“घरेलू हिंसाक कारण आ ओकर दुष्परिणाम “

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— अखिलेश कुमार मिश्रा।         

सभ सँ पहिले त’ बुझु जे घरेलू हिंसा अछि की, मतलब घरेलू हिंसा केकरा कहल जाइत अछि।
अगर घरक सदस्य या कुनो पारिवारिक रिस्तेदार द्वारा दोसर कुनो सदस्य या रिस्तेदार कें शाररिक, मानसिक, आर्थिक अथवा लैंगिक भेद के आधार पर कुनो अपमान, तिरस्कार या आघात पहुँचेनाइ घरेलू हिंसा कें अन्तर्गत आबैत अछि। एकर अलावे मौखिक रूप सँ अपमानित केनाइ सेहो घरेलू हिंसा के अंतर्गत आबैत अछि।
अपन घर-समाज में देखल गेल अछि जे एकर शिकार सभ सँ बेसी स्त्रीगण छैथि आ कनि मनी बच्चा सेहो। घरेलू हिंसाक शिकार पुरुष नगण्य होइत छैथि मुदा वर्त्तमान थोड़े पुरुष सेहो एक्कर शिकार भेलैथि अछि।
*घरेलू हिंसा आ हिंसाक कारण*
1. सभ सँ पैघ कारण अछि सामाजिक सोच। अपन समाज में इ सोच एखनो धरि बनल अछि जे पुरुष स्त्री सँ सबतरहें श्रेष्ठ अछि ओ शारीरिक हो या मानसिक।
2. दोसर कारण अछि दहेजक असंतुष्टि: दहेजक लोलुपताक कारण घरेलू हिंसा बेसी देखल गेल अछि।
3. पति पत्नी में अनबन भेनाइ: एकर कारण अछि पत्नी द्वारा कखनो शारीरिक सम्बन्ध लेल अनिच्छा। पति द्वारा बच्चा सभक उचित देख-भाल कें उपेक्षा केनाइ। पति या पत्नी के द्वारा अपन जीवनसाथी/संगनी संग विश्वासघात। पत्नी द्वारा नीक भोजन नै बना पेनाइ। पत्नी/पति द्वारा हमेशा अपन जीवनसाथी/संगिनी कें ताना मारनाइ। स्त्रीक बाँझपन के चलते अनावश्यक ताना। पुरुष के द्वारा उचित धनोपार्जन नै केनाइ, शराब पिनाइ, घरेलू काज पत्नी कें मदद नै केनाइ आदि।
4. बच्चा संग घरेलू हिंसा: जेना माता-पिता द्वारा दोसर घरक बच्चा कें परतर द’ क’ दिन-राति प्रताड़ित केनाइ। बच्चा कें उचित बाज’ देनाइ पर रोक। ओकर फी नै भरनाइ, आदि। बच्चा कें द्वारा बालश्रम सेहो कारण अछि। बहुते ठाम त’ देखल गेल अछि जे गरीबी चलते बच्चाक अंग सेहो बेचल गेल अछि।
5. घरक वृद्ध पर हिंसा: एकर मुख्य कारण अछि सन्तति अथवा उत्तराधिकारी द्वारा वृद्ध माय-बापक सेवा/देख भाल उचित ढंग सँ नै केनाइ। देखल गेल अछि जे भौतिक लोलुपताक पराकाष्ठा कें चलते कतौ कतौ त’ हुनका सभ सङ्गे मारि पीट तक कैल जाइत अछि।
*घरेलू हिंसाक दुष्परिणाम*
देखल गेल अछि जे, जे व्यक्ति (महिला/पुरुष) घरेलू हिंसाक शिकार भेल छैथि ओ ओहि ड’र सँ बाहर नै भ’ पाबैत छैथि। चूँकि इ हिंसा अनवरत होइत रहैत अछि जे दीर्घकालिक होइत अछि तहिना अहि सँ पीड़ित कें मुक्ति पाबै में बड्ड समय लागैत छैन्ह। बहुते त’ अहि सँ आजन्म बाहर नै भ’ पाबैत छैथि। पीड़ित अहि कें चलते अत्यधिक नकारात्मक सोच सँ ग्रसित रहैत छैथि जाहि चलते परिवार/समाजक विकास में बाधा पड़ि जाइत अछि। ओहि व्यक्ति कें व्यवहार सेहो असामान्य भ’ जाइत अछि। बच्चा सभ त’ चिड़चिड़ा आ झगड़ालू बनि जाइत अछि। छोट बच्ची सभ त’ ततेक दब्बू बनि जाइत छैथि जे हुनकर भविष्य बिल्कुल अन्हार। मिला-जुला क’ बात इ भेल जे घरेलू हिंसा सँ सभ पर नकारात्मक प्रभाव पड़ैत अछि।
*घरेलू हिंसा सँ बचै के उपाय*
1. बेटा-बेटी में भेद: सभ सँ पहिले समाजक इ सोच बदल’ पड़त जे बेटा बेटी सँ श्रेष्ठ होइत अछि। बेटा सँ ही मोक्षक प्राप्ति भ’ सकैत अछि। बेटा ही उत्तराधिकारी होइत अछि, आदि। मतलब बेटा आ बेटी कें सम्पत्ति में पूरा बराबरी के अधिकार होबाक चाही।
2. दहेज बन्दी: समाज कें दहेजमुक्त निश्चिते रूप सँ होबाक चाही। अहि तरहक समाजक सोच बनक चाही जे दहेज पूर्णतया गलत अछि त’ अहि सँ सम्बंधित हिंसा रुकत।
3. पति-पत्नीक सम्बन्ध: पति-पत्नीक नीक सम्बन्ध भेनाइ जरूरी अछि। अहि के लेल एक दोसर प्रति विश्वास आ समर्पण भेनाइ आवश्यक अछि। पति के मानसिक रूपें इ बुझनाइ जरूरी अछि जे कनियाँ हुनकर कुनो तरहें कमतर नै छैथि।
4. बच्चा आ वृद्धक प्रति उत्तरदायी: सभ कें बच्चा आ वृद्ध कें प्रति पूर्णतया समर्पित भेनाइ जरूरी अछि जाहि सँ हुनकर संरक्षण आ जीवन यापन ठीक सँ होइन्ह।

अखिलेश “दाऊजी”, भोजपंडौल मधुबनी।