— इला झा।
कला शब्दक व्युत्पत्ति’ कल’ धातु सँ मानल जाइत छैक, जकर अर्थ भेल प्रेरित केनाइ। गाम मे खेतीबाड़ी के बाद दोसर स्थान हस्तकलाक के देल जाइत अछि।” शिल्प कौशलक प्रक्रिया सँ युक्त सुन्दर, सुखद आ सृजन रूप”। कला मनुष्य के भगवान के तरफ सँ भेटल एहन वरदान अछि जे कोनो और प्राणी, पशु वा जीव के नहि भेटल अछि। हरेक मनुष्य अपन अन्दर छुपल प्रतिभा के निखारि एकटा नया मुकाम हासिल क’ सकैत अछि।भारत कलाक खजाना अछि। एत’ हरेक क्षेत्र, हरेक कस्बा, हरेक गाम, हरेक राज्यक कला जीवन के नवीन दिशा दैत सभक जीवन के उत्साह आ उमंग सँ भरैत अछि।
हस्तकला मे हाथक कौशल के सुन्दर क्रियात्मक रूप देल जाइत छैक। ललित कला मे वस्तुकला, मुर्तीकला चित्रकलाक अभिन्न योगदान मानल जाइत छैक। हरेक राज्यक कलाक पहचान ओकर हस्तकला होइत छैक
बिहारक हस्त कला मे मधुबनी चित्रकारी, सीकी सँ बनाओल मौनी पौती आदि, लाखक सुन्दर कारीगरी विभिन्न प्रकारक गृह उद्योग अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर गौरवशाली विरासतक अनुभुति करबैत अछि।ओहिना गुजरातक कलम कारी, ओड़िशाक पटचित्र चित्रकारी, आंध्रप्रदेशक निर्मल पेंटिंग भारतक मान सम्मान आ गौरवक अनुभव दैत अछि। आब
हस्तकला मे तकनीकी आधुनिकीकरणक विकसित समावेश भ’ रहल छैक।कम्प्यूटर सँ डिजाइन बना समृद्धि आ आमदनीक विशेष प्राथमिकता देल जाइत छैक। हस्तकलामे मुर्तीकला , चित्रकला, गहना, ग्लास पेंटिंग, मोमबत्ती, बैग, स्कार्फ़, क्रौसस्टिच, बुनाई, सिलाई, कढ़ाई, माँटि सँ बनल आकृति, भोजन सँ सम्बन्धित सामग्री, कार्ड, कैलेंडर, खिलौना, प्राकृतिक प्रसाधनक समान, टोकड़ी आ कैलीग्राफी इत्यादि अबैत छैक।
हस्तकला त’ सुन्दरताक अभिव्यक्ति आ समृद्धिक परिचारक अछि। अहि माध्यम सँ नवीन विचार आ मूल्यक सृजन होइत छैक। जीवनक गहराई सँ जुड़ल एकर विकास सँ समाजक विकास होइत छैक, यश, धन, ज्ञान आ शांतिक प्राप्ति होइत छैक।
आजुक तेजी सँ बदलैत औद्योगिकीकरण मे पारंपरिक हस्तकला छिरिया गेल अछि।नवीनीकरणके
तरफ झुकाव देखना जा रहल अछि। पुरातन हस्तकलाकेँ सहेजिक रखनाइ आजुक ज्वलंत समस्या अछि।
ताहि लेल कारीगर के गुण आ मेहनतक उचित सम्मान भेटनि। कयेको कारीगर धन वा उचित समानक अभाव मे अपन कला के छोड़ि दैत छथि।
शहर आ गाम मे वर्कशॉप होवाक चाही जाहिमे कारीगरके हुनर, डिजाइनक शिक्षा, सृजन आ समानक कोना विकास होय तकर प्रशिक्षण देल जाय। पारंपरिक हस्तकलाक नवीनीकरण होवाक चाही। आय के स्त्रोत पर विशेष ध्यान देबाक चाही। बहुतो कारीगर ओहि आमदनी सँ अपन जीवन यापन करैत छथि। गुमनाम गुणी गण के सेहो सामने आनबाक प्रयास होवाक चाही।
कारीगर आ उपभोक्ता के बीच संवाद हेबाक चाही। उपभोक्ताके ओहि वस्तुक सुन्दर जानकारी भेटतैन त’ ओ समान खरीदता आ आगु सेहो खरीद’ के इच्छा रखता।
हस्तकला गामक रोजगार थिक। महिला अपन खाली समयक उपयोग क’
सुन्दर हस्तकला सँ अप्पन जीवन के नया दिशा दैत आर्थिक रुप सँ प्रबल भ’ सकैत छथि। मिथिलाक गाम मे महिला लोकनि अपन हस्तकलाक कौशल मे प्राण दैत छथि।
लोककला मे रुचि होइन ई प्रयत्न हेबाक चाही।
हस्तकलाक विस्तार पूरा संसार मे होय ताहि लेल ओकर सही दाम, सुन्दरता, व्यवसाय आ उपभोक्ताक माँग आ आपूर्ति पर विशेष ध्यान देल जाय।
स्कूल मे विद्यार्थि सबके पढाई के अलावा चित्रकला, मुर्तीकला, कागज सँ बनाओल सामान, पाक कलाक प्रशिक्षण बचपन सँ भेटतैन त’ हुनका सभके झुकाव स्वतः हेतैन। ओना बहुतो संस्थानमे उचित प्रशिक्षण देल जाइत अछि। हरेक मनुष्य अप्पन अंदर छुपल कला केँ निखारि दुनिया के सामने आनै। अपन भारत कला के खजाना अछि।
कहल जाइत छैक जहि जातिक कला जतेक समृद्ध हेतै ओ जाति ओतबे गौरवशाली आ प्राचीन हेतैक, तैं कलाकेँ कोनो राष्ट्रक संस्कृतिक मापदंड कहल जाइत छैक। तैं हस्तकला केँ संरक्षण, संवर्धन, आ संपोषणक आवश्यकता छैक।
इला झा ११.११.२०२२
जय मिथिला जय मैथिली