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गीताक निरन्तर अध्ययन-मनन सँ भेटैत अछि मनुष्य जीवन लेल अनुकरणीय मार्गदर्शन

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

मनुष्य कल्याणक अचूक अस्त्रः गीता, एक महाशास्त्र
 
गीता एहेन गूढतम् शास्त्र थिकैक जाहि पर जतेक माथ लगायब, माथाक गन्दगी ततेक बेसी दूर होयत।
 
मोन पड़ैत अछि एकटा नैतिक कथा –
 
बाबा अपन पोताक ई जिज्ञासा जे हुनका कहला मुताबिक पोता द्वारा कतेको बेर गीता पढि लेलाक बादो सब बात एखन धरि कंठाग्र नहि भऽ सकल, बहुते बातक अर्थ सही ढंग सँ नहि बुझि पेलहुँ, आदि शिकायत पर अपन एकटा नया फरमान जारी कएलनि। पोता सँ कहलखिन जे कोयला उठबयवला पथिया ले आ बगले मे पोखरि सँ पानि भरने आबे। पोता हँसिकय कहलकनि जे कि बाबा अहूँ भसिया गेलहुँ, यौ! पथिया मे कतहु जल भरायत…. एहि मे एतेक रास भूर छैक, जल टिकबे नहि करतैक।
 
बाबा फेर कहलखिन, “से जे हेतैक, मुदा तूँ जो आ जल भरने आबे”। बेचारा पोता, मरता क्या नहीं करता वाली बात… बाबा केँ गुरु मानैत छल आर हुनकर आदेश केँ माथ पर राखि पोखरि कंछरि मे जा पानि भरलक आ बाहर लय केँ आयल ओहि कोयलावला पथिया मे जल सहित – कंछैर सँ ऊपर अबिते देरी पानि खत्म भऽ जाय, बाबा लग पहुँचय तऽ एको बुँद नहि बचैक।
 
बाबा कहलखिन, “रौ, एको बुँद त एब्बे करतय। फेरो जो। फेरो भरे। देखा चाही जे कय बेर मे ई भरैत छौक। कनी जल्दी-जल्दी दौड़िकय अनबाक चेष्टा करे।”
 
पोता फेर गेल। फेर वैह हाल। अबैत-अबैत पानि साफ….!
 
अन्त मे बाबा अपन पोता सँ कहलखिन, “छोड़! थाकि गेल हेमे। दोसर दिन फेर प्रयास करिहें।”
 
पोता फेर पूछलकनि, “हमर जिज्ञासाक समाधान त नहि देलहुँ जे एतेक बेर गीता पढलाक बादो बुझय मे पूरा बात नहि आबि सकल?”
 
बाबा कहलखिन, “बौआ! एहि कोयलावला पथियाक रंग पहिने केहेन छलैक? आर, आब जखन तूँ १०-१२ बेर एहि मे जल भरिकय अनबाक प्रयास केलें तखन एकर रंग केहेन भेल छैक?”
 
पोता बाबाक इशारा भाँपिकय पथिया दिश नजरि देलक, सच मे कोयलाक रंग सँ कारी स्याह भेल ओ पथिया एहि १०-१२ बेर जल भरबाक क्रम मे एकदम झकझक साफ देखाय लागल छैक आब।
 
बाबा कहलखिन, “सही देख रहल छिहीन। बेर-बेर पानि भरि अनबाक क्रम मे जखन कोयलाक कारिख सँ रंगायल ई पथिया झकझक साफ भऽ सकैत छैक, ठीक तहिना वर्षों-वर्ष सँ अन्ट-सन्ट बात सँ भरल, मैल जमल माथ मे गीताक गूढतम ज्ञानरूपी जल जखन भरबाक प्रयास करबिहीन तऽ तोहर-हमर माथक एहि पथिये जेकाँ कतेको रास भूर होइत ओ ज्ञानरूपी जल बहि जेतौक, मुदा ई स्पष्ट छैक जे बेर-बेर पढबाक आ मनन करबाक क्रम मे एहि मे जमल ओ मैलरूपी – अज्ञानरूपी – सन्देहरूपी कारिख सब अवस्स साफ होएत-होएत निरन्तर अभ्यासक कारण कहियो त सब बात स्पष्ट हेब्बे टा करतौक।”
 
पोताक अनुहार पर संतोषक झलकी देखाय लागल, ओ विहुँसिकय बाबा केँ गोर लागिकय प्रणाम करैत हुनकर देल गेल नव सीख प्रति आभार प्रकट केलक।
 
तैँ, मित्रगण! गीताक विभिन्न ७०० श्लोक मे सँ ७ गो श्लोक जँ हमरा लोकनि नित्य अभ्यास करैत रहब तऽ जरूर एक न एक दिन अपन माथाक मैल आ कारिख मेटा जायत। एहि कथाक लाभ हम सब जरूर उठाबी।
 
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः॥
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिध्येदकर्मणः॥३-८॥
 
गीताक तेसर अध्यायक ८म श्लोक मे भगवान् कृष्ण अर्जुन सँ कहैत छथिन, “नियत कर्म – अपना लेल निर्धारित कार्य केँ कयल करू कियैक तँ कर्म अकर्म सँ बेस नीक होएत छैक; एतेक तक जे एहि शरीरहु केर निर्वाह अहाँक अकर्मण्यता (बिना नित्यकर्म कएने) संभव नहि अछि।”
 
विदित हो जे तेसर अध्याय मे शरणागत शिष्य अर्जुन द्वारा शुरुए मे जिज्ञासा कयल गेल अछि जे प्रभुजी, अध्याय २ मे अहाँ जेना शिक्षा देलहुँ अछि ताहि मुताबिक ज्ञान होयब नीक छैक तऽ फेर ई कर्मक फेरा मे लोक कियैक फँसय? एहि दुइ मे सँ कोनो एके टा बात करब ठीक रहत। कहल जाउ, हमरा लेल कि बेसी ठीक रहत? आर यैह जिज्ञासा केँ भगवान् कृष्ण ढंग सँ एक-एक बात फरिछाबैत कर्म, अकर्म आदि पर प्रकाश देने छथि। एहि अध्यायक अध्ययन-मनन सँ हमहुँ अहाँ अपना लेल सब बातक निस्तुकी निर्णय कय सकैत छी। जीवन मे जहिया कहियो दुविधाक स्थिति बनय, कि करू, कि नहि करू… तऽ बस एक बेर, खूब मन सँ गीताक पाठ आरम्भ सँ अन्त धरि अवश्य कय लेल करू। अस्तु!
 
हरिः हरः!!

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