महाकाली केर दर्शन – वैकृतिकं रहस्यम्

ॐ श्री दुर्गायै नमः!
हे आस्थावान भक्तजन! पिछला किछु समय सँ भगवतीक विभिन्न स्वरूप पर चर्चा करैत आबि रहल छी। चर्चा सँ हुनकर दर्शन आ भक्तिभाव केर प्राप्ति होएछ, सिर्फ विश्वास निहित करैत अपन कर्तब्य ई बुझी जे हम मानव हुनक विशेष कृपापात्र बनि पृथ्वी पर आयल छी। आउ, आगू बढी – प्राधानिकं रहस्यम् सँ…..
 
अथ वैकृतिकं रहस्यम्
 
ऋषिरुवाच
 
ॐ त्रिगुणा तामसी देवी सात्त्विकी या त्रिधोदिता।
सा शर्वा चण्डिका दुर्गा भद्रा भगवतीर्यते॥१॥
योगनिद्रा हरेरुक्ता महाकाली तमोगुणा।
मधुकैटभनाशार्थं यां तुष्टावाम्बुजासनः॥२॥
दशवक्त्रा दशभुजा दशपादञ्जनप्रभा।
विशालया राजमाना त्रिंशल्लोचनमालया॥३॥
स्फुरद्दशनदंष्ट्रा सा भीमरूपापि भूमिप।
रूपसौभाग्यकान्तीनां सा प्रतिष्ठा महाश्रियः॥४॥
खड्गबाणगदाशूलचक्रशङ्खभुशुण्डिभृत्।
परिघं कार्मुकं शीर्षं निश्च्योतद्रुधिरं दधौ॥५॥
एषा सा वैष्णवी माया महाकाली दुरत्यया।
आराधिता वशीकुर्यात् पूजाकर्तुश्चराचरम्॥६॥
 
ऋषि कहलखिन – राजन्! पहिने जाहि सत्त्वप्रधाना त्रिगुणमयी महालक्ष्मीक तामसी आदि भेदसँ तीन स्वरूप बतायल गेल अछि, वैह शर्वा, चण्डिका, दुर्गा, भद्रा आर भगवती आदि अनेक नाम सँ कहल जाएत छथि। तमोगुणमयी महाकाली भगवान् विष्णुक योगनिद्रा कहल गेली अछि। मधु आर कैटभ केर नाश करबाक लेल ब्रह्माजी जिनक स्तुति केने छलाह, हुनकहि नाम महाकाली थिक। हुनकर दस मुख, दस हाथ, आर दस पैर छन्हि। ओ काजर जेकाँ कारी वर्णक छथि तथा तीस नेत्रक विशाल पंक्ति सँ सुशोभित होएत छथि। भूपाल! हुनकर दाँत आ दाढ चमकैत रहैत छन्हि। जखन कि हुनकर रूप भयंकर छन्हि, तथापि ओ रूप, सौभाग्य, कान्ति व महती सम्पदाक अधिष्ठान (प्राप्तिस्थान) थिकीह। ओ अपन हाथ मे खड्ग, बाण, गदा, शूल, चक्र, शङ्ख, भुशुण्डि, परिघ, धनुष तथा जाहि सँ रक्त चुबैत रहैत छैक तेहेन कटल मस्तक धारण करैत छथि। यैह महाकाली भगवान् विष्णुक दुस्तर माया थिकीह। आराधना कयलापर ई चराचर जगत् केँ अपन उपासक लोकनिक अधीन कय दैत छथि।
 
क्रमशः….
 
हरिः हरः!!