— इला झा।
मिथिलाक इतिहास आ संस्कृति अति प्राचीन अछि। ई मात्र भूखंड नहि अपितु धर्म, दर्शन, कर्मकांड, आचार- विचार, पूजा – पाठ, कला, लोक गीत नृत्य , विशिष्ट भोजन लेल विश्व प्रसिद्ध अछि। करची सँ बनल बर्श आ प्राकृतिक रंग सँ रंगल मधुबनी चित्रकला जकरा लिखिया सेहो कहल जाइत छैक सम्पूर्ण विश्व मे अपन डंका बजओने अछि। लोक नृत्य झिझिया माँ भैरवीके लेल समर्पित, जट्ट – जट्टिन सामाजिक सोहार्दक परिचायक अछि। मिथिलाक दीनाभद्री, राजा सलहेस कथा मिथिला मे प्रख्यात अछि।आधुनिक दौरमे पाग, पान, सुपारी, जनेउ,
मखान, माछ बहुत प्रसिद्ध भेल अछि। पूरा भारतक ८० प्रतिशत मखान केवल मिथिला मे होइत अछि। चूड़ा – दही अहिठामक पवित्र भोजन अछि। एकर अलावा बगिया, बर, तिलकोर, तरुआ, अरिकंचन, ओल,माछ, खाजा, अनरसा, चुड़लाइ इत्यादि प्रमुख भोज्य पदार्थ अछि।
मिथिला मे योग्यताक बहुलता रहल छैक परन्तु ताहि अनुरूपे अहि क्षेत्र मे रोजगारक व्यवस्था नहि छैक फलतः बहुत भारी संख्या मे मैथिल समुदाय मिथिला सँ बाहर रोजगार लेल जाइत रहलाह अछि।तकनीकी विशेषज्ञ संसारक हरेक देश मे सक्षम रूप सँ नीक जीविकोपार्जन क’ रहल छथि।संगहि भारतक सब प्रमुख शहर मे जाक’ बसि गेल छथि। मैथिल स्वभाव सँ जिद्दी होइत छथि, कहियो हार नहि मान’ वाला आ कम बेसी मे गुजर – बसर कर’ वाला होइत छथि। रोजगार के लेल दू तीन पीढ़ी सँ बाहर रहैत छथि आ पर्व त्योहार मे अपन गाम अबैत रहैत छथि।बुजुर्ग सब अपन धरोहर के एखनहुँ खुश वा दुखी भ’ बचओने छथि।आब गाम जँका किछु नहि शहरीकरण भ’ रहल अछि।अहि बदलाव के बीच गाम मे रहनिहार अपन संस्कृतिक रक्षा लेल प्रतिबध्द छथि।
प्राचीन कालमे आर्यावर्त्तक अधिकांश राज पंडित अपन पांडित्यक बल पर जमीन व्यवस्था इत्यादि पाबि ओहि प्रदेश मे निवास कर’ लगलाह। जकर उदाहरण एखनहुँ रायपुर, जयपुर, झांसी( चिरगांव) इत्यादि जगह मे देखना जाइत अछि। तहिना काशी संस्कृत विश्वविद्यालय विद्द्याक केन्द्र अछि जाहि मे मैथिलक बहुलता अछि। पायः हरेक क्षेत्र मे प्रबुद्ध मैथिलक जमावड़ा देखाइ दैत अछि। मुगलक राज्य मे संस्कारी मैथिल अपन धर्मक रक्षा हेतु मिथिला सँ नहि बहरेलाह, जाहि सँ विपन्नता आर बढ़ि गेल। अँग्रेज़क समय मे पूर्वी क्षेत्रक ढ़ाका आ कलकत्ता शिक्षा आ रोजगारक केन्द्र बनल। अंग्रेजक समय मे मुम्बई देशक आर्थिक राजधानी रहबाक कारण रोजगारक पैघ केन्द्र रहल। मील आ कारखाना मे मैथिलके रोजगार भेटलैन।
बुद्धिमती महिला आरंभ सँ मिथिलाक संरक्षिका रहलथि।एतुका पर्व, त्योहार, संस्कार, पूजा-अर्चना आदि अद्भुत प्राकृतिक जीवन शैली सँ जुड़ल छैक। जाहि मे पोखरि, नदी, चअर, बसुआइर, गाछी अद्भुत रुप सँ अहिठामक जीवन शैलीके प्रभावित करैत रहल छैक। हिमालयक तराइ मे रहलाक कारण जल आ फल फूलक प्रचुरता अहि पावन भूमि केँ तपोभूमि बना देलक। प्रायः सब देवी- देवता, अन्न – जल, प्रकृतिक पूजा आ पशु-पक्षिक पूजा स्वाभाविक रूप सँ हजारों साल सँ होइत रहल अछि।अहि क्षेत्रक सुन्दरता, सौहार्द आ अतिशय सत्कार सँ आकर्षित भ’ कतेको प्रसिद्ध श्रृषि – मुनि आ विद्वानजन मिथिला मे निवास केलथि आ अहि पवित्र तपोभूमि केँ समृद्ध बनौलथि।
अहि सभ गौरवशाली इतिहास आ संस्कृतिके देखैत सम्पूर्ण मैथिल समुदाय के ई प्रेरणा भेटक चाही जे मिथिलाक गौरवमय आधार केँ बुझथि, अपन साहित्य, दर्शन, कला, संगीत, नृत्य, पूजा-पाठ, गीत-नाद, पर्व – त्यौहार, खान-पानक माध्यम सँ अहि संस्कृतिक प्रभाव सम्पूर्ण विश्व समुदाय तक पहुँचाबथि। मुदा ताहि सँ पहिने मिथिला निवासी हर मैथिल के अपन संस्कृतिक संरक्षण संवर्द्धनक प्रति सजग रहक चाही से तखने संभव छैक जखन सभ स्तर पर जानकारी, चर्चा, परामर्श – विमर्श होमय। सभ मैथिल अहि दिस प्रेरित खास क’ प्रवासी मैथिल केँ प्रयत्नतः अपन घरमे अपन मधुर भाषाक प्रयोग, पूजा-पाठ आ संस्कार सँ संबंधित पुस्तक राखथि आ संगहि खास उत्सव मे मिथिलाक पारंपरिक पोशाक मे सामुहिक रुप सँ अवश्य भाग लेथि जाहि सँ मैथिल आ मिथिलाक अलग पहचान बनै। अहि हेतु आधुनिक इंटर्नेट आ सोशल मीडिया केँ बहुत ससत्त माध्यम बनाओल जाना चाही।हाल मे बहुत सन रोचक पत्र-पत्रिका छपनाइ आरंभ भेल अछि जकर पठन- पाठन सँ अहि उद्देश्य मे मदद भेटत। अपन पारंपरिक व्यंजन अपन घरमे
बनाबी आ दोसरो के ओहि सँ अवश्य अवगत कराबी आ चिखाबी।
अंतमे पग-पग पोखरि माछ मखान
मधुर बोली मुस्की मुख पान
विद्या वैभव शांत प्रतीक
सरस नगर मिथिला थिक
जय मिथिला जय मैथिली