जननी

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दिवस पावस तीतल सुजनी,
फटले नूआ काटल रजनी ।
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गहि भुजपाश नेह बरसाओल,
छूबि गात हृदय हरसाओल ।
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नेन्ना नेह नयन भरि हेरल ,
आशीष हाथ माथ पर फेरल ।
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अंकम गहि गहि मस्तक चूमल,
हियक अनुराग अंतर झूमल ।
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रूसल संतति चोट्टहि परतारल,
निहुछि निहारि नजरि उतारल ।
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चरण कमल मन सरसिज पात,
छेमहि अपराध पीड़ पुनि कात ।
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मन मनोरथ पुनि पुनि दरशन ,
प्रति पद वन्दन सकल समर्पण ।
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सादर : महेश झा ‘डखरामी’
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रचनाक भावार्थ :
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वर्षा ऋतुक समय , बरखा मे चारक चूला सॅ सुजनी भीजल अहि। फाटले नूआ मे माय राइत जगरना कय कटलीह मुदा संतानक सुख अक्षत रखलीह ।
फाटल नूआ = स्थिति विपन्नताक द्योतक ।
वर्षाक ऋतु = दुखक एक काल खण्ड
तीतल सुजनी= जेना क’टल पर नोन परि गेल हो ।
रजनी-राइत = अन्हार मे बाट दृश्यपथ सॅ जेना विलीन, ( ओझल)।
माय अपना शिशु कें दूहू हाथे हृदय लगा कय सिनेह सिक्त कयल आ स्पर्श पाबि अंग-अंग संग हृदय हर्षित भेल । तात्पर्य जे शेष सुखक बीया केँ अशेष बनायल अछि । संसार मृषा ( मिथ्या) थिक आ शरीर तृणमय । मायक निश्छल अक्षुण्य आ मृदुल प्रेमे अन्नत आनन्द । संतानक प्रति शास्वत सिनेह केँ दृगभरि देखल आ फेरि मङ्लाशीषक भाव सॅ माथ पर हाथ फेरल । नेन्ना जीवन आ जीवाक मूलाधार – आधार तत्व आ स्पन्दन । कोरा मे भरि संतानक माथ चूमल यथा सभ दुख हरि लेल आ हृदयक मोर आनंद सॅ नाचि ऊठल । माय अपना रुष्ट संतान केँ झट मना लैछ आ शंका विशेष पर निहुछव आ नजरि ऊतारब मंगल भावक चिन्ह । माँ संततिक लेल साक्षात् सगुण ब्रह्म आ पुण्यशीला, हुनिकर मन कमलक पात सम । नेन्नाक अपराध के क्षमा करैत बिसरि जाइछ आ पीड़ा हरि लैइछ । जेना कमल पात जल मे रहितो जलक प्रभाव सॅ दूर , ओ भीजैछ नहि । एहेन शांतरूपा आ गुणशीला मायक प्रति संतानक वांछा जे पग-पग पर हुनिकर पूजन वंदन करी आ सम्पूर्ण समर्पणक भाव सतत बनल रहय आ सदिखन दर्शन होइत रहय ।
“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी”
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ई रचना ” जननी ” माय आ संतानक मध्य
तादात्मक विरूदावली थिक ।
।। ईत्यलम् ।।
रचनाक केन्द्रिय भाव पर अप्पन मन्तव्य आ दू आखर फेर पलखति मे रखबाक चेष्टा करब ।
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– महेश झा ‘डखरामी’