अगस्त २०, २०१७. मैथिली जिन्दाबाद!!
पागक डिजाइन आ रंग या धार्मिक-पारम्परिक व्यवहार सँ बहुत ऊपर छैक पागक व्यापक अर्थ – पाग थिक सम्मानक प्रतीक
भारतीय डाक विभाग द्वारा भारतक विभिन्न क्षेत्र मे प्रचलित आ लोकप्रिय शिरोवस्त्र पर जारी डाक टिकट मे बिहारक मिथिलाक्षेत्रक मैथिल द्वारा व्यवहृत पाग केँ सेहो स्थान देल गेल अछि। १० फरबरी, २०१७ केँ डाक विभाग द्वारा जारी १० टका मूल्यक पोस्टेज स्टाम्प मे मिथिला पाग केँ शामिल केलापर समस्त मिथिलावासी मे हर्षक अनुभूति भेल अछि जे आखिर एहि विशिष्ट सभ्यताक कोनो अस्मिता केँ राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित स्थान भेटल अछि। लेकिन एहि हर्षक मध्य मिथिलाक किछु कथित विद्वान् लोकनि एहि पर घोर आपत्ति सेहो जतौलनि अछि। मामिला ई भेल जे १० फरबरी केँ जारी टिकट मे मिथिला पाग केँ शामिल करबाक समाचार ‘पाग बचाउ’ अभियान मे लागल मिथिलालोक फाउन्डेशन केर संचालक डा. बिरबल झा द्वारा सोशल मीडिया पर जारी कएल गेल। एतेक पैघ समाचार लेकिन मीडिया मे कतहु कोनो बात पहिने प्रकाशित नहि होयबाक कारण लोक अनभिज्ञ छल, अपन-अपन स्वार्थक जीवन मे लागल छल। लेकिन सोशल मीडिया पर समाचार अबैत देरी आर ओहि समाचार मे मिथिलालोक फाउन्डेशनक संचालक – पाग बचाउ अभियंता – मैथिली-मिथिलाक धरोहर प्रति समर्पित अनेको तरहक सोच-विचार रखनहि शिक्षाविद् डा. बिरबल झा केर नाम व हुनकर बाइट (प्रतिक्रिया) सेहो देखैत देरी कतेको लोक एहि खुशखबरी केँ अपन अलग-अलग दृष्टिकोण सँ चीर-फार मे लागि गेलाह।
किछु आपत्ति बहुत सार्थक सेहो देखा रहल अछि – यथा, पागक डिजाइन आर जाहि तरहक बूढ-झुनकुट व्यक्तिक माथ पर ई शोभित देखायल गेल अछि आर एहि मे जे रंग यानि ललका पाग पहिरल लोक केँ देखायल गेल अछि ई पारंपरिक रूप सँ पागक प्रयोग विरुद्ध प्रतीत होएत अछि। साधारणतया ललका पाग केर उपयोग बरुआ आ वर द्वारा बेसी कएल जाएत छैक। मुदा राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य मे आर शिरोवस्त्रक व्यापक अर्थ मे मिथिला पाग केर उपयोग जाहि तरहें होएत आयल अछि से एहि धार्मिक-पारंपरिक व्यवहार सँ भिन्न अतिथि, विद्वान् आदि केँ सम्मानक रूप मे पाग आ दोपटा देबाक प्रचलन स्वतंत्र भारत मे बेसी स्थान पेलक। पाग केर व्यापक – वृहत् प्रयोग सम्मान केर प्रतीक केर रूप मे भेल आर एतय रंग आ डिजाइन सँ बहुत ऊपर केवल ‘मिथिला पाग’ केर नाम आ स्थान बनल। आइ जे भारतीय डाक विभाग देशक विभिन्न क्षेत्रक हेडगियर – शिरोवस्त्र पर डाक टिकट जारी करबाक नीति नियम बनौलक ताहि ठाम धार्मिक आ पारम्परिक व्यवहार केर अर्थ आ व्यापकता – औचित्य आदिक कोनो सन्दर्भ नहि उठल या उठायल गेल। हालहि मिथिलालोक फाउन्डेशन देश भरि मे विभिन्न स्थान पर जाहि तरहक पाग बचाउ अभियान चलौलक तेकरा मार्फत सेहो ई सन्देश कदापि नहि देल गेल जे एकर डिजाइन आ रंग केर फलाना इतिहास रहल या समाज मे एकर उपयोगिता एहि तरहक विवाह, उपनयन किंवा कोनो धार्मिक पाबनिक अवसर पर किछु उच्च जातिक लोक पाग पहिरिकय कोनो निश्चित विधान पूरा कएलनि – बल्कि मिथिलाक पाग केर व्यापकता ‘सम्मान केर प्रतीक’ केर रूप मे देखाओल आ बुझाओल गेल। हालक विभिन्न अभियान मे मिथिला पाग केर परिचय जे विश्व समुदायक सोझाँ राखल गेल ताहि मे पागक प्रयोग कोनो सीमित जातीय जनमानस धरि नहि बल्कि एहि सब सँ बहुत ऊपर स्थापित करबाक प्रयत्न कएल गेल अछि। वर्तमान युग मे मिथिलाक पहिचान विलोपोन्मुख अछि आर एहि मे एकटा छोट शिरस्त्राणक रूप मे रहल पाग केँ पुनः मिथिलाक समस्त जनगणमन केर माथक सम्मान केर रूप मे स्थापित करैत एतुका सभ्यताक विशिष्टता केँ राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करबाक प्रयास कएल गेल अछि। तखन कोनो अन्य कारण सँ विवाद ठाढ करब – टंटाबाजी करब – अपन मिथिलाक बेसी बुधियार तीन ठाम मखयवला कहिनी केँ सिद्ध करैत देखाएत अछि।
आइ आवश्यकता अछि जे भूगोल सँ हेरा चुकल मिथिलाक विशिष्टता केँ विश्व समुदायक सोझाँ एक-एक कय केँ पुनः स्थापित करी। अवस्था एहेन नाजुक अछि जे आब अपनहु सन्तान अपन भाषा तक प्रयोग मे आनय सँ कतराइत अछि। स्वयं अपन परिवारक अन्दर हमरा लोकनि मैथिली भाषा प्रयोग करय मे लज्जाक अनुभूति करैत छी। तखन बाहर कतबो देखाबा करब त एकर सार्थकता कि हेतैक? एक तरफ हम सब विद्यापति समान महान युगपुरुष केर स्मृति करैत आरो-आरो युगपुरुष सभक स्मृतिगान करैत अपन हेरायल-भोथियायल इतिहास केँ खोजैत छी, स्थापित करैत छी – मुदा दोसर तरफ अपने सँ अपन विभूतिक व्यापकता पर जाति-पाँति या धर्म आदिक आधार पर संकुचित मानसिकता राखब त एकर दूरगामी प्रभाव केहेन पड़तैक ई स्वतः बुझल जाय योग्य विषय थिक। स्थिति कतेक बदतर भेल अछि जे हम सब पलायन करितो आर्थिक विपन्नता सँ ऊबार पेलहुँ मुदा सामुदायिक हित लेल योगदान देबाक परम्परा लुप्तप्राय अवस्था मे पहुँचि गेल – एहि सँ पूर्व जखन एतेक आर्थिक सम्पन्नता आ स्वतंत्रता नहि छल ताहि समय मे सब कियो आपसी हित आ परमार्थ लेल सोचैत रही। आइ विरले कियो सपुत जन्म लय रहल अछि जे मिथिलाक पहिचान केँ राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करबाक लेल समय, सामर्थ्य आ सद्भाव रखैत हो – तखन डा. बिरबल झा केर प्रयासक सराहना नहि कय उल्हन-उपराग आ हुनकर कठोर आलोचना मात्र मे हम सब फँसैत छी त केकर हित कय रहल छी ईहो सोचय योग्य विषय थिक। पिछला किछु समय सँ डा. बिरबल झा व हुनका नेतृत्व मे संचालित मिथिलालोक फाउन्डेशन द्वारा जाहि तरहें विभिन्न अभियान चलबैत मिथिला-मैथिलीक अस्मिता बचेबाक प्रयास कएल जा रहल अछि एहि मे यदि कतहु स्वार्थहु छैक त व्यापक हित आम मिथिलावासी लेल बेसी छैक। तखन जँ हुनका पर कृतघ्न बनिकय ब्यापारी, स्वार्थी या अन्य कोनो तरहक कूकाठी कठोर टिप्पणी करैत छी से कतहु सँ स्वागत योग्य नहि अछि आर यैह कारण छैक जे आरो कतेको सपुत चाहियोकय अपन मूल्य आर मान्यता लेल आगू नहि आबि पबैत छथि। ७० वर्ष सँ मिथिला राज्य मांगि रहल छी – किछु लोक आतूर छथि जे संविधान मे अपन पहिचान केँ स्थापित करी – मुदा बेसी अपनहि लोक हुनका सभक आलोचना आ टीका-टिप्पणी मे हास्यास्पद स्थिति मे आन्दोलन केँ रखने छी।
भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कएल गेल विवरणिका मे स्पष्ट छैक जे इंटरनेट सँ प्राप्त जनतब केर आधार पर डाक टिकट मे पाग केँ स्थान देल गेल। ओतय उद्धृत कएल गेल छैक जे प्रागैतिहासिक काल सँ एकर उपयोग मिथिलाक मैथिल लोकनि करैत आबि रहल अछि। शायद राष्ट्रीय स्तरक संवैधानिक निकाय मे ‘मैथिल’ पहिचान केँ पहिल बेर मान्यता दैत देखलहुँ, ओना हमर अनुभव आ अध्ययन सँ जँ गलती भेल हो त पाठक स्वतंत्र छथि जे देखेता कि फल्लाँ संस्था द्वारा ‘मैथिल’ पहिचान पर पहिनहुँ चर्चा कएल गेल छैक, मैथिल द्वारा प्रयुक्त ओहि अस्मिता केँ पहिनहु संविधान मे ई कहैत दर्जा भेटल छैक।