“कला, प्रेम आ संस्कृतिसँ भरल पाबनि – सामा-चकेबा।”

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–अखिलेश कुमार मिश्र     

मिथिलाक क्षेत्र त’ अप्पन सांस्कृतिक धरोहर लेल विख्यात अछि। सालों भरि पाबनि-तिहार, गीत-नाद चलैत रहैत अछि। जतेक पाबनि होइत अछि से ओहि मौसम के अनुकूल होइत अछि। ताहि में कातिक मास त’ सभ सँ श्रेष्ठ मानल गेल अछि। कोजगरा कें प्रात सँ कतिकी पूर्णिमा तक कतेको पाबनि होइत अछि। जाहि में दियाबाती, भरदुतिया, छइठ, देवउठाउन एकादशी आ सामा-चकेवा।
ओना त’ सभ पाबनि अप्पन विशिष्टता लेल जानल जाइत अछि जे कि मिथिलाक कला आओर संस्कृति सँ जुड़ल अछि, मुदा सामा-चकेवा पाबनि कें त’ बाते अलग। इ पाबनि विशुद्ध रूपें कला, प्रेम आ मिथिलाक संस्कृति सँ भरल अछि। इ पाबनि भाइ-बहिनक अपार स्नेहक द्योतक अछि। ऐ पाबनि में बनै बाला माटिक सभ मुरुत, गाबय बाला सभ गीत नाद एतुका कला कें प्रदर्शित करैत अछि। अहि पाबनि के मनाब’ के तरीका आ मनाब’ के समय एतुका सांस्कृतिक विरासत कें दर्शाबैत अछि। मिला जुला क’ इ पाबनि अप्पन विलक्षणता लेल जानल जाइत अछि जे कि सिर्फ मिथिलांचल क्षेत्र में ही मनाओल जाइत अछि। अहि पाबनि में भाइ-बहिनक स्नेह, गलत करै बाला कें की हश्र होइत अछि, आदि कें विधिवत दर्शाओल जाइत अछि।
सामा-चकेवा पाबनि के लेल एक कथा प्रचलित अछि जे कि अहि तरहें अछि।:
साम्वती आ साम्ब दुनू भाइ बहिन रहैथि जे श्रीकृष्णक सन्तान रहैथि। साम्वतिक विवाह हुनकर प्रेमी चारुदत्त नामक ऋषिकुमार सँ भेल रहैन्ह। साम्वती ऋषि मुनि आ प्रकृति सँ अपार स्नेह करैत छलीह। ताहि कारणे ओ अधिकांशतः वन में जाइत छलीह। हुनकर खबासिन डिहुली कें इ बात पसिन्न नै आबै छल कियैक त’ ओकरा महल छोड़ि वन गेनाइ पसिन्न नै। तहन डिहुली अहि सँ छुटकारा पाबै लेल चारुदत्त कें अंट सन्ट कहि भड़काब’ लागलैन्ह जाहि में साम्वती पर गलत आचरणक बात सेहो कहलक। चारुदत्त बिना बुझने सुझने साम्वती पर क्रोधित भ’ हुनका बारे में हुनकर पिता श्रीकृष्ण लग शिकायत केलाह आ गलत आचरणक बात सेहो कहलाह। श्रीकृष्णक एक मन्त्री चुरू नामक, जे कि चारुदत्त सँ बड्ड ईर्ष्या राखैत छल, श्रीकृष्ण कें साम्वती के विरोध में भड़का देलक जे कि आगि में घी के काज केलक। श्रीकृष्ण ततेक साम्वती पर बड्ड क्रोधित भेलाह आ हुनका श्राप द’ देलैथि जे जाउ अहाँ चिड़ै बनि जाउ वन में विचरण केनाइ पसिन्न अछि त’ विचरण करैत रहू। साम्वती तखने श्यामा नामक चिड़ै बनि गेलैथि। चारुदत्त कें बाद में सभ बातक सच्चाई ज्ञात भेल त’ बड्ड दुखी भेलाह। ओ श्यामा सँ भेंट करै के युक्ति करै लागलाह जाहि में सफलता नै भेंटलैन्ह। अंत में ओ कठिन तप क’ क’ शिवजी कें प्रसन्न केलाह आ चिड़ै बनै कें वरदान माँगलाह। शिवजीके वरदान सँ ओहो चक्रवाक नाक चिड़ै बनि गेलाह आ श्यामाक खोज में जंगल झाड़े घुमय लागलाह। चूँकि दुनु दू चिड़ै तैं दुनु में मिलन सम्भव नै। चक्रवाक वियोगे में रहि गेलाह। जेखन इ सभ बात साम्वतिक भाइ साम्ब कें पता चललैन्ह त’ ओ बड्ड दुःखी भेलाह आ श्रीकृष्ण कें बड्ड निहोरा-पाती केलाह। तहन श्री8 प्रसन्न भ’ साम्ब कें साम्वती आ चारुदत्त कें मुक्ति के लेल युक्ति बतेलाह। साम्ब कें कहलखिन्ह जे एखन जतय श्यामा आ चक्रवाक होइथ आ यदि ओतय कें लोक सभ चुरू आ डिहुलीक बात कें उजागर करत त’ ओ दुनु चिड़ै के शरीर सँ मुक्त भ’ जेताह। साम्ब आब श्यामा आ चक्रवाक खोज में लागि गेलाह। ओ समय कातिक मासक इजोरिया पक्ष रहै आ श्यामा तथा चक्रवाक हुनका मिथिला क्षेत्र में भेंटलखिन्ह। तहन साम्ब एतुका बहिन सभ कें कहलखिन्ह जे अहाँ सभ डिहुली चुरू कें बात कें खूब प्रचार करू। भेल सैह। आ अहि तरहें मिथिलांचल क्षेत्र में ताहि दिन सँ श्यामा चक्रवाक जे कि अपभ्रंश में सामा-चकेवा भेल, मनेनाइ शुरू भेल।
सामा-चकेवा कोना मनाओल जाइत अछि:
कातिक महिनाक इजोरियाक षष्ठी अर्थात छठिक राति में गोसाउनिक गीतक संग चिक्कनि माटि सँ श्रीसामा बनाओल जाइत अछि। ततपश्चात सामाक गीत जे कि भाइ-बहिनक स्नेहक प्रतीक रूप में गाओल जाइत अछि। देवउठाउनी एकादशी क’ पिठार घोरि सभ माटिक मुरुत कें ढोरल जाइत अछि। माटिक मुरुत में सामा, चकेवा, झिझिर कुकुर, डिहुली, भंवरा, सातभइया, चुगला, वृंदावन, लड्डूबेचनी आदि बनैत अछि। सभ दिन राति में माय-बहिन रतुका भोजनक बाद चंगेरा में सभ मुरुत के सजा दीप जरा क’ गीत गाबैत अंगना सँ बाहर जाइत छैथि। बाहर चंगेरा के राखि चारु कात बैसि, बीच मे चुगला जे चुरू के प्रतीक अछि के गरियाबैत आगि लगबैत छैथि। चुगला के केश सन सँ बनाओल जाइत अछि जे उज्जर होइत अछि। वन के प्रतीक वृंदावन, जे माटि आ खर सँ बनल रहैत अछि, के सेहो जराओल जाइत अछि आ गीत गैल जाइत अछि। अहि बीच खास क चुगला के गरियाब’ बेर में विलक्षण हास-परिहास चलैत अछि। फेर चंगेरा ल’ गीत गाबैत सभ आँगन आबि जाइत छैथि। अहि गीत सभक बीच जे भाउज रहै छैथि ओ ननदि सभक परिहासक बेसी शिकार होइत छैथि। कियैक त’ ननदि भाउजक भाइ कें खूब गरिया दैत छथिन्ह मुदा भाउज बेचारी ननदिक भाइ के कोना गरियेती। राति में सामाक चंगेरा में दुइब आ धान, धानक शीश राखि देल जाइत अछि। कतिकी पूर्णिमा सँ पहिले सभ मुरुत कें रंग बिरंगक प्राकीर्तिक रंग सँ रांगल जाइत अछि। कतिकी पूर्णिमाक राति में भाइ सभ द्वारा ठेहुन लगा लगा क’ सभ मुरुत कें फोड़ि देल जाइत अछि आ बहिन सभ भाइ कें गमछा में नवका चूड़ा आ गुड़ दै छथिन्ह। सामा सभ लेल बनाओल माटिक पिटार के चुरा दही गुड़ सँ भरि क’ बेटीक विदाइ जेकाँ समदाओन गाबैत विदा कैल जाइत अछि। सभ टूटल मुरुत के चंगेरा में सजा दीप जरा माथ ल’ समदाओन गावैत अंगना सँ बाहर नवका जोतल खेत अथवा नदी सरोवर ल’ क’ जैल जाइत अछि। ओ दृश्य सच में बहुत भावुक होइत अछि। जोतल खेत में संठी कपड़ा सँ बनल चारि टा मशाल के जड़ा क’ गारि देल जाइत अछि आ ओकरे इजोत में पुनः सामा के विदाई संग चुगला के झड़का क’ गारि आ वृंदावन के जराओल जाइत अछि। एक टा फुटल सामाक मुरुत के चंगेरा में वापस राखल जाइत अछि आ अन्य सभ मुरुत कें भसा देल जाइत अछि आ पुनः अगिला साल सामा कें आब’ लेल विनती कैल जाइत अछि। अंत में एक टा फुटल मुरुत संग उदास मन सँ सभ आँगन वापस आबि जाइत छैथि।
देखल गेल अछि जे कातिक में हिमालय सँ बहुतायत चक्रवाक/चकेवा चिड़ै मिथिलाक सरोवर, चर में लागल पानि या नदी के किनार में आबि जाइत अछि। एखनो चकेवा चिड़ै राति क’ खूब विरह क्रन्दन करैत अछि जे कि उपरोक्त कथा सँ जुड़ल बुझाइत अछि।

अखिलेश “दाऊजी”, भोजपंडौल मधुबनी।