मिथिला लोकदेवः खेदन महाराज

मिथिला लोकदेवः खेदन महाराज

खेदन महाराज केर समाधिस्थल पर स्थापित शिव मन्दिर

११म शताब्दी मे मधेपुरा सँ लगभग १० किलोमीटर पूरब-दक्षिण सुखासन गामवासी एक लोकदेव भेलाह “खेदन महाराज”। शिवदत्त मंडल केर धर्मपत्नी धनावती देवीक कोखि सँ हिनक जन्म भेल छलन्हि। ई एक कीर्तिमूर्धन्य जीवन आ लोककल्याणकारी मृत्यु केँ अवगाहन कयनिहार महान लोक के रूप मे आइ धरि सुपरिचित छथि। आवेश-विग्रह (भगताय विधि सँ आवेश ग्रहण) सँ लोकपूजित भेनिहार ‘खेदन महाराज’ सेवक तथा भगतिया सब मे लोकबंद्य छथि। हिनक पूजा पूर्वी मिथिला के अहिराना कुल मे अधिक होइत अछि। हिनक चरित्र गायन मे गोलमा-गोविन्दपुर निवासी मागैन मंडल केर सुकन्या ‘निरसू’ सँ हिनक विवाहक प्रसंग अबैत अछि। हिनक बहिन मंगलादेवी और बहिनोई मनसा मंडल केर अतितिक्त हिनक काका रामदत्त आ देवदत्त केर संदर्भ सेहो एहि चरित मे अबैत अछि।

खेदन महाराजक कुलदेवी छलीह – गहीलमाता। शक्तिक पुजारी, संयमी और महाबली खेदन महाराजक मित्र भेलथि – ‘कारू खिरहरि’। दुनू सुरहा जंगल मे महींस चरायल करथि। खेदनक शारीरिक बल एतेक रहनि जे ओगरी महाराज हुनका सँ अकारण ईर्ष्या करैत रहथि। ओ हिनकर वध करबाक योजना मे अपन मित्र ‘धनाहिल’ केँ सहयोगी बनेलनि। अपन माया सँ बाघिन प्रकट कय केँ ओकरा संग लेने ओगरी महाराज आ धनाहिल सुरहा वन दिश गेलाह। सुप्तावस्था सँ खेदन केँ जगेबाक सब प्रयत्न विफल देखिकय धनाहिल वापस आबि जाइत अछि, कियैक त सुतल लोक केँ मारनाय ओ उचित नहि बुझैत अछि। मुदा फेर ओगरी महाराज केर सनकेला आ प्रेरित कयला पर धनाहिल फेर खेदन महाराज केँ जगेलथि। तखन मायाक बाघिन सँ ओकरा पर आक्रमण करेलथि। खेदन वीरतापूर्वक लड़ैत ओहि बाघिन केँ मारि देलनि आर ओकरा संग-संग ओहि जंगलक आनो-आनो बाघ सब केँ मारब शुरू कय देलनि। फलतः सब बाघ सुरहा जंगल छोड़िकय भागि गेल। अन्त मे एक गर्भिणी बाघिनक प्रहार सँ खेदन मूर्च्छित भऽ गेलाह आर बाघिन भागि गेल। मुदा दोसर दिन अपन अभियान मे टेंगराहा चौर (मधेपुरा) मे बाघिन सँ युद्ध करैत खेदन मारल गेलाह।
खेदनक लहास गाम आनल गेलनि। जखन चिता पर चढायल गेलनि त हुनक माय धनावती देवी अपन वीर आ लोकक उपकार करयवला पुत्र खेदनक काया जरैत देखि स्वयं सेहो ओहि चिता मे चढबाक जिद्द कय देलीह, चिता पर चढि गेलीह। तखन खेदनक दिव्य आत्माक आवाज सुनाइ देलकनि – “माय! तोहर बेटा रोइयों न कियो भग्न कय सकैत छौक। तोहर पुत्रक ई स्थूल शरीर भले एहि संसार मे जरि जाय, मुदा ओ अपन सूक्ष्म शरीर सँ सदिखन तोरे लग रहिकय सब लोकक कल्याण करतौ।” तखन माता धनावती देवी केँ संतोष भेलनि।
खेदनक दिव्य-अद्भुत प्रभावक कारण हुनक अनेकों पूज्यस्थल बनल जे मधेपुरा जिलान्तर्गत राजपुर, भर्राही, सादिकदुर, जीरबा-मधेली, मनहरा, साहुगढ़, गौरीपुर, हरिपुर (कला), भेलाही आदि स्थान सब मे अद्यतन (आइ धरि) विद्यमान अछि। राजपुर-गह्वर केर पीपरक गाछ तर हुनकर स्थानक अवहेलना सँ दरभंगा महाराजाक हाथी आ महावत केँ जे दुःख भोगय पड़ल छल ताहि सँ चकित भ’ कय दरभंगा महाराजा हुनकर स्थान केँ विकास आ भविष्य धरि संरक्षण करबाक वास्ते चारि (४) बीघा जमीन केर जागीर दय कय ओहि लोकदेव केर पूजा आ सम्मान केँ लोक मे प्रतिष्ठित कएने रहथि।
(स्रोतः लोकसंस्कृति कोश, मिथिला खंड, डा. लक्ष्मी प्रसाद श्रीवास्तव)

हरिः हरः!!