हमर मोनक दर्द
(एक कथा…. सिर्फ मर्म पर मनन हेतु)

हमरा अपन पिताक आकस्मिक मृत्यु सेहो मोन पड़ि गेल। पिता सेहो हमर अनुपस्थिति मे चलि गेल छलाह। अचानक! ओ गामहि मे रहैत छलाह। हमहीं टा ता धरि परदेश आयल छलहुँ। पिताक मृत्युक बाद दोसर दिन समदिया गाम सँ चलल छल। हमरा दोसर दिन भने खबरि आयल। ता धरि हुनक अन्तिम संस्कार सेहो छोट भाइ केर हाथे मुखाग्नि दय कय देल गेल छलन्हि। हुनकर मृत्युक पहिने केकरो एतेक समय नहि भेटलैक जे गोदान वगैरह करबितय। एहि सब लेल समय ओ नहि देने छलखिन। लेकिन डीह पर प्राण छुटलनि। एक पल मे ओ चलि गेल छलाह। हम जेठ पुत्र नौह-केस दिन उतरी लेने रही। श्राद्ध-कर्म हम केलहुँ। पिता सेहो करीब-करीब एक साल धरि सुतल मे आबथि। बड कानी। भोरे उठी त तकिया भीजल भेटय। मोन मे हुअय जे पिता चूँकि बड मानैत छलाह ताहि लेल मनोवैज्ञानिक कारण सँ हम हुनका याद करैत अवचेतन अवस्था मे आन्तरिक मोन सँ कानैत रहैत छी। कनला सँ पिता फेर नहि भेटितथि सेहो बुझैत रही। तखन एक पुत्र केर धर्म होइत छैक जे पिताक सब सिद्धान्त आ मनक समस्त इच्छा केँ पूरा करय। कीर्तियात्राक निर्णय कयला उत्तर पिताक आत्मा शान्त भेलनि, ई अनुभव कएने रही।
चूँकि हम एक ब्राह्मण परिवार सँ छी, हमर पारिवारिक किछु मर्यादा अछि, जँ तेकर निर्वाह नहि होइत अछि तऽ काफी आहत होयब स्वाभाविक अछि। पिता समान उच्च मूल्यक सम्पत्ति केँ बिना उचित सेवा गमायब हमरा लेल एकटा दंड जेकाँ छल। दोबारा एहेन नहि हो यैह हमर इच्छा अछि। माय केँ ताहि लेल सदिखन अपना संग रहय लेल कहैत छी। ओ हमरा सँ दूर नहि रहय। फेरो गलती नहि हो। जिबैत पिता लेल हम बहुत किछु नहि कय सकलहुँ। सारा संसार एहि वास्ते हमरा बेर-बेर मोन पाड़ैत रहैत अछि। तखन पिताक पुण्यात्मा केँ सुख तखन जरूर भेटैत हेतनि जखन हुनकहि स्मृति मे, हुनकहि मान-सम्मान लेल हम कतहु कोनो त्याग आ समर्पण अर्पण करैत छी। मरय बेर मे गायक पुच्छड़ पकड़ेनाय हमर पारिवारिक मर्यादा अनुरूप वैतरणी पार होयबाक संकेत होइत अछि। लेकिन पिता समय नहि देलनि। हम चूकि गेल छी। एखन जे प्रकरण अछि ओ ई जे महानगर केर अस्पतालक ओहि मुर्दाघर केर प्रशीतित बक्सा मे हमरहि पिता समान अल्पायू मे नश्वर संसार छोड़ि चलि गेल एक मैथिल गृहस्थ, पिता, अभिभावक आ एकलौता कमेनिहार – तिनकर मुर्दा शरीर हमरा अत्यधिक आन्तरिक पीड़ा पहुँचा रहल छल। गोदान आ कि तुलसी चौरा किछु नहि नसीब भेल, महानगर मे ओ पारिवारिक मर्यादा कतय पाबी! दोसर बात, अल्पायू मे कियो चलि जेता ओतय ई सब अवस्था अबितो कहाँ छैक। लेकिन तुलसी चौरा, मृत शरीरहु केर मुख मे तुलसी दल, गंगाजल आ फूल-माला अर्पण कय आवश्यक विध व्यवहार त करबाके टा चाही।
कि मनुष्यक मोल जीबिते धरि होइत छैक? अपना सँ ई सवाल छल। मृत शरीर केँ घर सँ तुरन्त बाहर करबाक बात, अंगना मे तुलसी चौरा लग लय जेबाक बात, मृत शरीर मे कियो स्पर्श तक नहि करबाक बात, आर फेर जतेक जल्दी हो ततेक जल्दी ओहि शरीर केँ पंचतत्त्व मे विलीन कय देबाक बात – ई सब बातक ध्यान देल जाइत छैक। लेकिन मैथिल ब्राह्मण केँ आइ प्रवासक जीवन मे अपन मूल्यवान कर्मकांड सँ दुर जाइत देखि रहल छी। आब मृत्युक बाद बाकी लोकक कर्तव्य मे बहुत रास काट-छाँट भऽ रहल अछि। सवाल कायम अछि। जबाब ताकि रहल छी। श्राद्ध पर सेहो तरह-तरह केर बात आ कौचर्य सब सुनैत रहैत छी। जे मनुष्य अपन परिवार केँ ठाढ करय मे अपन सारा जीवन निछाबड़ कय देलक, तेकरा वास्ते बाकी आश्रित परिजनक मोन मे एहि तरहक निराशाजनक व्यवहार सँ हम दुःखी होइत छी। ओकर आजीवन योगदान केँ हम अपनहि लोक द्वारा तौहीनी होइत देखि रहलहुँ अछि। ई एको रत्ती नीक नहि लागि रहल अछि। जा धरि जिबैत रहल, ता धरि देखाबटी प्रेम आ औपचारिक निर्वहन भेल, मरि गेलाक बाद श्रद्धा सँ श्राद्ध तक लेल तैयार नहि होयब, ई हमरा सभक गर्त मे जेबाक संकेत कय रहल अछि। एतय हम अपन एहि मोनक दर्द केँ विराम दय रहल छी। ईश्वर सँ प्रार्थना करब जे हमर मैथिली-मिथिला ढकोसला नहि बनय, हम जा धरि रही, अपन मूल्यवान् परम्परा आ पुरुखाक सम्मान कायम राखी।
हरिः हरः!!