय लागल। समूचा भारतवर्षीय मूल्य, मान्यता आ परम्परा केँ कुत्सित रूप प्रस्तुत करैत समाज मे एहेन विभाजनक बियारोपण कयल गेल जे आइ तक विभाजित समाज केँ पुनः एक करबाक कोनो टा सूत्र नहि देखा रहल अछि। वर्णभेदक कुव्याख्या, छुआछुत, धर्मान्धता, जातीय विभेद, कर्मकाण्डीय मान्यताक विरूद्ध कतेको तरहक कुतर्क, आदि अनेकानेक विषय पर समाज मे जहर घोरल गेल। सकारात्मक पक्ष आ सामाजिक एकजुटता संग धर्म-कर्म के जोड़यवला विषय-वस्तु केँ किनार लगाकय अपन स्वार्थलिप्सा व सत्तासुख केँ बरकरार रखबाक लेल सब किछु उलटि देल गेल बुझू। जेहो किछु मौलिक पद्धति कथित बड़िया समाज अपनेने छल सेहो छहोंछित कयल जाय लागल। बदला मे आरम्भ भेल ब्रिटिशयुगीन शिक्षा पद्धति। अंग्रेजी जेहेन विदेशी भाषा भारतवर्षक लोक पर थोपि देल गेल, मातृभाषाक महत्व केँ के पुछैत अछि। बाद मे फेर हिन्दी, उर्दू, फारसी आ संस्कृत संग अन्य मजबूत मातृभाषा सब यथा बंगाली, पंजाबी, तमिल, तेलुगु, मराठी, गुजराती आदि केँ क्रमिक रूप सँ लागू कयल गेल, से ओहि क्षेत्रक साकांक्ष लोकक कारण। मिथिलाक्षेत्रक लोक २०म् शताब्दी मे बहुत देरी सँ साकांक्ष भेल, लेकिन ता धरि राजा-रजवाड़ा सब अपन लिपि के उठाव कय चुकल छलथि, हिन्दी केँ अपना चुकल छलथि। मैथिली मे कोनो संरक्षण, संवर्धन ओ प्रवर्धनक काज नहि भेल। घरैया चाउर जेकाँ घरैया भाषा बनल रहल मैथिली।

भारतक स्वतंत्रता सँ किछु दशक पूर्व धरि मैथिली विषय रूप मे कोलकाता विश्वविद्यालय सँ शिक्षा मे प्रवेश पेलक, लेकिन कोलकाता विश्वविद्यालय धरि केकर पहुँच छल से सहजहि अनुमान लगा सकैत छी। प्रारम्भिक शिक्षा मे मातृभाषाक पढाइये नहि, उच्च शिक्षा मे ऐच्छिक विषय रूप मे मैथिलीक प्रवेश केर जमीनी लाभ कतेक से सहजहि अनुमान लगाबय योग्य अछि। क्रमिक रूप सँ पटना विश्वविद्यालय, बिहार विश्वविद्यालय आ बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय आदि धरि मैथिली विषय के पहुँच त बनि गेल, लेकिन एतहु सवाल वैह उठैत अछि जे जनसामान्य मे निज मातृभाषा आ एकर पढाई केर लाभ कतेक महत्व स्थापित कय सकल। स्वतंत्रता उपरान्त तक मैथिलीभाषी दिग्गज भाषाशास्त्री लोकनि, साहित्यसेवी आ मैथिलीप्रेमी लोकनि भारतक विभिन्न मंच सँ आवाज उठबैत-उठबैत साहित्य अकादमी सँ अन्ततः भारतीय भाषाक संविधानक अष्टम् अनुसूची धरि मैथिली पहुँचि गेल, लेकिन जनसामान्य बीच समुचित शिक्षा आ भाषाक महत्ता प्रचार-प्रसार नगण्य हेबाक कारण एहि सभक बड बेसी लाभ मैथिली केँ नहि भेटि सकल से स्पष्टे अछि। शिक्षा मे सेहो मैथिलीक प्रवेश देल गेल। लेकिन संगहि एकटा विभाजनकारी राजनीति संस्कृत विषय जेकाँ मैथिली केँ सेहो गलत-सलत आरोप मढिकय सीमित जाति के भाषा बनेबाक षड्यंत्र करय लागल। बीपीएससी सँ मैथिली केँ बाहर कय देल गेल से एहि लेल जे ई विषय उच्चजाति के सीमित लोक बेसी फायदा उठा लैत अछि, मात्र अराजक राजनीतिकर्मीक आरोप के चलते। जातिवादी राजनीति के शिकार बनय लागल मैथिली।

संविधान मौलिक अधिकार दैछ जे प्राथमिक शिक्षा के माध्यम मातृभाषा हुए। लेकिन स्वयं केर राज्य बिहार मे मैथिली एक स्थापित भाषा रहितो ‘राजभाषा’ के दर्जा नहि पाबि सकल। शिक्षा मे सेहो अनिवार्य विषय के रूप मे विद्यालय स्तर पर लागू नहि कयल जा सकल। मैथिलीक शिक्षक तक केर बहाली नहि कयल गेल। निजता सँ मैथिलीभाषी केँ कहियो जुड़ाव तक नहि बनय देल गेल। एहेन दुरावस्था मे परिणाम मैथिलीभाषीक अपनहि मातृभाषा सँ उदासीनता नहि होयत त दोसर नीक के अपेक्षा करब व्यर्थे थिक। निज मातृभाषा सँ निजत्वक बोध केर प्रथम आधार साक्षरता होइत छैक, एखन तक मिथिला समाज मे साक्षरता दर आनक अपेक्षा कमजोर अवस्था मे छैक। कहि सकैत छी जे आधा आबादी मात्र साक्षर भ’ सकल छैक, आ जेहो साक्षर छैक ओकर साक्षरता मे आधारभूत (बुनियादी) ज्ञान अपन मातृभाषा मे नहि अपितु हिन्दी माध्यम मे हिन्दुस्तान आ नेपाली माध्यम मे नेपाल मे मिथिलाक्षेत्रक लोक केँ शिक्षा उपलब्ध भ’ रहल छैक। पाठ्यक्रम सँ लैत पाठ्यसामग्री मे सेहो निजत्व (स्थानीय मूल्य, मान्यता आदि) केर नगण्य चर्चा कयल गेल छैक। महाराणा प्रताप सिंह राजस्थानक शूरवीर केर इतिहास पढ़ि रहल अछि, लेकिन अपन मिथिलाक अपनहि आसपासक वीर सपूत के कोनो कथा-गाथाक पढाई आजुक सिलेबस मे नहि अछि। कियैक? आर, पहिने त मौखिक साहित्यहु मे सलहेश, लोरिकदेव, दीना-भदरी आदि वीर पुरुषक गाथा रहय, आइ लिखित साहित्य मे एहि महापुरुष सँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम आदि मे मैथिल लोकक योगदान आदिक पढाई कतय भेटैछ? एकमात्र आधार जे ‘मैथिली बड मीठभाषा अछि’, एहि पंक्ति सँ आजुक अर्थप्रधान युग मे केकरो पेट त नहि भरतैक…. तखन ई भाषा जियत कोना? भाषा नहि त राजकाज मे, नहि त शिक्षा मे, नहि त संचार मे, नहिये कोनो रोजी-रोजगार मे – आखिर कोन आधार पर अपन भाषा सँ जुड़ाव आ उत्साहजनक समर्पण उत्पन्न हुए? ई बहुत रास सवाल अछि जाहि पर मैथिली भाषाभाषी समाज केँ चिन्तनक जरूरत अछि।

सच ईहो छैक जे नहि मैथिली त आन कोन? जखन मातृभाषा सँ उदासीनता रहत त विकल्प के तौर पर हिन्दी या अंग्रेजी समाधान देत की? एकर जवाब सीधा आ सरदर अछि जे ‘नहि, कदापि नहि’। कहबी छैक न जे माय के दूध पीने बच्चा नहि पोसायल त बाप के किदैन चुसने ओकर पोषण हेतय की! लेकिन विडम्बना कहू – एतुका स्वार्थी आ सत्तालोलुप राजनीतिकर्मी सब मैथिली केँ जाति-पातिक बोलीक विविधताक आधार पर कमजोर करय मे कनिकबो कोताही नहि बरतनिहार समाधानक विकल्प कहियो नहि देलनि, ई देनाय सम्भवो नहि छन्हि। ओ सब बस अपन-अपन जियैत आ राज भोगैत केवल झगड़ा टा लगेता, समाज केँ ओहिना तोड़ता जेना ब्रिटिश सम्राज्यवादी तोड़लक। बाकी भाषाक महत्ता आ शिक्षा-संस्कार केर व्यवस्था, शत-प्रतिशत साक्षरता आ सबल समाज केर निर्माण लेल जरूरी ‘मातृभाषा’ के तरह-तरह के नाम मात्र देला सँ आइ तक कतहु नहि भेलैक, त हिनका सब सँ एहि जन्म मे कि सात बेर जन्म लेता तैयो सम्भव नहि होयत। समाधान लेल सिस्टम मे सुधार के जरूरत अछि।

समाधानक बाटः

*संविधानक मौलिक अवधारणा अनुरूप प्रारम्भिक शिक्षा (प्राइमरी एजुकेशन) केर माध्यम मैथिलीभाषी समाज लेल मैथिली हो।

*मैथिलीक जनसामान्य द्वारा बाजल जायवला बोली-शैलीक आधार पर मानक पुनः परिभाषित हो।

*पठनीयता कतेक सहज अछि, समस्या कतय भ’ रहल अछि ताहि पर शोध करैत पाठ्यसामग्री पुनर्लेखन कयल जाय।

*शिक्षा मे निहित स्थानीय पाठ्यक्रम मे मातृभाषाक पढाई पर जोर देल जाय।

*मिथिलाक लोकसंस्कृति, सभ्यता आ लौकिक-इतिहास केँ श्रुति ओ मौखिक सँ लिखित रूप मे परिणति देल जाय।

*आगू बिना कोनो विलम्ब के राज्य द्वारा राजभाषा (सरकारी कामकाज) के रूप मे आ प्रारम्भिक शिक्षा मे अनिवार्य रूप मे लागू कयल जाय।

*सरकारी विज्ञापन आ भाषा सम्बन्धी महत्व सँ आमजन केँ सुपरिचित करेबाक लेल सूचनाक प्रसार मातृभाषा मैथिली मे हुए, एकर गारण्टी कयल जाय।

*भाषा आधारित रोजगार पर लोक केँ प्रशिक्षण देल जाय।

*भाषिक पहिचान केर आधार पर लोकसमाज मे एकजुटता कोन स्तर पर होइत अछि से सोदाहरण लोकक मन-मस्तिष्क मे प्रवेश कराओल जाय।

*मिथिलाक्षर लिपि केँ पुनः प्रचलन मे आनल जाय, मिथिलाक्षेत्रक प्रत्येक लेखपट्ट पर मिथिलाक्षर आ मैथिली भाषा मे लेखन केँ अनिवार्य कयल जाय।

*मैथिलीक मूल स्वरूप मे बज्जिका, अंगिका, ठेठी, सूर्यापुरी, व अन्य बोलीक आधार पर उपबोली केँ प्रधानता-प्राथमिकता दैत अलग-अलग क्षेत्रक लोक केर मांग अनुसार उपरोक्त समस्त बात केर गारण्टी कयल जाय।

*सूचना, संचार आ फिल्म संग मिथिलाक लोक केर मौलिक संस्कार, सभ्यता आ संस्कृति केँ संरक्षण, संवर्धन आ प्रवर्धन लेल संयंत्रक विकास कयल जाय।

अन्त मे, शिक्षा संग व्यवहार मे निज मातृभाषाक महत्व सँ प्रत्येक लोक परिचित हो ताहि पर आधारित राजनीति केँ बढावा देला सँ मात्र एहि क्षेत्रक लोक मे निजता प्रति यथार्थ सम्मोहन होयत, आ तखनहि स्थितियो मे सुधार होयत। अन्यथा, जाहि तरहें एहि क्षेत्रक लोक दर-दर भटकिकय आजीविका लेल पलायन करैत समाधान ताकि रहल अछि, जेना एहि समृद्ध सभ्यताक भाषा-भेष-भूषण लोपोन्मुख अछि, अपराध आ हिन्सा जाहि तरहें बढ़ि रहल अछि, आबयवला समय जनसंख्या विस्फोट आ जनसंघर्षक दिन एकर खात्मा सुनिश्चित अछि। भटकल परिचितिक संग मानव सभ्यताक विनाशक अनेकों उदाहरण मे मिथिला सभ्यता केँ सेहो मात्र इतिहास मे पढ़ल जायत। तेँ एहि पर सावधानी परम जरूरी अछि।

हरिः हरः!!