विशेष संपादकीयः जूलाई २, २०१७. सन्दर्भः सौराठ सभाक पुनरुत्थान
मैथिल ब्राह्मणक विवाह आ सभा परम्पराक औचित्य आब कि?
मैथिल ब्राह्मण समुदाय मे वैवाहिक अधिकार निर्धारण प्रक्रिया जटिल होयबाक कारण पूर्वकाल मे कुल ४२ स्थान पर सभा लगाओल जाएत छल – पैतृक पक्ष मे ७ पीढी धरि आ मातृक पक्ष मे ५ पीढी धरि कोनो रक्त सम्बन्ध नहि भेटलाक बादे कोनो वर एवम् कन्या केँ वैवाहिक अधिकार भेटबाक नीति एहि समुदायक विवाह केँ विश्व भरि मे अनुपम आ विलक्षण होयबाक संग-संग जटिल आ विचित्र सेहो प्रमाणित करैत अछि।
युग अनुरूप जटिलता आ विचित्रता केँ धर्म मानि निर्वहन करबाक सामर्थ्य एहि समुदाय मे नहि रहि गेल कहब गलत नहि होयत। मात्र विवाहे टा कि आनो-आनो जीवन-संस्कार मे पूर्वजक बनाओल पारंपरिक नियम सब मे बहुत हद तक सुगमता अपनेबाक कारण कतेको कठोर व्रत, नियम, कायदा, कानून आ तौर-तरीका मे बदलाव आबि चुकल देखल जाएछ। कि नीक – कि बेजाय – एकर समीक्षा हम सब स्वयं अपन-अपन जीवन मे उपलब्ध साधन आ संस्कृति प्रति निजी सम्मान अनुरूप करैत छी। बहुल्यजन व्यावहारिक सहजता अनुरूप धर्म धारण करैत कर्मकाण्ड सँ दूर भेल अछि, आर एहि दूरी बनेबाक काज केँ न्यायोचित मानैत अछि। परञ्च एकटा पैघ संख्या मूल्यवान् परंपराक रक्षा करबाक लेल दिन-राति एक कएने देखा रहल अछि।
सौराठ सभागाछी उपरोक्त ४२ वैवाहिक सभास्थली मध्य एकटा प्रमुख स्थान छल जे बहुत बाद धरि अपन अस्तित्व केँ जोगौने रहल। पंचकोशी केर मैथिल ब्राह्मण समुदाय केँ एहि लेल धन्यवाद सेहो देल जेबाक चाही जे सबसँ आखिरी समय धरि वैह सब मैथिल ब्राह्मणक संस्कार केँ बचौलनि। लेकिन ओत्तहु १९८०-९० केर दसक अबैत-अबैत आखिरकार अशुद्धि-विसंगतिक प्रवेश भेलाक बाद सभा अपन इजोत केँ अन्धकार मे परिणति दैत चलि गेल आर सभैती (सभासद) लोकनि ओतय आयब-जायब बन्द कय देलनि। एहि अशुद्धि-विसंगतिक मूल कारण पुनः वैह पंचकोशीक किछेक तथाकथित वीर बामपंथी नेता लोकनि केँ मानब या फेर आम समाज केँ – ईहो प्रश्न हम विज्ञजन केर स्वयं समीक्षा लेल छोड़य चाहब। तखन फेर धन्यवाद ओहि सज्जन आ गणमान्य समाजसेवी लोकनिक जे कोनो न कोनो तरहें एहि सभा-परंपरा केँ बचेबाक प्रयास करैत रहला। असफलता या सफलताक समीक्षा त समय करैत अछि, आखिरकार २०१७ मे आबि सफलताक स्वरूप बेसी प्रखर देखाय लागल अछि।
हम शुरु केने रही वैवाहिक अधिकार निर्धारणक जटिलता सँ – पंजी परम्परा एहि बातक गवाह बनैत अछि। आइ जँ पूछल जाय १०० मैथिल ब्राह्मण परिवार मे जे ओ सब वैवाहिक सम्बन्धक पंजीकरण करौलनि अछि आ कि नहि…. त हमरा हिसाबे ९५% परिवार पंजी व्यवस्था सँ दूर होयबाक बात कहता। बिना सिद्धान्त लिखौने विवाह होमय लागल अछि। पंजीकार सँ सम्पर्क तक करब लोक केँ जरुरी नहि बुझाएत छन्हि। रक्त-सम्बन्धक जाँच त दूर केर विषय भेल, सिद्धान्त लेखन तक केर आवश्यकता नहि छन्हि हुनका लोकनि मे। मातृका पूजा बिना कन्यादान करबाक परम्परा एखनहु मैथिल ब्राह्मण समुदाय मे कतहु नहि होयत, लेकिन मातृका पूजा लेल साधारण कैलेन्डर मे भावरूपेण स्थापित देवी-देवता ‘कुलदेवता’ केर कार्य करैत छथि, गोसाउनिक पीरी दिल्ली-बम्बई कतय सँ भेटत! कहबाक तात्पर्य अछि जे वैवाहिक सम्बन्धक जे शोध-सिद्ध रीत रहय ओ आब अपरिहार्य नहि रहि गेल अछि, पार लागल त वाह-वाह नहि लागल तैयो वाह-वाह। बस धूम-धड़क्का आ हाई-फाई लहक-चहक देखाबटी आडंबर टा हेबाक चाही। लोक सब बुझि गेल जे फल्लाँ बाबूक बेटी या बेटाक विवाह भऽ गेल, बस, यैह थिक आजुक विवाह। तखन सौराठ सभा आ कि ओहि मेटा चुकल ४२ सभास्थलक परम्परा केँ फेरो जियाबय पर केकर आ कियैक ध्यान जायत।
हरिः हरः!!