“मिथिलामे एहि पाबनिकेॅं विशेष महत्व छैक।”

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— रिंकू झा।     

तिला संक्रांति मतलब तिल चाउर बहब ,
तिला संक्रांति यानी मकर संक्रांति पुरा देश भैर में बहुत धुम -धाम संँ हर्ष और उल्लास के सँग मनेल जाइत अछि , हँ एकर नाम में बिभिन्नता अलग -अलग क्षेत्र में अलग -अलग छै।
मिथिला में ई पावनि तिला संक्रांइत के नाम संँ प्रसिद्ध अछि , जेना कि नामे सँ बुझा गेल हेत जे तिला संक्रांइत मतलब तिल स जुरल पावनि , मिथिला में अहि पाबनि के बिशेष महत्व छै , इ पावनि संकल्प सं जुरल एक टा पावनि छै जाहि मे मिथिलाक माय या घड़क बुजुर्ग बृद्ध महिला सब हाथ मे तिल चाउर आर गुर ल आजुक दिन भोरे भोरे अपन -अपन बच्चा सब आर छोट जन सं हुनका हाथ मे तिल चाउर दैत पुछय छैथ कि हमर तिल चाउर बहब आर जबाब मे हुनका भेटै छैन ह बहबौ अहि तरहे तीन बेर पुछल जाइ छै, एकर पछा उद्देश्य याह रहै छै कि वृद्धावस्था में बच्चा सब अपन माय,-बाप के सेवा करैथ ।इ पावनि हरेक साल पुष मासक शुक्ल शष्ठी क मनेल जाय छै ,कहल जाय छै कि अहि दिन सुर्य धनु राशि स अपन कक्ष मे परिवर्तन क दक्षिणायन स उत्तरायण भ के मकर राशि में प्रवेश करै छैथ अपन पुत्र शनिदेव के घर में जे मकर राशि के स्वामी छथिन पिता पुत्र के अन्य दिन भेंट-घाँट संभव नहीं भ सकै छैन ताहि हेतु अहि दिन बिशेस रुप स मिलन होय छैन , अहि दिन सं राति थोरे छोट आर दिन थोरे-थोरे पैघ होबै लागै छै कहावत छै कि तिले -तिले दिन बर्हेय लागै छै , अहि दिन सं खरमास समाप्त भ जाय छै ,आर ब्याह दान,उपनयण,मुण्डन आदि के शुभ लग्न सब शुरू भ जाय छै ,तिले संक्रांतिक दिन सँ बसंतक आगमन सेहो भय जाय छै , चारु दिश फसल के हरियाली लहलहे लागय छै , मिथिला में माघ नहेब सेहो शुरू भ जाय छै।
अहि पावनि में खान-पान मौसम के अनुरूप बनेल जाय छै , स्वास्थ्य स जुरल अहि पावनि में गुर-तिल, चुरा-दही ,लाई-चुरलाइ आ खिचुडी के से प्रधानता छै ,साग-सब्जी के सुबिधा के अनुसार रंग -बिरंगक तरूआ, तरकारी बनेल जाय छै ,। गुर आर तिल गरम होइ छै त ठण्ढ में तिल,गुर शरीर में गरम उर्जा प्रदान करय छै, वैज्ञानिक दृष्टिकोण सं देखू त खिच्चैर पाचण क्रिया के दुरुस्त राखै छै, खिच्चड़ी मे जे मटर आर आद उपयोग करै छी से आयुर्वेदिक औषधि के रूप में शरीर के अन्दर रोग प्रतिरोधक क्षमता के बढाबै के काज करै छै , खिच्चैर के महत्व धार्मिक दृष्टिकोण स देखब पता चलत जे उरिदक कारी दाइल के संबंध शनिदेव स जुरल छै, घि के संबंध सुर्यदेव स आर साग सब्जी जेना मटर ,आद, गोभी आदि के संबंध बुध स जे हरियर के परिचायक छी, हल्दी के बृहस्पति ग्रह स जे गुरु के संबंध छी ,
तिला संक्रांइत में गंगा स्नान आर दान -पुण्य के बहुत महत्व छै, अन्न, वस्त्र, आदि दान केला सं बहुत पुण्य होइ छै ,अहि दिन लोक सब गंगा, गोदावरी, हरिद्वार,संगम , नदी, पोखैर आदि में डुबकी लगा नहाय छैथ ,शिव के आराधना करै छैथ , गंगा सागर नहाय के सेहो बहुत महत्व छै संक्रांति पर ,एकर किछु धार्मिक महत्व सेहो छै कहल जाय छै कि यैह दिन भगवान विष्णु सदा के लेल अशुर के समाप्त केने छैथ ,२ महाराज भगीरथ यैह दिन कठोर तप सँ गंगा जी के पृथ्वी पर अवतरित केला आर अपन पुरखा के महाराज सगरक साइठ हजार पुत्र के श्राप स मोक्ष प्राप्त करेने छैथ , जाहि हेतु आजुक दिन हजारों हिन्दु पवित्र नदी गंगा सागर में डुबकी लगा अपना पुरखा के मुक्ती हेतु तर्पण करै छैथ ,।३भिष्मपितामह सेहो अहि दिन अपन इच्छा मृत्यु प्राप्त केने छैथ , उत्तरायण में मृत्यु प्राप्त केनाइ के बिशेष महत्व छै, संक्रांतिए पर बहुत जगह मेला सेहो लागै छै । बच्चा सब उत्साह मे गुड्डी से खुब उड़ाबै छैथ ।
मिथिला में नव विवाहित महिला सब अहि दिन जराउर यानी साँझ पावनि पुजै छैथ जाहि मे हुनका लेल सासुर सँ सनेश यानी भार लाइ, चुरलाइ ,तिलवा ,साड़ी,साल, स्वेटर, कम्बल आदि श्रंगार के सामान सब आबै छैन जे सभ पहिर ओढी साँझ खन क पुजा केल जाय छै , अहि दिन स कुमारि बेटी धी सब भोरे भोर तुषारी पुजव शुरू करै छैथ , मां गौरी के आराधना,
ओना त बहुत बेशी गाँव में नहीं रहै छलौ पढाइ -लिखाइ के कारण मुदा जतबो गेल छी हम देखै छलौ जे तिला संक्रांइत में गाँव-घर मे एक टा अलगे उमंग रहै छलै सबहक मन मे खास क बच्चा सब में हप्ता भैर पहिले स तैयारी शुरू भ जाय छलै ,चुड़ा कुटेनाइ , मुरही भुजेनाइ , धान सुखेनाइ , कारी तिल के तिलवा बनेनाइ , घरे -घरे लाइ, चुरलाइ , तिलवा बनब शुरू भ जाय छलै , संक्रांति दिन भोरे भोरे हम सभ हाथ मे तिल लय पोखैर आर धार मे जा सात बेर डुबकी लगावै छलौ , दादी कहै छलैथ जे जतेक डुबकी देबही तते तिलवा भेटतौ ,जा धैर घर अवितौ तात दादी सब बरका घुर कय क राखै छलैथ अविते बैस जाय छलौ घुर तर खाद्धी बला चादर ओढी क , मां , दादी भगवती नीपी क आबै छलैथ आर तिल चाउर बहब कही खुवा दै छलैथ तिल चाउर, आर मां सब अन्न आर कम्बल सब दान करै छलैथ भगिनमान सब के तखन मां चुड़ा दही चीन्नी आर अचार खाय लेल दै छलैथ संग मे लाइ चुरलाइ तिलवा सेहो , फेर दुपहर मे खाना भेटै छल उरिदक दाइल के खिच्चैईर मटर आर अदरक बला , आलु गोभी के सब्ज़ी, संग बहुत रास तरुवा सब , घी , पापड़ , ब्राह्मण भोजन सेहो मां सब करबै छलैथ ,बड्ड मजा आबै छल गाँव मे , सुर्यक ताप से बढी जाय छलै अहि दिन स ।
अहि तिला संक्रांइत में चलु हम सभ मिलि एक टा प्रण ली जे हम सभ एकजूट भ एक दोशर के सहयोग करी , मिथिला के लेल जतेक नीक क सकब से करब पछा नहीं हटब , मिथिला के तिल चाउर के भार बहब , मिथिला के गर्वित करब ।
शहर में ओ आनंद त नहीं छै जे गाँव मे रहै छलै मुदा शहरो मे मिथिला संस्कृति के अनुसार संक्रांति पावनि जरूर मनावै छी बच्चा सब के सिखाबै के प्रयत्न करै छी अंहु सब करु ।
जय मिथिला जय मैथिली
✍️ रिंकु झा ग्रेटर नोएडा