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नवरात्रक प्रसादः हनुमान चालीसाक महत्व आ आस्थावान लेल उपयोगिता पर प्रकाश

नवरात्रक दोसर दिनः आजुक विशेष प्रसाद
 
श्रीहनूमते नमः!!
 
जानकी-राघव केर अत्यन्त खास भक्त आ आशीर्वाद सँ सम्पन्न अष्ट-चिरंजीव मे सँ एक हनुमानजी केँ हम प्रणाम करैत छी। श्रेष्ठ गुरुवर पंडित जीवनन्दन झा केँ स्मृति मे अनैत हनुमानजीक अद्भुत रूप जाहि मे स्वयं महादेव केर अंश समाहित अछि, संग मे पार्वती सेहो छथिन – ताहि प्रकरण केँ मोन पाड़ैत पुनः हनुमानजीक विशेष कृपा लेल हुनका बेर-बेर प्रणाम करैत छी।
 
आइ नवरात्रक दोसर दिन – मनन कय रहल छी तुलसीदासकृत् हनुमान चालीसा केर। गुरुवर कहैत छथि जे रामायण (रामचरितमानस) हो या हनुमान चालीसा – कविश्रेष्ठ तुलसीदास केर रचना अमृततूल्य शब्दरूपी फूल सब केँ गूँथिकय माला समान अछि, एक-एक पद सिद्ध मंत्र समान अछि। हरेक रोग केर निदान – कष्टक निवारण – समस्याक समाधान एहि सिद्ध मंत्र सभक साधना मे भेटैत अछि। मंत्रोच्चारण सँ वाणी शुद्ध होएछ, वातावरण पवित्र होएछ, हानिकारक कीटाणु आ जीवाणु सभक नाश होएछ – हवा-बिहारि पर्यन्त शान्त होएछ – उमड़ल मेघ पर्यन्त अन्यत्र बहि जाएछ। चमत्कार अनेक छैक – बस आस्था आ विश्वास निहित कय साधक इष्ट लोकनिक साधना मे लागैथ। काल्हि हनुमान चालीसा सब ठाम पोस्ट कएने रही। संगहि काल्हि मैयाजीक स्नेह केँ आजीवन दर्शन करैत आबि रहल भजन सेहो परसने रही – हे सभक जगज्जननी माँ चरणन मे प्रणाम; आइ हनुमान चालीसाक किछु सिद्ध मंत्रक चर्चा करी, एक-एक शब्द केँ पूर्ण तन्मयता सँ मनन करी।
 
“श्रीगुरुक चरणक धूलि केँ मन मे राखि रघुबर केर जस वर्णन करैत छी जे चारि फल – अर्थ, धर्म, काम आ मोक्ष प्रदान करयवला थिक। बुद्धिहीन छी तैयो पवन-कुमार अर्थात् पवन केर पुत्र हनुमानजीक ध्यान करैत छी – बल, बुद्धि, विद्या हमरा दियऽ हे प्रभु जाहि सँ सब कलेस आ विकार केर हरण हो।” – यैह दोहा यानि ‘दो है – सीता आ राम’ संग शुरु भेल अछि श्रीहनुमानचालीसा। आर तेकर बाद एक-एक पाँति सँ हनुमानजीक विशेष वर्णन करैत हुनकर आशीर्वाद प्राप्तिक प्रार्थना अछि।
 
हनुमानजी ज्ञान-गुण केर सागर छी। अहाँक जय हो। तिनू लोक मे अहाँ सुपरिचित छी। अहाँक जय हो। रामजी केर दूत, अतुलित बल सँ पूर्ण, अंजनिक पुत्र पवनसुत नाम थिक। महाबीर, बिक्रम, बजरंगी छी। कुमति केँ दूर कएनिहार आ सुमतिक संगी छी। एहि तरहें अनेकानेक वर्णन करैत तुलसीदासजी हनुमान चालीसा समान अमृत साधन हमरा लोकनि आस्थावान लेल उपलब्ध करेने छथि। ध्यान दियौकः
 
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रच्छक काहू को डर ना॥
 
अपन आस्था केँ कतेक बलिस्ठ प्रस्तुति अछि एहि पाँति मे – हनुमानजीक शरण प्राप्ति सँ सब सुख केर प्राप्ति अछि। ओ स्वयं रक्षक छथि त फेर डर कोन बात के!
 
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥
 
भूत-पिशाच – अदृश्य नकारात्मक शक्ति जे हमरा सभक अपकार करैत अछि ओ “महाबीर” नाम सुनैत अछि त ओतय सँ परा जाएत अछि।
 
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
 
रोग आ पीड़ा सभक नाश भऽ जाएत अछि यदि हम सब निरंतर हनुमानजीक नाम जप करैत छी।
 
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
 
कोनो बाधा या संकट मे फँसि गेलहुँ आ मन, कर्म तथा वचन मे हनुमानजीक ध्यान आबि जाय त हनुमानजी निश्चित रूप सँ ओहि बाधा आ संकट सँ पार लगा देता।
 
और मनोरथ जो कोइ लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥
 
जेकरा जे मनोरथ मोन मे आओत, ओ सब किछु जीवन मे फल रूप मे प्राप्त होयत।
 
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस वर दीन जानकी माता॥
 
जानकीजी केर वरदान सँ हनुमानजी अष्ट सिद्ध – आठो सिद्धि आ नौ निधि – नबो निधि केर दाता छथि।
 
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥
 
अहाँक भजन सँ रामजी भेटैत छथि। जन्मो-जन्मक दुःखक बिसराएत अछि।
 
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
 
संकट कैट जाएछ, पीड़ा मेटा जाएछ – जँ बलवीर हनुमानजी केँ सुमिरिये टा लैत छी त।
 
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरु देव की नाईं॥
 
ई महामंत्र थिकैक। एकर जप कोनो विपत्तिक घड़ी मे करब त तत्क्षण लाभ भेटत।
 
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥
 
जे सौ बेर हनुमान चालीसाक पाठ कय लेब, ओ जेलक यातना सँ पर्यन्त मुक्ति पाबि सकैत छी।
 
जो यह पढै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
 
जे कियो हनुमान चालीसा पढब, हुनका सिद्धि भेटबे टा करत। ई गौरीश यानि गौरीवर महादेवक वचन थिक।
 
आर, अन्त मे हम यैह कहब जे ईशक आराधना कखनहु रिक्त नहि जाएत छैक। जखन-जखन अहाँ अपन मन आ शरीर-शरीरी केँ नियमपूर्वक भगवान्-भगवती मे लगबैत छी तखन-तखन अहाँ शुद्धता ग्रहण करैत छी। जहिना हारल-थाकल लोक शीतल जल सँ किंवा जाड़क मास गुनगुना-गरम पानि सँ स्नान केला उत्तर जतेक ताजापन पबैत अछि, ठीक तहिना ईश्वर साधना, चाहे अहाँ कोनो देवता या अल्लाह या जीसस या कोनो शक्ति मे अपन आस्था निहित कय करैत छी त अहाँ निश्चित रूप सँ लाभान्वित हेब्बे टा करैत छी। एतेक तक कि नास्तिक मनुष्य कोनो अदृश्य शक्ति आ हुनक सत्ता मे विश्वास भले नहि करैछ, मुदा मानव आ मानवता केँ ओहो सब ओतबे महत्ता बुझि अपन मन केँ पवित्र रखैत अछि त ओकरो ओतबे कृपा भेटैत छैक।
 
वर्तमान नवरात्रक विशेष समय मे साधनाक क्रम आरो निखैर जाएत छैक। गाम-गाम आ ठाम-ठाम पर भगवती दुर्गाक विभिन्न रूप केर विशेष पूजा-अर्चना कएल जा रहल छन्हि। हम सब सत्संग मे स्वतः लागि जाएत छी। घर-परिवारक लोक एक ठाम अबैत अछि। समाजक विभिन्न वर्गक लोक मे सौहार्द्र, प्रेम आ मानवीय मूल्य केर रक्षा प्रति जिम्मेवारी बढि जाएत छैक। पाबनिक महत्व यैह सब सर्वोपरि होएत छैक। कुमारि कन्या केँ तस्मै, खीर, पूआ, मिठाई आदि पान कराओल जाएछ – यानि कुमारि कन्या केँ साक्षात् देवी मानिकय हुनके प्रसाद चढा रहल छी ई बोध होएत अछि। हुनका सब केँ नव वस्त्र सेहो देल जाएत छन्हि। एहि समय जँ हम-अहाँ सक्षम छी त गरीब, असहाय आ दीन वर्गक धिया-पुता या वयस्क सब केँ सेहो नव वस्त्र जरुर दान करी। थोड़-बहुत पैसा मेला देखय वास्ते ओकरो सब केँ जरुर दी। एहि तरहें अहाँक धन सार्थक काज मे खर्च होयत। मात्र अपन फूरफैंस्सी मे आ मलफाई उड़ाबय मे गड्डीक-गड्डी फूकि देला सऽ सबटा ब्यर्थे भेल बुझू। अतः विजयादशमी सभक लेल हर्ष-उल्लासक पर्व बनय ई हमरो-अहाँ केँ ध्यान रखबाक जरुरत अछि।
 
हरिः हरः!!

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