गोपाल मोहन मिश्र केर दू टा लघुकथा :: “एकटा भातृप्रेम एहनो” आ “बुढापा एक अभिशाप” !

  1. गोपाल मोहन मिश्र केर दू टा लघुकथा :: “एकटा भातृप्रेम एहनो” आ “बुढापा एक अभिशाप” !

    १) एकटा भातृप्रेम एहनो

    डॉक्टर साहब स्पष्ट कहि देलनि – “जल्दी सँ जल्दी प्लाज्मा डोनर के इंतजाम कs लियs, नहि तs किछु भs सकैत छै।”
    रोहन के किछु नहि सूझि रहल छल। माँ फफकि-फफकि कs कानि रहल छलीह।
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    सामने बेड पर छलाह बाबूजी, जिनकर हालत बेहद सीरियस छलनि। सभ जगह तs देखि लेने छल, सभसँ गुहार कs लेने छल, मुदा बी-पॉजिटिव प्लाज्मा के कोई इंतजाम नहि भs रहल छल।

    ओना तs बी-पॉजिटिव प्लाज्मा तs हुंनक घरे में छल। रोहन के बड़का कक्का जी अखने २ मास पहिने कोविड के हराकs लौटल छलाह। मुदा कक्का जी सँ ओ कहय, तs कोना कहय ?

    अखने १५ दिन पहिने, जखन कक्का जी बगलवाला प्लॉट में काज लगौने छलाह तs बाबूजी मात्र ६ इंच जमीन के विवाद में अप्पन पैघ भाई के जेल पठवा देलखिन। एना में कक्का जी शायदे प्लाज्मा डोनेट करताह ! खैर !! एक बेर फेर माँ के बाबूजी के लsग छोड़ि कs शहर में ओ चलल प्लाज्माक तलाश में।

    दुपहरिया बीत गेल, राति होबs अयलै, कोनों डोनर नहि भेटलै। थकल-हारल लौटि आयल आ माँ सँ चिपकि कs फूटि-फूटि कs कानs लागल, माँ कोनों डोनर नहि भेटल। ततबे में देखलक कि कक्का जी, बाबूजी के बेड के लsग में बैसल छैथ। किछु बाजि नहि पायल। कक्का जी स्वयं रोहन के लsग अयलाह, माथा पर हाथ फेरैत कहलैन, “तू नहि बतैबें तs हमरा पता नहि चलत I जे तोहर बाप छौ,ओ हमर छोट भाई अछि, प्लाज्मा दs देलियउ, पैसो के या फेर कोनों मददि के जरूरत हेतौ तs बेहिचक बतबिहें।

    “भाई रहत तs लड़ि-झगड़ि तs फेर लेब।”

    कक्का जी अश्रु पोछैत जा रहल छलाह आ सैलाब रोहन के आँखि में छल I किछु बाजि नहि पायल, सीधे कक्का जी के पैर सँ लिपटि गेल।

    २) बुढापा एक अभिशाप

    हमरा अपन गाँव के याद आबि गेल। हम जल्दी-जल्दी कार्यालय के काज समाप्त कs मोटर साईकिल सँ गाँव के तरफ चलि देलौं I
    एक वृद्व सड़क के किनार में बैसल-बैसल ऑटो वाला सभ के आवाज दs कs , रोकबाक प्रयास कs रहल छलाह । परन्तु ऑटो वाला सभ वृद्व हेबाक कारण सँ अपन ऑटो में नहि बैसा रहल छल। हम वृद्व के लsग जा कs पूछलौं-अहाँ के कहाँ जाई के अछि ? तखने हमरा नजर वृद्व के ऊपर गेल तs की देखलौं – ओ तs गाँव के स्कूल के एक समय हेडमास्टर रहल छलाह। हमरा बड्ड आश्चर्य भेल कि एहि रोड पर चलैवाला अधिकतर ऑटो वाला हिनके सँ पढ़ाई कैने अछि। हिनका ऑटो में बैसेनाई तs दूर , हिनका आदर तक नहि देलक । हम हेडमास्टर साहेब के अपन मोटर साईकिल पर बैसा कs गाँव लs गेलौं । हमरा समझ में किछु नहि आबि रहल छल। बस एक्के बात समझ में आबि रहल छल कि – बुढापा एक अभिशाप छै।