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गूटबाजीक गूढ रहस्य – मिथिलाक लोक मे यैह सब सँ पैघ दुर्गुणः मीमांसा

विचार

– प्रवीण नारायण चौधरी

अपना सब मे गूटबाजी कियैक होएत अछि एतेक – एहि सवाल पर जँ मंथन केने होयब त अवस्स निचाँ उद्धृत किछेक कारण सोझाँ आयल होयत। किछेक स्थिति-परिस्थितिक संग हम गोटेक दृष्टान्त उल्लेख करय चाहब। पढियौ, विचारियौ आ गमियौ – तखन कारण सब भेटत।
 
१. संस्था मृतप्राय अवस्था मे पहुँचि गेल, कारण जतबे जोश सँ सक्रियताक पहल होएछ ततबे वेग सँ नेतृत्ववर्ग मे मतभेद होएत अछि। पहिने आपस मे कहा-सुनी भेल, पुनः सब छहोंछित। फेर कियो बहादुरीक संग नेतृत्वक जिम्मा हाथ मे लैछ। फेर किछु दिन सफलताक अम्बार लगैछ। फेर किछु प्रतिद्वंद्वी सेहो समानान्तर पैदा लैछ। आर फेर शुरु होएछ ढूइसबाजी। आर फेरो सब कियो छहोंछित। लगभग ९९% सामूहिक संस्था मे यैह गुण आ प्रकृति भेटैत अछि मिथिला आ मैथिलीक नाम पर। गूटबाजी चरम पर अपन तान्डव करैत रहैछ। कतेको लोक एकरा ‘मैथिल केर अभिशापित’ होयबाक बात सेहो कहैत छथि। परञ्च विस्मित करयवला बात ईहो छैक जे काज कहियो रुकैत नहि छैक। एक सँ बढिकय एक संस्था आ प्रयास (डेग) सब बढेनिहार जानकी दूत सब स्वस्फूर्त सोझाँ अबैत रहैत छैक। भले कने दिन मे ओकरो हाल वैह हेतैक जेना आर सभक भेलैक। ओहो हारबे करत। मुदा जीत शुरुआते मे तय कएनिहार नेतृत्वदाताक मिथिला मे कमी नहि ई सकारात्मक बात थिक। यैह मिथिलाक पहिचान केँ सनातन जीवन्त राखयवला अवयव सेहो थिक।
 
२. गूटबाजीक मुख्य कारण छैक ‘ओदौद’। विद्या धन केर सम्बल त छहिये, संस्कारक सम्बल सेहो अपन मिथिला मे अदौकाल सँ चलैत आबि रहल अछि – ई कहय मे हमरा कनिको असोकर्ज नहि बुझाएछ। संस्कारक जखन हम बात करब त सिर्फ ‘बड़का जाति’ कहेनिहारे टा मे नहि, अपन मिथिलाक ‘छोटका जाति’, ‘अछोभ’, ‘रार’ – आदि कहेनिहार निम्नकोटिक लोकवर्ग मे सेहो संस्कार असीमित छैक। ई एतुका माटि आ पानि केर गुण मानल जाएछ। साक्षात् जगज्जननी जाहि धराक बेटी बनिकय अवतार लेलीह ओतय ई सद्गुण भेटनाय केँ अतिश्योक्ति नहि मानल जा सकैछ। तखन ई बड़का कहेनिहार सँ लैत छोटका आ कुलीन कहेनिहार सँ हेहर प्रजातिक लोक मे ‘मस्तिष्क – बौद्धिकता’ अपरम्पार छैक से सब मानैत छी। आर यैह आधिक्य जँ उचित आ विवेकक संग प्रयोग होएत छैक त जीत भेटैत अछि, आर जखन अति-होशियारीक संग एहि माथ-बुद्धि आदिक प्रयोग भेल त फेर शुरु भऽ जाएछ ‘ओदौदक झंझटि’। ओ ओकरा उठा त ओ दोसर के एना पटक, हम एना करबय ओ तेना करत फेर एना मारबय ओ तेना मारत फेर ई.. फेर ओ…. एहि फेर-फेर केर फेरा मे हमरा लोकनि चरम गूटबाजीक शिकार भेल रहैत छी। खुलिकय वार्ता करब आ समस्याक समाधान मे अपन अहं केँ किनार राखब – ई सामर्थ्य हमरा सभक उग्र प्रकृति आ घातक चुप्पी सँ घूप्पी धँसेबाक मानसिकताक कारण नहि विकसित भऽ पबैत अछि। सब कएल-धएल पानि मे भले चलि जाउक, मुदा अपन अहं सँ हम समझौता कोना करब। यैह थिक हमरा लोकनिक भूगोल सँ लोप होयबाक मुख्य कारण।
 
३. नक्कल मारय मे मास्टर छी हमरा लोकनि – सेहो अपन निजताक मानवर्धनवला नक्कल नहि…. परदेशिया शैलीक नक्कल मे अपन जीत देखबाक प्रकृति हमरा सब मे बहुत जल्दी स्थान लैत अछि, विकास करैत अछि। जेना, हम नेपाल मे छी आर एतुका पहाड़ी समाज संग दिन-राति रहैत छी त हम ओकरा सभक देखौंस अपन संस्कृति मे करबाक लेल आतूर रहब। एना लागत जेना ओ सब हमरा सँ बहुत बेसी विकसित आ नीक अछि। तैँ हम सब ओकर नक्कल मे लागि जाय – यैह हमर समस्याक समाधान होयत। मुदा ई बड पैघ भ्रम थिक। ई मृग-मरीचिका थिक। एहि मे आभासी पानि मात्र भेटैछ जाहि सँ प्यासक तिर्खा कहियो नहि मेटा सकैछ। याद होयत बहुतो केँ – पहला-दूसरा कक्षाक पोथी (बिहार टेक्स्ट बुक) मे पढने होयब – कौआ जे मयूरक पाँखि लगाकय मयूर सब संग मेघ लगला पर नाच करय गेल आर ओकर नाचक कारण मयूर सभक नाच सेहो बदनामी पाबय लागल जेकरा बाद मे मयूरक मुखिया द्वारा मारिकय भगायल गेलैक आर फेर मयूरहि सभक प्राकृतिक गुण सँ भरल नाच भेलैक जे मनोरम भेलैक। हम सब अपन संस्कृति केँ अपनहि मूल्यवान् परम्परा अनुरूप जियायब त यथार्थ उर्जा भेटत। आध्यात्मिक बल भेटत। मुदा से करय सँ चूकैत छी आर दोसराक नक्कल केर कारण अन्ततोगत्वा असफल बनिकय फेर मुंह लटका एक-दोसरा केँ दोष मढैत रहैत छी। श्रीकृष्ण स्वधर्म केर पालन मे मृत्यु केँ प्राप्त करब श्रेष्ठ मानलनि अछि, परधर्मक पालन मे मृत्यु सेहो भयावह कहलनि अछि। सब ज्ञान रहितो हमरा लोकनि अपन वर्चस्व सिद्ध करबाक क्रम मे नक्कल मारिकय फेर सँ एक-दोसरा पर आंगूर ठाढ करैत अपने मे छहोंछीत होएत छी। एतय बड पैघ सावधानीक आवश्यकता अछि आर अपन सम्मानित पुरखा सबहक सिखाओल मार्ग पर चलबाक आवश्यकता अछि।
 
४. बोली बड जल्दी छूबैत अछि अपना सब केँ – प्रतिक्रिया भले द्रूत नहि निकलय विवेकशीलताक कारण मुदा एक अविवेकी दानव हमरा सभक भीतर एहेन अछि जे द्रौपदीक दियर दुर्योधन केर ओहि मायावी जलकूप मे खसलापर सहज हँसीक संग ‘आन्हर बापक आन्हर बच्चा’ कहि देब कतेक बड़का महाभारत केर कारण बनि गेल…. मुदा अपना सब मे त मजाक मे एतेक गारा-गरौवलि करबाक हास्य परम्परा रहितो बड़ा सहज भाषा मे कहल गेल कनी टा ‘टेढ बोली’ केर तीर सीध अलघट्ट कय दैत अछि। उलैट जाएत छी अपना सब। बाहर सँ भले देरी मे उल्टब, केकरो बात केँ हँसिये-हँसी पचा देब… मुदा बेर एला पर अलघट्ट-वर्ग आ कि अलघट्ट-घन धरि ठेकान लगेबाक हिसाबे प्रतिद्वंद्वी पर वार करबाक मौकाक खोज मे तकध्यान लगौने रहैत छी। वसिष्ठ सँ विश्वामित्र केँ प्रतिद्वंद्विता ‘ब्रह्मर्षि’ पद लेल भेल छलन्हि। विश्वामित्र केँ राजपूत वंशक राजा-पुत्र होयबाक कारण वसिष्ठ आतिथ्य दैत एहेन स्वागत कएलखिन जे ओ चकित भेलाह आ कारण बुझला पर कोपिला गायक कृपा सँ ई सब संभव होएछ, त आब ओ कोकिला गाय लेल वसिष्ठ सँ युद्ध तक करय लेल आतूर भऽ गेलाह। मुदा फेरो ब्राह्मणक सब सिद्ध शक्तिक स्वामी ऋषि वसिष्ठ जखन अपन एक ‘दंड’ सँ गाधिपुत्र विश्वामित्रक सब अस्त्र-शस्त्र केँ पराजित कय देलखिन तखन विश्वामित्र अपन जिद्द आ संकल्पशक्ति सँ तेहेन तपस्या कएलन्हि जे ऋषित्व त प्राप्त कएलनि – मुदा ‘राजर्षि’ बनय सँ सन्तोष नहि भेलनि। ओ ब्रह्मर्षि बनबाक लेल प्रतिद्वंद्विता पोसलनि आ तैयो दिक्कत एला पर वसिष्ठक हत्या तक केर योजना बना लेलनि। मुदा ईश्वरक असीम कृपा – यैह हत्याक योजना मे स्वयं हुनकर अपनहि भीतरक ‘अहंकाररूपी परमात्मा’ एकाएक अपन खड्ग वसिष्ठक चरण मे सौंपि जतबे उपलब्धि अछि ताहि संग पूर्ण संन्यास लेल प्रेरित कएलकनि आर ओ फेर वसिष्ठ सँ ई सब बात खुलिकय रखलनि। ताहि दिन वसिष्ठ हुनका ‘ब्रह्मर्षि’ आब भेलहुँ अहाँ कहैत आशीर्वाद दय देलखिन। कहबाक तात्पर्य ई अछि जे हम सब वसिष्ठ-विश्वामित्रक खेल मे अन्तरात्मा केँ एतबे टा बुझा दी जे जानकी तत्त्व सँ सिंचित छी आर केकरो अहित लेल ‘मैथिली-मिथिला’ किंवा समाज-साहित्य-राजनीति-संस्कृति-क्रान्ति आदि मे नहि पड़ैत छी।
 
५. वैचारिक प्रक्रिया मे द्वंद्व जखन अपनो बीच होएत छैक त स्वाभाविके एक मानव केँ दोसर मानव संग द्वंद्व हेब्बे करैत छैक। एतय हम मिथिलावासी अनेको अवयव सँ अत्यधिक प्रभावित – आवेशित रहैत छी आर एक-दोसर केर बात केँ खंडन-मंडन मे आचार-विचार-व्यवहारक सामाजिक सीमा तक केँ उल्लंघन करय सँ नहि चूकैत छी। एकरा रफ भाषा मे बुझेबाक लेल हम सीधा कहब जे अपना सब ‘डिजाइनिंग’ आ ‘इन्जीनियरिंग’ मे अपन बौद्धिक परिवेष्ठनक सीमा बिसैर जाएत छी आर दोसर सँ भेट रहल सुझाव केँ अपना ऊपर चुनौतीपूर्ण वार जेकाँ ग्रहण करैत सीधे नकारबाक सिद्धान्त अपनाबैत छी। अपन जिद्द मे दोसराक अस्तित्व तक केँ नकारि दैत छियैक। समावेशिकताक सिद्धान्तक विरुद्ध ‘एकला चलो रे’ वाली बात बेसी सहज बुझैत छियैक। बाद मे जखन असगरे दौड़ि ‘लहुलुहान’ यानि कतेको तरहक असफलता आ बाँझपन अपनहि कर्म ओ वृत्ति मे देखय लगैत छी तखन फेर अपना सन मुंह बनाकय पाछू तकैत छी…. भैर गामक लोक अहाँ-हमरा पर हँसैत देखाय दैछ। हारिकय किनार लागि जाएत छी गन्तव्य पर पहुँचय सँ पहिने…. आर अहाँ केँ खौंझबैत कतेको रास कछुआ गति सँ चलनिहार सहयात्री मानव अहाँ सँ पहिने ओहि गन्तव्य धरि पहुँचिकय झंडा गाड़िकय देखा दैछ। फेरो अहाँ सुधरब कि कप्पार… अहाँ उल्टा दाँव भाँजय मे लागल रहैत छी। मौका भेटिते ओहि प्रतिद्वंद्वी कछुआक मूरी पर खन्तीक चोट दय ओकरहु मृत्युक कारक बनबाक महापाप कय बैसैत छी। जखन कि – नेतृत्व हस्तान्तरणक नियम कहैत छैक जे यदि कोनो कारणवश उत्तराधिकारीक समय प्रबल छैक त राजकाज ओकरे दय अहाँ सल्लाहकारक भूमिका निर्वाह करू।
 
प्रवीणक लेख कनेक लंबे होएत छैक…. समय देलहुँ ताहि लेल आभारी छी। मुदा ई लिखबाक कारण सेहो यैह अछि जे ‘निरपेक्षवाद’ केर ‘विदेहपंथ’ हम मिथिलावासी कथमपि नहि छोड़ी। स्वस्थ आलोचना केँ वर्दाश्त करबाक क्षमता विकसित करी। व्यक्तित्व निर्माण मे जँ विरोध झेलबाक कूब्बत नहि रहत त कहियो सर्वस्वीकार्यता नहि पाबि सकब।
 
ई सब मीमांसा मे अपने लोकनिक विचार आरो मधु आ सक्कर केर काज करत। तैँ वैचारिक प्रक्रिया केँ सदिखन स्वस्थ रूप मे स्वीकार करैत हमरा लोकनि अपन समाज लेल अपना-अपना तरहें योगदान दैत रहब, यैह आशा, यैह अपेक्षा आर यैह शुभकामना सेहो।
 
हरिः हरः!!

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