मैथिल युवजनक नाम हमर जरूरी पत्र

प्रिय युवजन,

जेकरा अपन मौलिकता के कोनो भान नहि,
निजता प्रति कोनो सम्मान नहि,
ओकरा लेल आली-हौसे छोड़िकय
बाकी दोसर कोनो काम नहि।

ई महावाक्य याद राखू। नजरि खोलिकय इतिहास देखू। आइ तक भाषा तोड़निहार कोनो दोसर विकल्प केकरो देने हुए, जीवनस्तर मे कोनो सुधार अनने हुए, शिक्षा आ साक्षरता दोसर कोनो भाषा केँ गुलामी कय केँ करबेने हुए – तखन ‘आली-हउसे’ करय लेल ओहेन लोकक झंडा उठाउ, नारा लगाउ। जँ से नहि कएने हुए त ओकरा सँ सावधान भ’ जाउ। ओ अंग्रेजक सिद्धान्त ‘डिवाइड एन्ड रूल’ ‘फूट डालू, शासन करू’ – एहि पर हमरा अहाँक बीच खधारि खुनि देत। अपन बच्चा केँ बेलायत पठायत आ हमरा अहाँ केँ ओहि खुनल खत्ता मे बेर-बेर खसय लेल बाध्य करत।

उदाहरण भारत के बिहार के देखू। कि भेल ओतय? आइ तक मैथिली भाषा केँ ‘राजभाषा’ के दर्जा नहि देलक। भारतक संविधान मे मैथिली सम्मानित भारतीय भाषाक रूप मे सूचीकृत अछि, मुदा बिहार मे निर्लज्ज जातिवादी राजनीति के कारण आइ तक मैथिली केँ सम्मान नहि देलक। शिक्षा मे लागू कयलक लेकिन बहुल्यजन केँ अपनहि मातृभाषाक माध्यम सँ पढ़बाक आ बढ़बाक अवसर आइ धरि नहि देलक। एतबा नहि, बीच-बीच मे ओतहु बाभन-सोलकन वाली बात स्वयं कथित सोलकन मसीहा सब कयलक। दुष्परिणाम आइ धरि ओहिठामक जनता भोगि रहल अछि। मजदूरी करय लेल परदेशक सहारा एकमात्र ओकर मुख्य आजीविका थिकैक। लोकपलायन केर दंश सँ छहोंछित समाज लेल ई अराजक भाषा-समाज तोड़यवला राजनीति कतेक लाभदायक भेलैक तेकर प्रत्यक्ष आ नंगा उदाहरण उपलब्ध अछि।

सवाल उठैत छैक जे मैथिली नहि त दोसर की? दोसर मे हिन्दी, दोसर मे अंग्रेजी…. बस। लेकिन ओ दोसर केकरा कतेक बढेलकैक से आँखि चियारिकय देखू।

नेपाल मे एखन नवका हवा बहायल जा रहल अछि जे मधेश भूगोल के सब भाषा ‘मधेशी भाषा’। औ जी! खाली कहि देला सँ भाषा अधिकार पाबि जाइत छैक? नहि, कदापि नहि। भाषा के अर्थ भेलैक – सरकारी कामकाज, शिक्षा, संचार, साहित्य, कला आ संस्कृति। तखन बनैत छैक सभ्यता। सभ्यताक मूल मे रहैत छैक भाषा। खाली हवाबाजी कय केँ लोक के मन-मस्तिष्क मे विभाजन आनिकय ओ कथित मसीहा अपन राजनीतिक स्वार्थ त सिद्ध करत, लोक के कोन हित हेतैक? कि शिक्षा के गारन्टी करत? कि रोजगारक गारन्टी करत? कि कला, संस्कृति आ सभ्यता के सुचारु करत? कि समाज केँ आगू बढायत? कि लोकक पिछड़ापन आ विपन्नता केँ दूर करत? एहि सब प्रश्नक जवाब अछि – नहि, बिल्कुल नहि। एहि जीवन मे नहि कय सकत। नोट कय लिअ।

मधेश भूगोल के सब भाषा मधेशक भाषा, नेपालदेशक सब भाषा नेपाली भाषा, भारत देशक सब भाषा भारतीय भाषा – ई सामान्य वर्ग के बात भेलैक। लेकिन, विशिष्टता विविध भाषाक अलग-अलग छैक आ यैह विविधता केँ सम्मान करैत संघीय संरचना के निर्माण होइत छैक। कहिया तक मानसिक गुलाम बनल रहब बौआ (युवजन) अहाँ सब? एखन आली-हउसे करबायत, लेकिन विद्यालय मे, महाविद्यालय मे, विश्वविद्यालय मे आ विभिन्न स्तर के शिक्षा-संस्कार के क्षेत्र मे ई मधेशी भाषा किंवा सामान्य वर्गीय भाषा सँ केकरा कि भेटलैक जे अहाँ केँ भेटत। एहि पर मनन करू। होशियार बनू। ई गिरगिटिया राजनीति करयवला के जाल मे अहाँ सब एकदम नहि फँसू।

हरिः हरः!!