“उत्सवी महौल मे असभ्यताक छौंक सॅं छटपटाइत आधुनिक समाज ।”

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— उग्रनाथ झा।       

समाज के आदिकाल सं उत्सव के महत्वपूर्ण स्थान रहल अछि। जेकर पाछु धार्मिक, आध्यात्मिक आ विशिष्ट समाजिक उद्देश्य संचित रहल अछि। जाहि मे समाजक सभ वर्ग पारिवारिक अथवा समाजिक तौर पर यथोचित सहभागिता दैत रहल अछि। जे समाज के नव उमंग , उच्च उत्साह आ सद्भावनाक पाठ पढौबति रहल अछि।
उत्सव के ओंठ में मनोरंजनक व्यवस्था से हो देखल जाएत रहल अछि ,जेकर मुख्य उद्देश्य समाजके धार्मिक आध्यात्मिक आ वर्तमान परिदृश्य में सुगम आ सुसंस्कृत पथ प्रदर्शित करैय। जाहि सं समाज में नव पिढ़ी के अपन उत्सवक पाछुक इतिहास आ अपन कर्तव्यक बोध हो । मनोरंजन संक्षेप संकेत जे आंगतुक पिढ़ी के मानस पटल पर प्रश्न ठाढ़ करै जाहि संबंध में ओ अपन जिज्ञासा पारिवारिक बुढ़ बूजूर्ग लग करै ।फलस्वरूप अभिभावक ओकर प्रश्नक समाधान संग समाजिक , धार्मिक आ नैतिक कर्तव्यक बोध कराबथि ।परंतु वर्तमान समयमे मनुष्य तकनिकी यंत्रवत भऽ गेल अछि। भौतिकवादी सुख सुविधा प्राप्तिक उद्देश्य सं अतिव्यस्त भ गेल अछि। फलस्वरूप समाजिक , पारिवारिक मानवतावादी दायित्वक पूर्ति लेल सेहो पलखति नहि । बस ओकरो निर्वहन बुझू जे दूरस्थ नियंत्रणक(रिमोट कंट्रोल) माध्यमे करै छैक । चाहे बाल बच्चाक शिक्षा आ संस्कार हो वा बूढ़ माय बापक देखभाल सभ महिनवारी शुल्क पर आदमीक जोगार रहै छै । फलस्वरूप जेहन व्यक्ती के नियुक्ति भेल संस्कार ओहने होएत। किएक अगर शिक्षक पढ़ौनीक पाए लै छै त बस कहुना पाठ्यक्रम खत्म भय जाए ओतबे तक सिमित । ओकरा नैतिकता आ सामाजिकता के पाठ्य वा चारित्रिक निर्माण के कोन सरोकार ।जहां तक आधुनिक अर्थोपार्जनक प्राथमिकतावादी युग में पति पत्नीयों के बीचक प्रगाढ़ आत्मिय संबंध बहुत अल्प भ’ गेल छैक। दूनू के पलखति कहां जे एक जगह बैस निक बेजाए विमर्श करै ।भागम भागक एहि माहौल में मानसिक बोझिलता के दूर करबा के एक साधन रहल ओ छैक ” उत्सव”।
चाहे ओ धार्मिकोत्सव हो वा समाजिकोत्सव हो । ई एकटा एहन आयोजन जे लोक किछु पल के लेल अपना आप के हल्लुक महसुस करबाक लेल शामिल भ जाए छैक। लेकिन ओहो प्रतिकात्मक रूपे ।
उत्सव में मनोरंजनक उद्देश्य त बुझू जेना भसियाईए गेल हो ।आब समाजिक आ धार्मिक आयोजन त दिरलेके भेटत । जौ कियो भलमानस आयोजक सभ्य मंचन के व्यवस्था करता त कम सं एक दिन वा एकोआधटा गाना बजाना ,नाच एहन बजाइए देता जे हद पार हो । आखिर की मजबूरी ? एकर पाछु जौं देखब त दर्शक दिर्घा में एकटा एहन वर्ग रहै छथि जिनका लेल एहि तरहक व्यवस्था करनाए मजबूरी रहैत छन्हि आयोजक कें ?
प्रश्न छैक आखिर समाज में एहन दर्शक वर्ग अयलाह कतय सं , किएक हिनकर बहुलता भेल जाएत छन्हि।सोचबाक आवश्यकता एतहूं छैक।
आखिर किएक समाजक ई वर्ग समाजक ठोकल पिटल ढर्रा हटि भसिआएल जा रहल छथि। सोचबाक त एतहुं छैक।
अस्तु एकर जड़ि में जौ देखब त मुख्य रूप सं भेटत जे शिक्षा के विकृत स्तर जाहिमे नैतिक आ सामाजिक शिक्षा के लोप । भौतिकवादी भोग विलास के अंन्हरजाली में शिशु के समग्र विकास हेतु अभिभावक समयाभाव । पश्चिमी शिक्षाक नकलक कारण आनलाईन शिक्षा , मनोरंजनक साधन स्वरूप टीभी, मोबाईल ईत्यादी ।जेतय एक सं एक उत्कृष्ट आ जीवनोपयोगी ज्ञान उपलब्ध अछि त ओतय एक सं एक अभद्र ,कामुक आ विभत्स विषबेल । आब निर्भर करैत छैक जे ज्ञान के खोज में निकलल अबोध ककरा आत्मसात करै छैथ ।किएक त निक बेजाए के फर्क बुझौनिहार के पलखति कहां छन्हि। फलस्वरूप समाज में विकृत मानसिकता के पल पल वृद्धि भ रहल छैक।
परिणामत: हमरा अहांक पुरान पाबनि तिहारक लोप होईत जा रहल अछि। सिनेमाई पाबनि तिहार , परिधान , आहार व्यवहार आयातित भ पैर पसारैत जा रहल। नवतुरिया के जाहि अपन एतिहासिक मान्यता पर गौरव होएबाक चाहि ओहि पर ग्लानि बुझना जाए छन्हि।
हमरा सभ के उत्सव में नव पिढ़ी के इच्छानुरूप आयोजन अटपटा /अश्लिल लगैत अछि किएक त हम जनैत छि जे श्लिल कि छै ? लेकिन जेकरा श्लिल सं परिचय नै हो ओ एकर फर्क की बुझत।ओकरा त ओहे सहि आ सटीक बुझै छैक ।तै ओकर समर्थन करै छै । ” उदाहरण स्वरूप छह बरषक बेटा हमरा कोरा में बैसल छल गप्प सभ करैत रहय । अचानक हम पुछि देलीयै बेटा एकटा गीत सुनाबह – त हमरा सुनबैत ””’ अटना पटना पटना बा , देबरा ढोढ़ी चटना बा””
हम त सन्न रहि गेलौ । कहलियै ई गीत के सिखेलकौ त कहै अछि शादी वाला गाड़ी में डी जे पर बजै छलै ।हम कहलियै गंदा गीत छै नै गाबी । त माय सं पुछलकै मम्मी पापा कहै छथिन्ह गीत गंदा छै त फेर शादी में किए बजै छलै ।यानी किन्नहु गंदा मानै लेल तैयार नै । कहबाक तात्पर्य अबोध मन त ओहि गीत के श्लील मानैत छैक ।तै ओ ओकर इन्ज्वाय करै छै । बचपन सं जगह बनाओल सोच एक अवस्था के बादे हटैत छैक ताहि धरि समाज के अस्थिर बनाबैत रहैत छैक ।
तै हेतु हमरा लोकनि श्लिल जीवि के पहिल कर्तव्य जे अपन अपन परिवारक बाल बच्चा / सदस्य के श्लील बनेबाक कष्ट करी । व्यस्ततम समय में सं समय निकाली बाल बच्चा के निक बेजाए के फर्क कराबी। दुनिया स्वयं श्लील भ जाएंत ।अन्यथा पश्चिमी आंधी में बहल बयार भारतीय गरिमामय परंपरा के मटियामेट क दैत । काल्हि तक भारतीय खुद उघारे देह रहि एक लंगोटी में निबाह करै वाला के बहु बेटी के पैरक अंगुठा तक दूनिया नहि देख सकल से आई पश्चिमी शैक्षणिक विकृति पसारि पुरूष के तीन लेयरक कपड़ा में लपेट ओकर बहु बेटी के अर्धनग्न छवि रोड पर निहारै अछि।
आई हम सभ कोनो समाजिक उत्सव में मनोरंजनक अश्लीलता के विरोध करब , गीतक फुहरता के विरोध करब त की ओ बंद भ जेतय। नै किन्नहु नहि ? किएक त जाधरि ओकर श्रोता आ दर्शक जीवित छैक बंद नहि होएत। स्टेज कार्यक्रम बंद होएत टीवी , यू ट्युव नहि बंद होएत। दीपिका , मल्लिका , हाशमी वा अन्य काजलकार जीताह फुहरता परसैत रहताह त आवश्यकता छैक नव पिढ़ी के श्लील अश्लील के परिचय कराबैत रहि अपना परंपरा के अक्षुण्ण बनाबैत रहि ।
जय जगदम्ब ।