“उत्सव मनेबाक जोशमे असभ्यताकेॅं सीमा पार करैत आधुनिक समाज”

214

— अखिलेश कुमार मिश्रा।     

आनन्द उल्लास उत्साहक संग मनुष्य द्वारा सामुहिक अथवा व्यक्तिगत रूपें मनाओल जाय बाला काज उत्सव कहाइत अछि। मनुष्य द्वारा उत्सव मनेबाक क्रम आदि काल सँ चलैत आबि रहल अछि। इ कुनो नै कुनो प्रकारें हरेक मनुष्य द्वारा मनाओल जाइत अछि चाहे ओ कुनो धर्म के मानैत हो, हाँ उत्सव मनेबाक विधि बेसक अलग अलग हो।
ओना त’ हरेक विधि या तरीका समय के संग बदलैत जाइत अछि मुदा उत्सव मनेबाक तौर तरीका में बड्ड जल्दी बड्ड बेसी बदलाव देखल गेल अछि। अहि बदलाव के मुख्य कारण अछि भौतिक सुख साधन के बढ़ैत प्रचलन, पाश्चात्य सभ्यताक बढ़ैत प्रभाव आ शहर कें तरफ पलायन या शहरक आकर्षण। सभ कियो भौतिक सुख लै के लेल बेहाल बनल रहै छैथि जाहि कारणे नैतिकताक ह्रास सेहो भ’ रहल अछि। पाश्चात्य सभ्यता में बेसी खुलापन अछि जेकर नकल एतुका लोक सभ सेहो क’ रहल छैथि। ओतुका बोल चाल एवं पहनावा कें बेसी महत्व देल जा रहल अछि। अंग्रेजी बाजनिहार के समाज में बेसी पढ़ल मानल जाइत अछि। जहन अहाँ दोसर जगहक चालि-चलन अपनेबाक कोशिश कड़ब त’ नै घरक रहब आ नै घाटक। कमो-बेस एखन एतुका समाजक ऐह स्थिति बनल जा रहल अछि।
देखल जा रहल अछि जे अपन समाज में आब जतेक पुरनका उत्सव सभ छल से या त’ बेढंगा ढंग सँ मनाओल जा रहल अछि अथवा ओ लोपित भ’ रहल अछि। शहर में बेसी लोकक रहबाक चलते ग्रामीण परिवेश में सेहो बदलाव आबि गेल अछि। अभिव्यक्तिक आजादी के नाम पर फूहड़ता परोसल जा रहल अछि। युवा वर्ग पर अभिभावक कें ओतेक पकड़ नहिं रहि गेल अछि जेना एक पीढ़ी पहिले छल। आब अभिभावक स्वयं अपने युवा सन्तान सँ डरक स्थिति में रहैत छैथि। तकर चलते युवा वर्ग में मनमाना बढि गेल अछि।
युवा वर्ग त’ सभ दिन कमो बेस उच्छृंखल रहलाह अछि। मुदा अभिभावक के नियंत्रण के चलते सदा मर्यादा में ही रहलाह। मुदा आब’ स्थिति भिन्न भ’ रहल अछि।
इंटरनेट, टीवी, मोबाइल आदि के चलन के चलते दोसरक तीज त्योहार बेसी आकर्षित करैत छै। अप्पन समाज में धार्मिक स्वतंत्रता के चलते जेकरा जे मोन होइत छै से करैत अछि। रोक-टोक करै बाला के नितांत अभाव छै। विवाह, मुण्डन, उपनयन सनक संस्कार में देखबा ततेक बढि गेल अछि जे ओकर विकृत रूप देख’ में आबि रहल अछि। सभ विधि-विधान, पहनावा आदि सेहो बदलि चुकल अछि। होली, छैठि, दुर्गापुजा, जन्माष्टमी आदि में गामक नाटक अथवा अन्य गीत संगीत के स्थान पर फूहड़ डांस आ अश्लील गीत आबि चुकल अछि। जेखन अभिभावकक ड’र रहबे नै करत त’ एहेन असभ्यताक उदाहरण भेटबे करत।
पहिले के सामाजिक ताना-बाना एहेन रहै जे टोल पड़ोस कें पैघ लोक सँ छोट डर अथवा धाक होइत छल जे आब लगभग लुप्तप्राय अछि। पहिले कियो छोट अगर गड़बड़ करैत छल त’ ओकरा झींक दै के अधिकार कुनो पैघ के होइत छल चाहे ओ कियो होइथ। बच्चाक अभिभावक कें तरफ सँ हुनका कुनो मनाही नै छलैन्ह। मुदा आब स्थिति विपरीत अछि। अगर कियो पैघ छोट कें डाँट डपट करताह त’ पहिले त’ बच्चे मुँह लागल जबाब देतैन्ह आ बाद में अभिभावक लड़ाई करै लेल तैयार। पहिले गामक हरेक बेटी बहिन मानल जाइत छल मुदा आब स्थिति भिन्न।
तहन युवावर्ग कें जेखने मौका लागैत छैन्ह त’ अपना हिसाबे उत्सव मनाब’ लागैत छैथि जाहि में पूर्वक सभ पूजा-पाठ अथवा मान्यता गौण रहैत अछि जे नितान्त फूहड़, अश्लील आ असभ्यताक परिचायक होइत अछि। बुझु जे उत्सवक जोश में होश गायब जे कि असभ्य लागैत अछि।
आब स्थिति गड़बड़ भ’ रहल अछि अथवा भ’ चुकल अछि त’ एकरा ठीक कोना कैल जै ताहि पर चर्चा अवश्य होबाक चाही। एकर सभ सँ पैघ निदान अछि जे बच्चा कें नेनपन सँ ही नीक-बेजाय के ज्ञान देनाइ आवश्यक। ओकरा में तेहेन संस्कार भ’री जे ओ कुनो गलत हरकत नै करै आ एहेन करै बाला अपन संगी साथी के सेहो रोकय। ओकरा अपन पूर्वजक संस्कार, सभ रीति-रिवाज, खान-पान, भाषा, भेष तीज-त्योहार आ ओकर मान्यता आदि कें बारे नीक सँ शिक्षित करी ताकि ओ अपन संस्कृति-संस्कार कें श्रेष्ठ बुझि सभ्यताक दायरा में रहत।
धन्यवाद
जय मिथिला!
जय मैथिली!

✍️अखिलेश “दाऊजी”, भोजपंडौल मधुबनी।