दर्शन-विचार
– श्री स्वामी चिन्दानंदजी सरस्वती (अनुवादः प्रवीण नारायण चौधरी)
महाराजा धृतराष्ट्र केर लघु भ्राता नीति केर महापण्डित विदुर द्वारा अपन नीति वाक्य (विदुर-नीति) मे बड़ा जोरदार शब्द मे जैहेन केँ तेहेन बर्तावक आज्ञा देल गेल अछि। यथा –
कृते प्रतिकृतिं कुर्याद्विंसिते प्रतिहिंसितम्।
तत्र दोषं न पश्यामि शठे शाठ्यं समाचरेत्॥
(महाभारत विदुरनीति)
अर्थात् – जे जेहेन करय ओकरा संग ओहने बर्ताव करू। जे अहाँ ऊपर हिंसा करैत अछि, अहूँ ओकर प्रतिकार मे ओकरा ऊपर हिंसा करू! एहि मे कोनो दोष नहि मानल जायत, कियैक तँ शठ केर संग शठता मात्र करबा मे उपाय पक्ष केर लाभ अछि।
श्रीकृष्ण जी सेहो यैह बात कहने छथि। यथा –
ये हि धर्मस्य लोप्तारो वध्यास्ते मम पाण्डव।
धर्म संस्थापनार्थ हि प्रतिज्ञैषा ममाव्यया॥
(महाभारत)
हे पाण्डव! हमर प्रतिज्ञा निश्चित अछि जे धर्मक स्थापनाक लेल हम ओहेन केँ मारैत छी, जे धर्म केर लोप (नाश) करयवला अछि।
वेदादि शास्त्र केर प्रमाण सभ सँ ई तऽ निश्चय भऽ गेल जे आत्मरक्षा अथवा देशहित केर वास्ते दुष्ट, आततायी तथा राक्षस केँ मारनाय पुण्य थिक।
एतय एकटा प्रश्न उपस्थित होएत छैक जे कहियो-कहियो कियो कोनो निरपराधी पर आक्रमण करय तँ एहि पर आर्य केर विचार अछि जे छली केँ छल सँ मारय मे कहियो संकोच नहि करी – यानि छल, कपट, आदि सँ सेहो शत्रु केँ मारि देबाक चाही। एहेन समय मे जँ नियम आर अनियम केर गोरखधन्धा मे फँसल रहब, तखन कार्य सिद्धि नहि होयत।
एकरा लेल वेद मे आज्ञा अछि जे मायावी, छली, कपटी अर्थात् धोखेबाज हो, ओकरा छल, कपट अथवा धोखा सँ मारि देबाक चाही। यथा –
‘मायाभिरिन्द्रमायिनं त्वं शुष्णमवातिरः।
ऋग्वेद 1।11। 6।
अर्थात् हे इन्द्र! मायावी, पापी, छली तथा जे दोसर केँ चूसय वला अछि, ओकरा अहाँ माया सँ पराजित करैत छी। एहिमे ‘मायाभिरिन्द्र मायिनं’ वाक्य पर विशेष ध्यान देबाक चाही। स्पष्ट लिखल अछि जे मायावी केँ माया सँ मारि दियौक।
महाभारत मे सेहो श्रीकृष्ण जी द्वारा दुर्योधन-भीम गदा युद्ध केर अवसर पर भीम केँ यैह मंत्रणा देने छलखिन जे हे भीम दुर्योधन अहाँ संगे बहुत छल कएने अछि, आब जँ अहाँ एकरा जीतय चाहि रहल छी तँ छल कपट सँ मारू अन्यथा ई नहि जीतल जा सकत। यथा –
मायिनं तु राजानं माययैव निकृन्ततु। भीमसेनस्तु धर्मेण युध्यमानो न जेष्यति॥ अन्यायेन तु युध्यन् वै हन्यादेव सुयोधनम्।
भीमसेन धर्म सँ युद्ध करैत दुर्योधन केँ नहि जीतल जा सकत। जँ अहाँ छल सँ युद्ध करब तऽ सुयोधन (दुर्योधन) केँ जीतब। अतः छली दुर्योधन केँ अहाँकेँ छल टा सँ मारबाक चाही।
उपरोक्त प्रमाण सभ सँ सिद्ध कयल गेल अछि जे सत्य और अहिंसा केँ मानयवला ऋषि-महर्षि सेहो देश व जाति केर रक्षाक लेल जैहेन केँ तेहेन उत्तर देनाय आर मिथ्या हिंसा नहि करबाक आज्ञा दैत रहल छथि। वेदादि शास्त्र सभक दृष्टि सँ आर लोक कल्याण केर दृष्टि सँ असत्य भेल आर हिंसा सेहो वास्तव मे सत्य और अहिंसा थिक।