जननी – मैथिली कविताक संग कविक भावार्थ

Mother Studying Sleeping Infant Son's Hand

जननी

Mother Studying Sleeping Infant Son's Hand
Mother Studying Sleeping Infant Son’s Hand


दिवस पावस तीतल सुजनी,
फटले नूआ काटल रजनी ।

गहि भुजपाश नेह बरसाओल,
छूबि गात हृदय हरसाओल ।

नेन्ना नेह नयन भरि हेरल ,
आशीष हाथ माथ पर फेरल ।

अंकम गहि गहि मस्तक चूमल,
हियक अनुराग अंतर झूमल ।

रूसल संतति चोट्टहि परतारल,
निहुछि निहारि नजरि उतारल ।

चरण कमल मन सरसिज पात,
छेमहि अपराध पीड़ पुनि कात ।

मन मनोरथ पुनि पुनि दरशन ,
प्रति पद वन्दन सकल समर्पण ।
———————–
सादर : महेश झा ‘डखरामी’
“””””””””””””””””””””””””””
रचनाक भावार्थ :
“”””””””””””””
वर्षा ऋतुक समय , बरखा मे चारक चूला सॅ सुजनी भीजल अहि। फाटले नूआ मे माय राइत जगरना कय कटलीह मुदा संतानक सुख अक्षत रखलीह ।

फाटल नूआ = स्थिति विपन्नताक द्योतक ।
वर्षाक ऋतु = दुखक एक काल खण्ड
तीतल सुजनी= जेना क’टल पर नोन परि गेल हो ।
रजनी-राइत = अन्हार मे बाट दृश्यपथ सॅ जेना विलीन, ( ओझल)।

माय अपना शिशु कें दूहू हाथे हृदय लगा कय सिनेह सिक्त कयल आ स्पर्श पाबि अंग-अंग संग हृदय हर्षित भेल । तात्पर्य जे शेष सुखक बीया केँ अशेष बनायल अछि । संसार मृषा ( मिथ्या) थिक आ शरीर तृणमय । मायक निश्छल अक्षुण्य आ मृदुल प्रेमे अन्नत आनन्द । संतानक प्रति शास्वत सिनेह केँ दृगभरि देखल आ फेरि मङ्लाशीषक भाव सॅ माथ पर हाथ फेरल । नेन्ना जीवन आ जीवाक मूलाधार – आधार तत्व आ स्पन्दन । कोरा मे भरि संतानक माथ चूमल यथा सभ दुख हरि लेल आ हृदयक मोर आनंद सॅ नाचि ऊठल । माय अपना रुष्ट संतान केँ झट मना लैछ आ शंका विशेष पर निहुछव आ नजरि ऊतारब मंगल भावक चिन्ह । माँ संततिक लेल साक्षात् सगुण ब्रह्म आ पुण्यशीला, हुनिकर मन कमलक पात सम । नेन्नाक अपराध के क्षमा करैत बिसरि जाइछ आ पीड़ा हरि लैइछ । जेना कमल पात जल मे रहितो जलक प्रभाव सॅ दूर , ओ भीजैछ नहि । एहेन शांतरूपा आ गुणशीला मायक प्रति संतानक वांछा जे पग-पग पर हुनिकर पूजन वंदन करी आ सम्पूर्ण समर्पणक भाव सतत बनल रहय आ सदिखन दर्शन होइत रहय ।

“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी”
—————————-

ई रचना ” जननी ” माय आ संतानक मध्य
तादात्मक विरूदावली थिक ।

।। ईत्यलम् ।।

रचनाक केन्द्रिय भाव पर अप्पन मन्तव्य आ दू आखर फेर पलखति मे रखबाक चेष्टा करब ।
—————————-
– महेश झा ‘डखरामी’