गीताज्ञान:
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मण:।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिध्येदकर्मण:॥३-८॥
त्वं नियतं कर्म कुरु हि अकर्मण: कर्म ज्याय: अकर्मण: ते शरीरयात्रा अपि च न प्रसिध्येत्!
अहाँ नियत कर्म करू कियैक तऽ अकर्म कर्म सँ बेसी नीक होइत छैक, अकर्म सँ तऽ अहाँक शरीरक यात्रा पर्यन्त संभव नहि अछि।
कर्मक सिद्धान्त बहुत गूढ छैक, लेकिन सहजता सँ एकरा बुझबाक बात गीताक अध्याय तीन मे भगवान् कृष्ण द्वारा अर्जुन केँ बताओल गेल अछि। ओना तऽ गीताक संपूर्ण ज्ञान हेतु सिलसिलेवार सब अध्यायक नित्य पाठ करबाक जरुरत अछि, मुदा कहल जाइछ जे कोनो पन्ना उनटाकय एकहु टा श्लोक पर मनन कयला सँ मनुष्यजीवन लेल सद्मार्गक दिग्दर्शन होइत छैक।