गजल : विद्यानन्द वेदर्दी, ललितपुर,काठमाण्डु,२०७४/०४/०६
मिथिला हमर महान देखु ई छातीमे,
जीवैए बनि भगवान देखु ई छातीमे॥
विद्यानन्द वेदर्दी
शोणीत संग बहैत कलकल-छलछल,
कोशी-कमला-बलान देखु ई छातीमे॥
बाजी त नितहुँ निकलए ठोरसँ मधु,
मैथिली अमृत समान देखु ई छातीमे॥
श्रद्धा-स्नेह केर छीयैक परम पूजारी,
उच्च कते स्वाभिमान देखु ई छातीमे॥
के हिन्नु के मुसलमान हम नै जानी,
मैथिल हमर पहिचान देखु ई छातीमे॥
एकहकटा साँस समर्पण कऽ करैत,
माटिपानि-अभियान देखु ई छातीमे॥
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