नवरात्रक सातम दिनः आजुक प्रसाद “कर्म अनुरूप फल भोगबाक यथार्थ”

मिथिलाक एक प्रसिद्ध निर्गुण सँ किछु पाँति पर ध्यान दियौकः
जनम अकारथ क्षण-क्षण बीतय
बचपन गेल जबानी….
वृद्धापन लखि होश उड़इ यऽ
भेटत यम फरमाना
शिव हो! कतेक कहब दुखनामा
लेकिन घबराउ नहि! मृत्यु शाश्वत रहितो हमरा-अहाँक जीवन सेहो बड़ अक्खज होएत अछि। ई जाबत धरि रहत ताबत एकरा जियय पड़त। याद करू ओ गीत – हिन्दी सिनेमा जगत् केर सूपर-सूपर हिट फिल्म ‘मदर इंडिया’ केर ई गीत जे हमरे नहि बल्कि हरेक मानवक संवेदना केँ स्पर्श करैत अछिः
दुनिया में हम आये हैं तो जीना ही पड़ेगा
जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा
गिर-गिर के मुसीबत मे सम्भलते ही रहेंगे
जल जायें मगर आग पे चलते ही रहेंगे
गम जिसने दिये हैं वही गम दूर करेगा
जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा….
औरत है वो औरत जिसे दुनिया की शरम है
संसार में बस लाज ही नारी का धरम है
जिन्दा है जो इज्जत से वो इज्जत से मरेगा
जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा….
मालिक है तेरे साथ ना डर गम से तूँ ऐ दिल
मेहनत करे इन्सान तो क्या काम है मुश्किल
जैसा जो करेगा यहाँ वैसा ही भरेगा
जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा…
दुनिया में हम आये हैं तो……
जी हाँ! ‘जैसा जो करेगा – यहाँ वैसा ही भरेगा’ – यैह सब किछु थिक हमरा सब लेल बुझय वास्ते। महाकवि तुलसीदासजी सेहो रामचरितमानस मे गूढ रहस्यक यैह सूत्र हमरा सब लेल देने छथिः
कर्म प्रधान विस्व रचि राखा
जो जस करहिं सो तस फल चाखा
श्रीमद्देवीभागवत केर एक पाठ मे ब्रह्माजी अपन व्यथित पुत्र नारदजीक किछु दुविधाक निधान करैत बड़ पैघ रहस्योद्घाटन कएने छथि – ओ कहने छथि जे माया केर विधान बहुत असीम छैक। स्वयं ब्रह्मा या विष्णु या महेश सेहो एहि सँ बचल नहि छथि। गुणक संयोग सँ मायाक विभिन्न रूप प्रकट होएत छैक। सत्वक मात्रा बढलापर सात्विक रूप प्रकट होएत छैक। राजसिकता आ तामसिकताक वृद्धि पर केकरो गुण-धर्म मे प्रभाव देखाइते टा छैक। पराम्बा जगदम्बा सम्पूर्ण माया केर स्वामिनी थिकीह। सभक आराध्या वैह छथि। कर्मक फल केँ भोगनाय तय बात छैक। अहाँ जेहेन करब, तेहेन भरब। नीक के नीक, बेजा के बेजा!
प्रवीण-विचार मे सेहो यैह सूत्र छैकः हरेक मनुष्यक प्रकृति निर्धारक गुणक तीन अवयव, सत्व, राजस आ तामस। तिनूक मात्रा जेना-जेना बढत-घटत, कर्मगति ताहि अनुरूपें प्रभावित होएत रहत। एखन दुर्गा पूजाक समय छैक, खूब पूजा-पाठ करब, निश्चिते एकर सुखद फल अहीं केँ भेटत। पूजा-पाठ खत्म, फेर लागि गेलहुँ छलपूर्ण गतिविधि मे। आब करबैक छल आ बुझबैक जे भेटत सात्विक फल से संभव नहि अछि। छल-कपट केर दुष्परिणाम हमरे-अहाँ कर्ता केँ भोगय पड़त। बेसी राजसिकता देखेबैक, पुनः एकर फल ई होयत जे दरिद्रताक समय सेहो देखहे टा पड़त। एहि तरहें जीवन सन्तुलित होएत छैक। शास्त्र-पुराण केर मत त हमरा सब लेल एकटा बाट देखबैत अछि। सावधान करैत अछि। पूजा-पाठक समय खूब आबय आर हम सब सदिखन सत्कार्य मे लागल रही। खूब दान-दक्षिणा दी। पुण्य करी। अन्त मे गीताक ओहि पाँति केँ मोन राखी जे भगवान् बारहम अध्याय मे अर्जुनक जिज्ञासा शान्ति करैत कहलखिन अछिः
संनियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः॥
ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः॥१२-४॥
अपन सम्पूर्ण ज्ञानेन्द्री केँ संयमित कय, सब स्थिति-परिस्थिति मे एक रंग बनि, सम्पूर्ण लोकक कल्याण मे रत (लागल) रहब त निश्चित ‘हुनकहि’ यानि परमपिता परमेश्वर केँ प्राप्त करब।
विदित हो जे अर्जुन भगवान् कृष्णक विराट रूप देख लेलाक बादो प्रश्न सँ भरल छलाह आर तत्क्षण हुनका द्वारा पूर्ण समर्पित शिष्य भाव सँ जगत् गुरु कृष्ण संग ई प्रश्न पूछल गेल जे हे प्रभु, आब ई कहू जे भक्त लेल किनकर आराधना सुलभ अछि, अव्यक्त ब्रह्म आ कि स्वयं अहाँ सन अवतारी देव – सब तरहें सम्पन्न, सब किछु केँ अपनहि मे समेटने – स्वरूपवान् भगवान्। तखन भगवान् कृष्ण पहिने स्वरूप सहित स्वयं अपन नाम कहैत अव्यक्त अक्षर ब्रह्म केर नाम लेलखिन अछि। आर फेर हम सब केहेन बनी तेकर एक पंक्ति मे उपदेश केलखिन अछि। हे पाठक! एहि सब बात पर समग्र विचार केर विकास करब, यैह अपेक्षा।
ॐ तत्सत्! दुर्गा पूजाक पावन समय सभक लेल खूब शुभ हो!! आब गाम मे रहब त किछु दिन एना नहि लिखि सकब…. पुनः दर्शनाय!
हरिः हरः!!