आलेख
– प्रवीण नारायण चौधरी
शारदीय नवरात्रक पावन बेला आबि गेल। सम्पूर्ण वर्ष केर ओ खास १०-दिवस आबि गेल। आइ सँ अगस्त्य तर्पणक संग कुल १५ दिवस धरि पितृ-तर्पण हेतु खास ‘श्राद्ध पक्ष’ केर शुरू भेल। तदोपरान्त कलशस्थापनाक संग दशहरा पूजा आरम्भ भऽ जायत। नवदुर्गाक चर्चा निम्न श्लोक मे पूर्ण अछिः
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:॥
शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कुष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्री, महागौरी, सिद्धिदात्री – ई नौ रूप महादुर्गाक थिकन्हि। हरेक रूप केर अपन विशेषता छैक। आजुक लेख मे सब देवीक स्वरूप आ वैशिष्ट्य पर चर्चा नहि करब, एकरा लेल अलग सँ लिखबाक जरुरत अछि। संछेप मे, ९ दिवस अर्थात ९ तिथि (कहियो-कभार २ तिथि १ दिन मे पड़बाक ज्योतिषीय गणना सँ संभव होएछ) – समय तक चलयवला शक्ति उपासनाक खास महत्व केर चर्चा एहि लेख मे प्रस्तुत कय रहल छी।
ऐतिहासिक सन्दर्भ
नवरात्रक प्रचलन मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा लंका पर चढाई करबाक समय सँ जुड़ल देखाएछ। दसानन रावण द्वारा राम-भार्या मैथिली (सीता) केर अपहरण कय अशोक वाटिका मे कैदीक रूप मे रखबाक प्रकरण सँ हम सब परिचित छीहे। श्रीरामदूत हनुमान द्वारा ई पता कय लेलाक बाद जे रावणक लंकाक अशोक वाटिका मे जानकीजी केँ राक्षसी सभक पहरा मे कैद राखल गेल छन्हि, पुरुषोत्तम राम बानरराजा सुग्रीव ओ जाम्बवंत संग बानर आ भालूक सेना सहित लंका पर चढाई कएलनि। एहि युद्ध मे विजय हासिल करबाक लेल श्रीराम द्वारा दुर्गा देवीक उपरोक्त ९ स्वरूप केर विशेष पूजा-अर्चना कएल गेल। तदोपरान्त देवी प्रसन्न भऽ श्रीराम केँ विजयी बनबाक आशीर्वाद प्रदान केलनि। दसम् दिन ओ विजय यात्रा करैत रावण केँ बध कएलाह, ओकर सम्पूर्ण राक्षसी सेना आ सखा-सन्तान केँ समाप्त कएलनि। तदोपरान्त सीता केँ अपहरण मुक्त करैत पुनः अपन राज्य अयोध्या लेल प्रस्थान कएलनि। एहि तरहें एहि पाबनिक नाम ‘विजयादशमी’ पड़ि गेल। हिन्दू धर्म मे विश्वास रखनिहार धर्मावलम्बी लेल यैह परम्परा आइ धरि अत्यन्त हर्ष, उल्लास, उत्साह आ सम्पूर्ण कष्ट, संकट, पीड़ा, आदिक क्षय करयवला अत्यन्त विशिष्ट पाबनिक रूप मे स्थापित भऽ गेल।
मिथिलावासी लेल दुर्गा पूजाक विशेषता
उपरोक्त ऐतिहासिक सन्दर्भ सँ स्पष्टे अछि जे श्रीराम द्वारा रावण समान अहंकारी-शक्तिशाली राक्षस पर विजय हासिल कय ‘मैथिली’ अर्थात् ‘सीता’ केँ अपहरण मुक्त कएल गेल। सीता मिथिलाक राजा जनक सिरध्वज केर सुपुत्री छलीह। अयोध्या नरेश दशरथ पुत्र श्रीराम संग धनुष-यज्ञ केर स्वयंवर शर्त केँ पूरा करबाक यानि धनुष भंग कएनिहार सुयोग्य वर सिद्ध होयबाक कारण सीता संग विवाह भेलनि। विवाहोपरान्त सीता संग अयोध्या जाएत देरी राजा दशरथ श्रीराम केँ युवराज बनेबाक घोषणा कएलनि। मुदा समस्त देवलोक, ऋषिलोक, मर्त्यलोक मे रावणक अहंकारी उपद्रव-अत्याचार सँ परेशान देवता, ऋषि, संत, ब्राह्मण एवम् समस्त मानव प्रजा एहि घोषणा सँ चिन्ता करय लागल जे ब्रह्माक वरदान सँ सबल राक्षस राजा रावण सँ छुटकारा कोना भेटत। एवम् प्रकारेन देवता लोकनिक आह्वान पर सरस्वतीक विशेष माया सँ श्रीरामक सतमाय कैकेयी अपन पुत्र भरत केँ राजगद्दी सौंपबाक प्रेरणा पाबि कुपित भेलीह आर राम केँ १४ वर्षक वनवास पिता दशरथ सँ वचनबद्धताक कारण दियौली। एहि तरहें श्रीराम केर असली लीला आरम्भ भेल, जाहि मे हुनक अर्धांगिनी सीता सेहो संग देलीह – ओहो रामक संगे वनगमन कएलीह। ई प्रकरण सौंसे मिथिला लेल सेहो बहुत विस्मयकारी भेल छल। परञ्च विधक विधान केँ के टालि सकैत छल – आखिरकार रावण बध जे हेबाक छलैक। वनवासक क्रम मे सीताक अपहरण कय रावण लंका मे बन्दी बनबैत अछि आर फेर श्रीराम लंका पर चढाई करैत छथि। ताहि क्रम मे दुर्गा पूजाक नौ रात्रिक चर्चा ऊपर कएले गेल अछि। अन्त मे विजयी बनि सीताक संग राम अयोध्या वापसी करैत पुनः राजगद्दी हासिल कय ‘राम-राज्य’ करैत प्रजा केँ सुखी करैत छथि। अतः मिथिलावासी लेल ई सब प्रकरण बहुत खास होएत अछि।