विजय कुमार इस्सरजीक जन्मदिन पर ‘प्रवीण’ शुभकामना


समस्तीपुर – दलसिंहसराय – टभका पंडित टोल – बेगूसराय आदिक इलाका मे आमजन मे मैथिली भाषा व्यवहार मे रहितो राजनीतिक आवोहवा आ मैथिली भाषा-संस्कृति अभियानक शिथिलताक कारण कटैत चलि जेबाक हिनकर चिन्ता विशेष तौर पर मोन पड़ैत अछि। आपसी तनातनी आ टांग घिचबाक प्रवृत्ति हावी रहबाक कारण कोनो अभियान केँ जाहि गति सँ चलबाक चाही से नहि चलि पबैत छैक आर गछियोकय आइ धरि हमरा लोकनि श्री विजय कुमार इस्सर केर प्रस्ताव पर आगाँ नहि बढि पेलहुँ। हिनकर माँग छलन्हि जे एहि दिशा मे टभका पंडित टोल जतय मैथिलीक एक सँ बढिकय एक महामहोपाध्यायव विद्वान् लोकनि अवतार लैत अनेकों प्रतिष्ठामूलक कार्य कएने छथि, ताहि क्षेत्रक लोकसमाज केँ ई अनुभूति करेनाय जे मैथिली अहुँक भाषा थिक, बोली भले फरक रहय परञ्च ईहो भाषा मैथिली थिक, एहि तरहक अभियान चलायब बहुत आवश्यक अछि। कि करब भाइ…. हम-अहाँ असगर कोनो सोचे बनाकय कि कय सकब जखन माहौल सिर्फ आ सिर्फ खरखाँही लूटबाक पाछाँ बेहाल यऽ।

– प्रवीण
श्री विजय कुमार इस्सर रचित किछु कविता-गीत
१. कविता-फगुआ के उत्पात
क्षमा करब, मदिरायल मन सँ, भ’गेल हो जँ किछु बात ।
दोष हमर नहि, ई फगुआ अगिलगुआ के अछि उत्पात ॥
क्षमा करब————————
सिहिक सिहिक क’ पुरिबा पैसल, सौंसे देहक पोरे पोर।
घूसिक नस के सोनित धार मे, जोर जोर मारै हिलकोर॥
अंग अंग फरकय फूर्ति सँ, कनियो तंग भ भेली कात ।
दोष हमर नहि, ई फगुआ अगिलगुआ के अछि उत्पात ॥
क्षमा करब——————–
रंग बिरंगी फूल देखिके, केकरा मोन ने जगतै प्रीत।
आँखि सुंदरि पर टिकबे करतै, मोनो गेतै प्रीतक गीत॥
मेघ कतेक आकाश मे घुरतै, कतौ त’ हेतै बरसात ।
दोष हमर नहि, ई फगुआ अगिलगुआ के अछि उत्पात॥
क्षमा करब——————–
बड कठीन दिन एसगरूआ के, देहजरूआ भेलै मतिक्षीन।
छिछियाइत फिरै छै सभ ठाँ, कछमछाइत-राति नैँ नीन॥
जानि ने कत’ बज्जर खसेतै, बहिते रहल जँ एहन बसात ।
दोष हमर नहि, ई फगुआ अगिलगुआ के अछि उत्पात ॥
क्षमा करब——————–
साँच कहब कि के छी बाँचल, किनकर नैँ उमतल मन-देह।
यौ सुखलो गाछ मे निकलल पनकी, डिभि जनमलै सुखल-रेह॥
नुका नुका सब पिबि रहल छी, खूब फेकैछी खा क’ पात ।
दोष हमर नहि, ई फगुआ अगिलगुआ के अछि उत्पात ॥
क्षमा करब——————–
२. गीत – फगुआ अगिलगुआ
ई फगुआ अगिलगुआ अबितहि
घसलक एहन सलाई
प्रेमक दीप टिमटिमाइत छल से
धधकल बढ़िते जाइ
छै की एकर कोनों दवाइ
करी की हम कहू यौ भाई—–।
छूछ अगत्ती छोटका छौड़ा
कोर छोड़ि नैञ जाइ
सदिखन रहे लपटायल माय सँ
छुबिते जोड़ चिचियाइ
कतय जा मरलनि निनिया माइ
करी की हम कहू यौ भाइ—–।
भरि दिन खरहू टिर्री मिलि कय
घर आंगन सोहराइ
सून दलान के देखि बजौलिएन
कहलनि धुर हरजाइ
कहू त’अ एहुना कतहुँ लजाइ
करी की हम कहू यौ भाइ—–।
रंग बिरंगी फूल के देखिते
म’न भ्रमर बनि जाइ
कखनहूं एहि पर कखनहूँ ओहि पर
उड़ि-उड़ि के बैसि जाइ
कछमछ करिते देह दुखाई
करी की हम कहू यौ भाइ—–।
कामातुर मन, माथ मे सनकी
नैन सगर छिछिआइ
सुखलो गाछ पर निकले पनकी
देखि म’न पितिआइ
वसंत ऋतु कनिको नैञ सोहाइ
करी की हम कहू यौ भाइ—–।
ई उत्पात सँ बाँचल क्यो नहि
ककरो कहल ने जाइ
मारि रहल नित अपनहि म’न के
हम सब महा कसाइ
छमब अपराध हे दाइ माइ
करी की हम कहू यौ भाइ—–।
समस्तीपुर जिलाक मूल निवासी श्री विजय कुमार इस्सर केर जीवनी पर – कृत्ति आदिक विवरण संग पुनः दोसर दिन!!
हरिः हरः!!