स्वाध्याय: रामचरितमानस सँ सीख – २२
रामभक्तिरूप – गंगाजी जाहि मे सुन्दर कीर्तिरूपी सुहाओन सरयूजी मिलैत छथि, छोट भाइ लक्ष्मणजी सहित श्रीरामजीक युद्धक पवित्र यशरूपी – महानद सोन अछि – सरयूजी आर सोन केर बीच मे गंगाजी शोभित भऽ रहली अछि। ई तिनू नदी तिमुहानी रामस्वरूपरूपी समुद्रक दिशा मे जा रहल अछि।
एहि कीर्तिरूपी सरयू केर मूल मानस (श्रीरामचरित) थिक आर एहि रामभक्तिरूपी गंगाजी मे मिलल अछि, ताहि सँ ई सुननिहार सज्जन केर मन केँ पवित्र कय दैछ। बीच-बीच मे नानार तरहक अनुपम कथा सब अछि जे नदी तटक आसपास केर वन आ बाग सब थिक।
श्रीपार्वतीजी आर शिवजीक विवाहक बरियाती एहि नदी मे असंख्य जलचर जीव थिक। श्रीरघुनाथजीक जन्मक बधैया एहि नदीक भंवर आ तरंगक मनोहरता थिक। चारू भाइ केर बालचरित रंग-बिरंगक फूलायल कमल फूल थिक, महाराज दशरथजी आ हुनकर रानी लोकनि संग-संग कुटुम्ब लोकनिक सत्कर्म (पुण्य) एहि ठामक भ्रमर आर जलपक्षी थिक।
श्रीसीताजीक स्वयंवरक सुन्दर कथा सँ एहि नदी मे सुहाओन छवि बनि गेल अछि। अनेको सुन्दर विचारपूर्ण प्रश्न एहि नदीक नाव थिक और तेकर विवेकयुक्त उत्तर एकर चतुर केवट थिक।
एहि कथा केँ पढिकय परोक्ष मे जे आपस मे चर्चा सब होएत छैक से एहि नदीक सहारे-सहारे चलयवला राही-बटोही लोकनिक समाज जेकाँ शोभा पाबि रहल अछि। परशुरामजीक क्रोध एहि नदीक भयानक धार थिक आर श्रीरामचन्द्रजीक श्रेष्ठ वचन एकर सुन्दर बान्हल घाट थिक।
भाइ लोकनि सहित स्वयं रामजीक विवाहक उत्सव एहि कथानदीक कल्याणकारिणी बाढि थिक जे सब केँ सुख देबयवला अछि। एकरा कहबा-सुनबा मे जे हर्षित आर पुलकित होएत अछि वैह पुण्यात्मा पुरुष छथि जे प्रसन्न मन सँ एहि नदी मे स्नान करैत छथि।
श्रीरामचन्द्रजीक राजतिलक वास्ते जे मंगल-साज सजायल गेल वैह पाबनिक समय नदीपर लागल मेला थिक। कैकेयी केर कुबुद्धि एहि नदीक काई थिक जेकर फलस्वरूप बड़ा भारी बिपत्ति आबि गेल। श्रीभरतजीक चरित्र नदी पर आयोजित जप यज्ञ थिक जाहि सँ सम्पूर्ण अनगिनत उत्पात सभक शान्ति भऽ सकल।
कलियुग केर पापक आर दुष्ट सभक अवगुणक जे किछु वर्णन अछि वैह एहि नदीक जलक थाल आर बगुला-कौआ थिक।
एहि तरहें एक नदीक दर्शन सँ सम्पूर्ण रामायणक गुणक बखान महाकवि तुलसीदासजी द्वारा कएल गेल अछि। हमरा लोकनि लेल एकर गहराई केर अन्दाज लगायब सहज भऽ जाएत अछि आर अपन मनि-चित्त केँ थिर कय केँ एहि नदी मे स्नान करबाक लेल प्रेरित करैत रही, बस।
हरि: हर:!!