“आजुक एहि मशीन युग मे बच्चा मशीन बुद्धि लऽ कऽ उत्पन्न होइत छैथि।”

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–कीर्ति नारायण झा     

बच्चाक विकास मे अभिभावक केर भूमिका- “बाढे पूत पिता के धर्मे, खेती उपजय अपने कर्मे” “माय गुण धी, पिता गुण धोर, नहिं किछु तऽ थोड़वो थोड़” एहि प्रकारे अनेकानेक कहबी अपना सभक ओहिठाम कहल जाइत छैक। ई बात शत प्रतिशत सही छैक जे परिवार धिया पूता के शास्वत पाठशाला होइत छैक आ माय सभक पहिल आ प्रिय शिक्षिका होइत छथिन्ह, एहि ठाम हम प्रिय शब्द केर उपयोग एहि दुआरे कयल अछि कारण जे विद्यालय के शिक्षक शिक्षिका बेसी गोटे के प्रिय नहिं होइत छैथि।हमरा सभ सन आदमी तऽ मजबूरी आ भय के कारण विद्यालय जाइत छलहुँ आ ओहिठाम केर शिक्षक शिक्षिका के पढाई रूपी अत्याचार के बर्दास्त करैत छलहुँ मुदा माय द्वारा पढ़ाओल गेल पाठ के पढवा में एको रत्ती दिक्कत नहिं होइत छल। मायक डांट फटकार आ मारि एको रत्ती खराब नहिं लगैत छल कारण किछुए कालक बाद मायक स्नेह आ दुलार ओहि डाँट फटकार आ मारि के बिसरा दैत छल। माय बापक मुँह सभ सँ बेसी प्रिय लगैत छल कारण एहि दुनिया में आँखि खोलला पर सभ सँ पहिले अपन मायक ममतामयी मुँह देखवाक सौभाग्य भेटैत छैक सभ बच्चा के।. कोनो मनुखक बच्चा के जन्म लेलाक पश्चात् जँ जंगल मे जंगली जानवर सभक समक्ष पोसवाक लेल छोड़ि देल जाय ओ जानवर केर सभ गुण ग्रहण कऽ लैत अछि तहिना एकटा सुगा के कोनो महात्मा के कुटी में रखला सँ ओ वेद पाठ करय लगैत अछि। अपना सभक ओहिठाम कहल जाइत छैक जे बच्चा एकटा काँच करची के भांति होइत अछि ओकरा जाहि दिशा में घुमेबै ओ घुमि जाइत अछि। कहवाक तात्पर्य ई जे बच्चा के सर्वांगीण विकास में सभ सँ पैघ हाथ ओकर अभिभावक के होइत छैक। ओ सभ सँ बेसी अपन अभिभावक सँ सीखैत अछि। अभिभावक के आहार – ब्यवहार, बात – बिचार, घरक आध्यात्मिक वातावरण, बजबाक तौर तरीका, दोसर के प्रति सहानुभूति, सत्कर्म इत्यादि। दुर्भाग्यवश दिनानुदिन एहि सम्बन्धमे दूरी बढल जा रहल छैक जे नीक समाज के परिकल्पना में बहुत खराब भविष्य केर संकेत दऽ रहल अछि। अभिभावक अपन बच्चा के संग यथोचित ब्यवहार करवा में सफल नहिं भऽ रहल छैथि जखन कि अपना सभक ओहिठाम हमर बाबूजी सभ कहथिन जे “प्राप्ते च षोडशे वर्षे, पुत्रम मित्र वदाचरेत” अर्थात शोलह वर्ष केर अवस्था भेला पर पुत्र के मित्र जकाँ ब्यवहार करवाक चाही एकरे देहातक भाषा में अपन पेएर के चप्पल जखन बेटा के पेएर में आबि जाइ तऽ ओकरा संग मित्र जकाँ ब्यवहार करवाक चाही। अपना सभक मैथिल समाज मे पिता पुत्र में मित्रता के सम्बन्ध में कमी आबि रहल छैक। पिता स्वयं अपना के पिता होयवाक अभिमान में सर्वोपरि मानि अपन धिया पूता के संग नजदीकी नहिं बना पबैत छैथि आ आजुक तीब्र गति सँ दौड़ैत दुनिया में पाछू रहि जाइत छैथि आ धिया पूता पिता के स्नेह सँ वंचित भऽ अपनहिं सँ नीक बेजेए निर्णय लेवाक लेल बाध्य भऽ जाइत छैथि आ ओ अपरिपक्व निर्णय ओहि धिया पूता अथवा समाजक लेल अत्यंत विनाशकारी रूप धारण कऽ लैत अछि। अभिभावक आ धियापूता के सम्बन्ध में आयल दूरी सँ अत्यन्त भयंकर परिणाम सेहो देखल गेल अछि कारण दुनू पक्ष एक दोसर के प्रति दुर्भावना केर शिकार भऽ जाइत छैथि। पारिवारिक वातावरण में जहर केर संचार होमय लगैत छैक आ रोकवाक लेल लोक छटपटा कऽ रहि जाइत अछि तेँ हमरा सभके एहेन वातावरण बनला सँ पहिने पूर्णतया साकांच भऽ जेवाक चाही आ एहि के लेल अभिभावक के आगू आबय पड़तन्हि कारण आजुक प्रतियोगिता के युग में धिया पूता जन्म लेलाक उपरान्त मोट किताबक बस्ता लादि विद्यालय के कक्षा सँ आरम्भ करैत छैथि आ हुनका एहि कठिन परीक्षा के उत्तीर्ण करवाक लेल अपन अभिभावक केर पूर्ण स्नेह, सहयोग आ उचित मार्गदर्शन केर आवश्यकता होइत छैक ।आजुक एहि मशीन युग मे बच्चा मशीन बुद्धि लऽ कऽ उत्पन्न होइत छैथि आ ओकर सम्मान कएनाइ, ओकरा पल्लवित आ पुष्पित कयनाइ अभिभावक के सर्वोपरि कर्तव्य होयवाक चाही। धिया पूता के लेल अपन ब्यस्तता सँ समय निकालि ओकरा उत्साहित करवा में, ओकरा नीक सँ नीक परिणाम प्राप्त करवाक लेल उचित मार्गदर्शन केर मूल मंत्र के विषय में बैसि कऽ चर्चा करवाक चाही। धिया पूता के तर्क आ विचार के सम्मान करवाक चाही जाहि सँ बच्चा के अनुभव होइ जे हमर बिचार के सेहो सम्मान कयल गेल। सदैव नीक विषय पर सकारात्मक विचार पर डिबेट होयवाक चाही जाहि सँ धिया पूता आ अभिभावक के सम्बन्ध के मजबूत कयल जा सकैत अछि। धिया पूता लग कोनो बात बजला सँ पहिले ओहि बात के बजलाक प्रभाव के जानलाक उपरान्ते ओकर चर्चा करवाक चाही। घर परिवार केर कोनो निर्णय में ओकर बिचार के समुचित स्थान भेटवाक चाही आ घर मे सदैव आत्मीयता रहला सँ पारिवारिक बातावरण में समुचित सुधार भऽ सकैत अछि…..