मिथिलाक महान मनीषीगण: डा. सुभद्र झा केर जीवन-वृत्ति पर डा. रामदेव झा केर लेख

डा. सुभद्र झा: जीवन वृत्त
 
– डा. रामदेव झा
 
डा. सुभद्र झाक जीवन-वृत्त व्यवस्थित रूपमे कहियो लिखल गेल नहि। अपन परिवार ओ आरम्भिक जीवनक सम्बन्धमे विकीर्ण ओ प्रासंगिक रूपमे किछु-किछु सूचना स्वयं ओ अपन निबन्धात्मक संस्मरण सभमे देने छथि। ‘जीवनवृत्त: पिता-माता’ निबन्धमे ओ सूचित कयने छथि जे हुनक जन्म आषाढ वदि पञ्चमी मंगल, ९ जुलाइ १९०९ इ. मे भेल छलनि दरभंगा (आब मधुबनी) जिलाक नागदह ग्राममे।अलयिवार-अलयी मूलक मैथिल ब्राह्मण सुभद्र झाक प्रपितामह धर्मदत्त झा छलथिन हरिपुर-डीहटोलक निवासी। धर्मदत्त झाक विवाह भेलनि नागदह ग्रामक प्रसिद्ध सदावर्ती मोदी झाक पौत्रीमे। किन्तु सुभद्र झाक प्रपितामह धर्मदत्त झाक पत्नी अर्थात् सुभद्र झाक प्रपितामही सासुर नहि जाय नागदहेमे रहलथिन। स्वभावत: हुनक पितामह अपन मातृक नागदहेक निवासी बनि गेलथिन।
 
सुभद्र झा अपन पिता-पितामहक सम्बन्धमे लिखने छथि जे – जखन हमर पिता बारह वर्षमात्रक छलाह, तखने हमर पितामहक मृत्यु भए गेलैन्हि। घरक हमर पितामह महादरिद्र छलाह। तावत धरि मातामह कुलक लोक सभक अवस्था ततेक क्षीण भए गेलैन्हि जे हुनका लोकनि लेल भगिनमानक जीवन-निर्वाह कठिन भए गेलैन्हि, तथा सभसँ छोट भाइक विवाह नहि भए सकलन्हि। तखन हमरा पिताक आश्रममे विधवा माए, एक विधवा जेठि बहिनि, अपने, एक छोट भाए तथा एक छोटि कुमारि बहिनि छलथिन्ह। ई छओ व्यक्तिक निर्वाह हमर पिता कोना कए सकलाह तकर अनुमान करब कठिन अछि। (नातिक पत्रक उत्तर, पृ. ९८)
 
सुभद्र झाक कथनानुसार हुनक पिता लोकनि साँझक साँझ साग-पात-बेल खाय रहैत छलथिन। अपन पिताक आरम्भिक कालक संघर्षमय जीवनक सम्बन्धमे ओ कहैत छथि – हमर पिता सप्ताहक सप्ताह करमी साग वा बेल उसीनि खाथि। सागमे नोन देबाक उपाय नहि रहैन्हि। मुदा ८५म वर्षमे प्रत्यक्षरूपेण शिवसायुज्य लाभ कएनिहार ओ जीवनमे ककरोसँ उधार-पैंच नहि लेलन्हि। (नातिक पत्रक उत्तर, पृ. ९०)
 
सुभद्र झाक पिता पण्डित कुञ्जी झा आत्मसम्मानी ओ संघर्षशील व्यक्ति छलाह। ओ अपन पुरुषार्थसँ अपन परिवारक आर्थिक स्थितिकेँ सुदृढ कयलनि।
 
सुभद्र झाक पितृकुलमे पूर्वमे कतेको महान् विद्वान सभ भऽ गेल छलथिन जाहिमे निबन्धकार रुद्रधर सेहो छलथिन। परन्तु पश्चात् काल विद्याक समागम कुञ्जीए झासँ प्रारम्भ भेल।
 
पं. कुञ्जी झाक विवाह हनुमान नगरक छीतन झाक कन्या निरंजना देवीसँ भेलनि। छीतन झा अत्यन्त परिश्रमी लोक छलाह। हुनक कन्या निरंजना सेहो पितामहिक समान परिश्रमी छलीह। हुनका अबितहि कुञ्जी झाक परिवारक आर्थिक स्थितिमे सुधार होअऽ लागलनि। किन्तु विवाहक अनन्तर कतोक वर्ष धरि हुनका कोनो सन्तान नहि भेलनि। तखन कुञ्जी झा दोसर विवाह कयलनि। परन्तु दोसर विवाहक बाद पहिल पत्नीकेँ तीन गोट पुत्र भेलनि जाहिमे द्वितीय छलाह सुभद्र झा। सुभद्र झाक विमाताकेँ एकता पुत्र-सन्तान भेलनि तकर आठ-नओ मासक बाद विमाताक मृत्यु भऽ गेलनि। अत: ओहि बालकक पालन-पोषण हिनकहि माय कयलथिन।
 
सुभद्र झाक शिक्षारम्भ गामहिमे भेलनि। पहिल बेर भट्ठा धरौनिहार छलथिन गामहिक पं. बलदेव झा। सुभद्र झाक एकटा पितृव्य सुवंश झाक पढबा-लिखबाक सीमा छलनि तिरहुतामे चिट्ठी-पुर्जी लिखब वा पढब परन्तु इच्छा छलनि जे हुनक भातिज खूब पढथि, तेँ ओ अपन सासुरमे पढौनी कैनिहार मुजफ्फरपुर जिलान्तर्वर्ती खौंड़ा ग्राम निवासी छेदीलालकेँ अपना गाम नागदह लऽ अनलनि। हुनकहि लागि कऽ नागदहमे क्रमश: लोअर प्राइमरी स्कूल सेहो स्थापित भेल। सुभद्र झाक दोसर आदि शिक्षक भेलथिन छेदीलाल। परन्तु मिथिलाक पारम्परिक आरम्भिक शिक्षा सुभद्र झाकेँ अपन पिता कुञ्जी झासँ भेटलनि। ओ जीविका हेतु कलकत्तामे रहल करथिन। ओ जखन गाम आयल करथि तँ नेना सुभद्र झाकेँ अपना खाटपर सुताबथि आ भोरे हुनका उठाय संस्कृतक श्लोक सभ रटाबथि। अमरकोषक किछु वर्ग, अपन कुल, मूल इत्यादिक अभ्यास हुनक पिते करौलथिन।
 
सुभद्र झाक पिता पं. कुञ्जी झा छलाह फलित ज्योतिषी। अपन विषयक ज्ञानक संगहि वेदाङ्ग ज्यौतिष सहित एहन सभ वैदिक मन्त्र सभक अभ्यास रखैत छलाह जकर सम्बन्ध ज्यौतिषसँ होइक। ओ अर्थोपार्जन हेतु कलकत्तामे रहल करैत छलाह। किछु दिन एक अंगरेजी स्कूलमे संस्कृत अध्यापको रहलाह। ओहि क्रममे कलकत्ताक सतीशचन्द्र विद्याभूषण, सर आशुतोष मुखर्जी, ज्योतिषचन्द्र मुखर्जी, सुभाषचन्द्र बोस, राजा मोतीचन्द्र, बालानन्द ब्रह्मचारी, ओहि समयक देश-विदेशसँ प्रख्यात आँखिक डाक्टर सुशील कुमार मुखर्जी, श्री श्री आनन्दमयी मा सदृश पैघ-पैघ लोक सभसँ परिचय आ घनिष्टता छलनि। हुनक इच्छा छलनि जे हुनक बालक सुभद्र फलित ज्योतिष पढि लितऽथिन तँ हुनक यजमान सभसँ सम्पर्क अनायासे सुभद्र झाकेँ भऽ जैतनि तथा ताहिसँ जीविकोपार्जन ओ कऽ सकितथि। डा. सुभद्र झा एहि प्रसंगमे लिखने छथि जे – मुदा एहि दिशामे ओ कोनो प्रेरणा देल से हमरा स्मरण नहि अछि यद्यपि फलित ज्योतिषक किछु पोथी हम पढबो कएल। दादाक सान्निध्य वा सम्पर्कसँ एतबा भेल जे पता देखब कनेमने आएल, यात्राक समयक अपूर्ण गणनाक अभ्यास भेल। आइ-काल्हिक अधकचरा ज्योतिषी सभसँ मुहचोथौअलि करबाक योग्यता प्राप्त सेहओ भेल। (नातिक पत्रक उत्तर, पृ. ९९)।
 
वास्तवमे आरम्भिक जीवनकालमे सुभद्र झाक व्यक्तित्व-निर्माणमे तीन व्यक्तिक सभसँ अधिक योगदान रहलनि। से छलतिन पिता पं. कुञ्जी झा, माता निरंजना देवी तथा जेठ भाइ जयभद्र झा।
 
एहि सम्बन्धमे ओ स्यवं लिखने छथि जे –
 
हमरा पिता सएह गायत्री दीक्षा देल तेँ ओएह हमर आचार्य छलाह। हमरा तान्त्रिक कौलिक दीक्षा मातासँ भेटल। तैँ हमर आदि गुरु हमर माए-बाप सएह छलाह। माइक विषयमे तोरा एतबए कहबहु जे हम जे किछु प्राचीन मैथिली भाषा लिखैत-बजैत छी, से निसर्गत: माइसँ प्राप्त संपत्ति थिक। हमरामे यदि किछु निर्भीकता अछि तँ से माइक देल थिक, यदि हम प्रत्यह नियमित रूपेँ आठ घण्टासँ सोरह घण्टा धरि एकोपक्रमे श्रम कए सकैत छी, सहओ वरदान हमरा माइसँ प्राप्त अछि। हमरा लगले तमसएबाक आ लगले अनुकूल होएबाक जे स्वभाव अछि से हमर पितासँ प्राप्त स्वभाव थिक। (नातिक पत्रक उत्तर, पृ. ११३)।
 
नागदहमे छेदीलाल गुरुजीक अयलापर, नव स्थापित लोअर स्कूलमे पढाइ सम्पन्न कयलापर सुभद्र झा रहिकाक मिडिल स्कूलमे पढलनि। तत्पश्चात् मधुबनीक वाटसन स्कूलमे नाम लिखौलनि। ओहि ठामसँ मैट्रिक्युलेशन परीक्षा पास कयलनि १९२७ मे। सुभद्र झाक आन्तरिक इच्छा रहनि चिकित्सक बनबाक। अत: कलकत्ता जाय विज्ञान पढ़ऽ चाहैत छलाह। किन्तु हिनकासँ वयसमे जेठ एकटा अपनहि गामक चतुर विद्यार्थी मित्र हिनक अनभिज्ञताक लाभ उठाय कलकत्ताक बदलामे मुजफ्फरपुरक जी.बी.बी. कालेजमे आइ.ए.मे नाम लिखा देलकनि आ हिनक टाकासँ अपना निमित्त बी.ए.क पोथी कीनि लेलक।
 
१९३० इ.मे मुजफ्फरपुरसँ आइ.ए. परीक्षा पास कयलाक पश्चात् सुभद्र झा कलकत्ता चलि गेलाह। ओहि ठाम स्कौटिश चर्च कालेजमे बी.ए.मे नाम लिखौलनि। १९३२मे संस्कृत विषयमे औनर्सक संग द्वितीय वर्गमे बी.ए. (औनर्स) परीक्षा पास कयलनि। एहिमे सुभद्र झाकेँ एवार्ट पुरस्कार प्राप्त भेलनि। १९३४ इ.मे कलकत्ता विश्वविद्यालयसँ ओ वेद विषयक विशेष पत्रक संग संस्कृतमे एम.ए.क परीक्षा पास कयलनि। एहि परीक्षामे सुभद्र झाकेँ प्रथम वर्गमे प्रथम स्थान प्राप्त भेलनि। एहि उपलक्ष्यमे हुनका विश्वविद्यालय-पुस्तक-पुरस्कार सेहो प्रदान कयल गेलनि। १९३५ इ.मे ओही विश्वविद्यालयसँ भारतीय भाषा (हिन्दी) विषयमे द्वितीय वर्गमे प्रथम स्थानक संग एम.ए. परीक्षा उत्तीर्ण भेलाह आ बिरला स्कालरशिप प्राप्त भेलनि। १९३६ मे बिहार संस्कृत एसोसिएशनसँ साहित्याचार्य कयलनि।
 
१९३६ इ.मे सुभद्र झाकेँ तुलनात्मक भाषा विज्ञानमे अनुसन्धान करबाक निमित्त पटना विश्वविद्यालयसँ रिसर्च स्कालरशिप प्राप्त भेलनि। ओ मैथिली भाषाक उद्भव ओ विकासपर अनुसन्धान करऽ लगलाह। परन्तु स्कालरशीप चारि वर्षक अवधिमे शोधकार्य सम्पन्न नहि भऽ सकलनि। अत: १९४०मे ओ कलकत्ता चलि गेलाह। ओहि ठाम डा. सुनीति कुमार चटर्जीक सान्निध्यमे अपन शोध प्रबन्ध सम्पन्न कऽ डाक्टरेट उपाधिक परीक्षा हेतु पटना विश्वविद्यालयमे समर्पित कयलनि। १९४४ इ.मे पटना विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट्.क डिग्री प्रदान कयल गेलनि। सुभद्र झा पटना विश्वविद्यालयक ई सर्वोच्च डिग्री प्राप्त कयनिहार प्रथम व्यक्ति छलाह।
 
ओ पुन: १९४६ सँ १९५१ धरि पटना विश्वविद्यालयमे रिसर्च फेलो रहलाह। एहि फेलोशिपक अन्तर्गत उच्च शिक्षाक हेतु विदेश गेलाह। १९४६ इ.क अक्टूबर माससँ जुलाइ १९४८ धरि फ्रान्सक राजधानी पेरिसमे, पेरिस विश्वविद्यालयमे प्रसिद्ध भाषाशास्त्री ज्यूल ब्लौखक निर्देशन-पर्यवेक्षणमे विशिष्ट अध्ययन-अनुसन्धान कयलनि। ज्यूल ब्लौख सुभद्र झाक गुरु डा. सुनीति कुमार चटर्जीक सेहो गुरु छलथिन। अत: सुभद्र झा हुनका बूढागुरु कहल करथिन।
 
पेरिसमे सुभद्र झा बूढागुरु ज्यूल ब्लौखसँ भारतीय भाषा विज्ञान, आचार्य फूशेसँ ध्वनिविज्ञान तथा विश्वविख्यात वेद-विद्वान् लुइर्नुसँ अथर्ववेदक पैप्पलाद शाखाक अध्ययन कयलनि। १९४६मे पेरिस विश्वविद्यालयसँ भारतीय विद्या (Indology)मे डी.लिट्.क उपाधि प्रदान कयल गेलनि। ओहि ठामसँ प्रत्यावर्त्तित भेलाक पश्चातो १९५१ धरि पटना विश्वविद्यालयक सीनियर रिसर्च फेलोक रूपमे कार्यरत रहलाह।
 
डा. सुभद्र झाकेँ उच्च सँ उच्चतर अधिकाधिक शिक्षा प्राप्त करबाक ततेक प्रबल आकांक्षा छलनि जे हुनक अपन जीवनक चारि दशकसँ अधिके ओहिमे बीति गेलनि। एतेक धरि जे अपन जीवनक उत्तरकालमे सेहो विधिवत् परीक्षार्थी बनि बिहार विश्वविद्यालयसँ विधि-स्नातक (बी.एल.)क उपाधि प्राप्त कयलनि।
 
क्रमश:…..
 
हरि: हर:!!