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“सभ्य समाजक लेल शर्मक विषय अछि घरेलू हिंसा”

— अरुण कुमार मिश्रा।       

घरेेलू हिंंसा एक टा मानसिक विकृति छैक आ एहि विकृतिक शिकार महिला आ पुरुख दुनु भ’ सकैत छैथ। बेसीतर घरेलू हिंसा पुरुख द्वारा काएल जाइत छैक जकर शिकार महिला आ बच्चा होइत छैक। घरेलू हिंसा केँ प्राय: समाजमे अनसुना अनदेखा क’ देल जाइत छैक तकर पाछु मुख्य कारण ई जे मध्यम आ निम्न मध्यम वर्गीय परिवारमे आईयो बेटीक विवाह अनिवार्य कर्तव्य बुझि माय बाप कुनु तरह बेटी ब्याह क’ अपन जिम्मेदारी सँ मुक्ति पाबि लैत छैथ। एहि संक्रीण सोचक कारणे बेटी के उच्च शिक्षा दियेवाक आ ओकरा स्वावलंबी बनेवाक दिस हुनक ध्यान नहि जाइत छनि। बेटी के पढ़ेवाक मुख्य उद्देश्यो ओकर विवाहक कठिनाई के कम करवा होइत अछि। विवाह होइतेँ सामाजिक रीति रिवाज आ विधि व्यवहारक भरिगर दबाव झेलैत नव विवाहिता के नव परिवेशमे नितांत असगर छोड़ि देल जाइत छैक। माय, बाप आ भाऊज इत्यादि सँ भेटल सीख अनुसार कुनु भी परिस्थितिमे ओकरा सासुरमे सामंजस्य बैसबऽ पड़ैत छैक जे घरेलू हिंसा केँ प्रश्रय दैत छैक।

घरेलू हिंसाक शिकार १८ सँ ४९ आयु वर्गक कुल महिलामे सँ ३२ प्रतिशत विवाहित महिला पति द्वारा प्रताड़ित होइत छैक आ ओहिमे अधिकतर हिंसक पुरुख शराब वा अन्य कुनु नशाक आदी रहैत छैथ। सर्वे कहैत अछि घरेलू हिंसा झेलनिहार ८०% महिला कम पढ़ल वा अशिक्षित छैथ जखन की घरेलू हिंसा की शिकार शिक्षितो महिलाक संख्या २०% अछि। महिलाक अतेक पैघ संख्या शारीरिक वा मानसिक रूप सँ हिंसाक शिकार अछि जे सभ्य समाजक लेल शर्मक विषय अछि। घरेलू हिंसाक खिलाफ महिलाके जागरूक करबाक आवश्यकता छैैक जाहि सँ महिला पीड़ित होवाक स्थितिमे ओकर खिलाफ निर्भीक भ’ ठाड़ होइथ आ अपन अधिकारक प्रयोग करैथ। स्कूली पाठ्यक्रममे अकर स्थान भेटवाक चाही। संगे एहि पर काज केनिहार सरकारी आ गैर सरकारी संस्था के मददक लेल आगु ऐवाक चाही।

घरेलू हिंसामे भ’ रहल निरंतर बढ़ोतरी चिंताक विषय छैक। ई समस्या मात्र आर्थिक रूप सँ कमजोर गरीब परिवार धरि सिमित नहि रही गेल छैक अपितु धनिकहो घरमे भ’ रहल छैक तेँ घरेलू हिंसाक सम्बन्ध अशिक्षा आओर आर्थिक स्थिति नीक वा खराब होवा सँ नहि छैक। घरेलू हिंसाक मुख्य कारणमे दहेज, नशा , अविश्वास आ बेमेल विवाह छैक।

घरेलू हिंसा मात्र शारीरिक हिंसा टा नहि बुझल जेवाक चाही, गलत नाम सँ पुकारब, गारि पढ़ब, धीया पूताक सोझा डांटब भी घरेलू हिंसाक श्रेणीमे अबैत छैक। घरेलू हिंसा रोकबामे परिजन भी मदद क’ सकैैत छैथ। सामाजिक दबाव सँ घरेलु हिंसा थमैत अछि तेँ लोक लाज सँ परवाह नहि करैत पहल करवाक चाही। बेसीतर केसमे पीड़ित महिला अपना संग भ’ रहल हिंसा के सहैत रहैत छैक आ ककरो कहैत नहि छैक, नैहर आ सासुरक परिवार के सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल नहि होय तेँ चूप रहैत अछि मुदा चुप रहने स्थिति आरो बिगड़ैत अछि तेँ शुरूआतमे मामला के गंभीरता बुझैत ओकरा छुपेवाक नहि चाही।

महिला पर शारीरिक आ मानसिक यातना घरेलू हिंसा कहल जाइत छैक, बहुत रास महिला अकर विरोध करैैत अछि आ बहुत रास महिला जीवनभर घरेलू हिंसा ई सोचि सहैत अछि जे हम विरोध करब त’ परिवार टुुट जाइत अछि एहि सोचमे सब सँ पैैघ कारण ओहि महिला के परिवार होइत छैक, जे नेेनपने सँ याह सिखबैैत छैथ जे ‘सासुरे तोहर असल घर छौक तेँ चाहे जे भ’ जाऊ ओतहि रहबाक छौक’ एहि मानसिकताक कारणे हिंसा केनिहारक हिम्मत बढ़ल रहैत छैक। कानूनी प्रावधान होयतहुँ एहि सँ पिड़िता के बचैत रहबाक मानसिकता घरेलू हिंसा के रोकबा मे बाधक भेल अछि।

………अरुण कुमार मिश्र
दिल्ली
दि० ०६/०१/२०२३

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